General note |
विषय-सूची<br/>पञ्चकर्म और उनकी परिभाषा<br/>निर्वचन १, पाकर्म और रक्तमोक्षण २, वमनकर्म ३, विरेचन- कर्म ४, वस्तिकर्म ४, नस्यकर्म ५, रक्तमोक्षण ५, प्रकृति में सबक दिया है शोधन का ६, पशु-पक्षी भी स्वेदन आदि कर्म करते हैं ६, पश्वकर्म के सन्दर्भ-ग्रन्थ ७, पञ्चकर्म का प्रयोजन और महत्व ७, पश्वकर्म के पूरक पूर्वाऽपर कर्म १०, पन्तकर्म अपतर्पण-चिकित्सा की अन्तिम कड़ी १२, पूर्वकर्म का विस्तार १३।<br/>द्वितीय अध्याय<br/>स्नेहन<br/>परिभाषा और परिचय १५, सन्दर्भ-ग्रन्थ १५, स्नेहन की उपयोगिता और महत्त्व १५, स्नेहन एक पूर्वकर्म १७, स्नेहों के प्रकार १९, उत्पत्ति-भेद से - स्थावर स्नेह १९, जाङ्गम स्नेह २०, उपयोग भेद से - बाह्य स्नेह २०, आभ्यन्तर स्नेह २१, मिश्रण-भेद से स्नेह २१, कर्म-भेद से स्नेह २१, संज्ञा-भेद से स्नेह २१, पाक-भेद से स्नेह २२, मात्रा-भेद से स्नेह २२, तिल-वैल और एरण्ड तैल की श्रेष्ठता २०, चार उत्तम स्नेह २४, घृत के गुण २४, तैल के गुण २४, वसा के गुण २५, मज्जा के गुण २५, ऋतु के अनुसार स्नेहपान २५, दोषानुसार स्नेहपान काल २५, कार्मुकता की दृष्टि से स्नेहपान काल २५, विपरीतकाल में स्नेहपान हानिकर २६, स्नेहपान काल की अवधि और मात्रा २६, स्नेहमात्रा २७, प्रविचारणा के योग्य पुरुष २७, स्नेह की २४ प्रविचारणाएँ २७, चौंसठ प्रकार की प्रविचारणाएँ २९, कुछ चरकोक्त प्रविचारणा के योग २९, स्नेहन के योग्य पुरुष ३०, स्नेहन के अयोग्य पुरुष ३०, स्नेहपान के पूर्व हितकर आहार ३०, स्नेहपान के पूर्व निषिद्ध आहार ३१, स्नेहपान की तैयारी ३१, स्नेहपान का विधान ३१, अनुपान ३३, स्नेहपान के जीर्यमाण और जीर्ण लक्षण ३३, पच्यमान स्नेहपान का लक्षण ३३, स्नेहपान का जीर्ण लक्षण ३३, स्नेहाजीर्ण में उपचार ३३, स्नेह के जीर्ण होने पर उपचार ३३, स्नेहन का पश्चात् कर्म ३४, सम्यक् स्निग्ध लक्षण ३५, असम्यक् स्निग्ध लक्षण अतिस्निग्ध लक्षण ३५, स्नेहपान के उपद्रव और उपचार <br/>तृतीय अध्याय<br/>(1)<br/>स्वेदन<br/>परिभाषा और परिषय ३८, सन्दर्भ-पन्य ३८, उपयोगिता और महत्व १९, स्वेदनिगर्मन का प्रयोजन ४०, स्वेदकर इम्पों के गुण ४१, स्वेदनकारक द्रश्य ४२. उपयोग-भेद से स्वेवल द्रब्य ४२, स्वेद के योग्य रोग और रोगी ४२, स्वेद के अयोग्य रोग और रोगी ४३, स्वेदन के पूर्व विचारणीय विषय ४४, स्वेदन का प्रयोग ४६, स्वेदनकाल में सावधानी ४६, समाक् स्वेदन के लक्षण ४६, स्वेदन का हीनयोग या मिथ्यायोग ४७, स्वेदन के अतियोग का लक्षण ४७ अतिस्विनता का उपचार ४७, स्वेदन का पश्चात् कर्म ४७, स्वेदन के तेरह प्रकार ४८, (१) संकर स्वेद ५०, (२) प्रस्तर स्वेद ५१, (३) नाड़ी स्वेद ५२, (४) परिषेक स्वेद ५३, पिषिञ्जल ५३, (५) अवगाह स्वेद ५४, (६) जेन्ताक स्वेद ५४, (७) अश्मघन स्वेद ५५, (८) कर्फ्यू स्वेद ५५, (९) कुटी स्वेद ५६, (१०) भू स्वेद ५६, (११) कुम्भी स्वेद ५६, (१२) कूप स्वेद ५६, (१३) होलाक स्वेद ५६; स्वेद के ताप आदि चार भेद (१) ताप स्वेद ५८, (२) उपनाह स्वेद ५८, साल्बण उपनाह स्वेद ५९, (३) ऊष्म स्वेद ५९, (४) द्रव स्वेद ६०; दश निरग्नि स्वेद- व्यायाम- उष्णसदन-गुरुप्रावरण-क्षुधा-अतिमद्यपान-भय-क्रोध-उपनाह-आहव- आतप <br/>वमन<br/>चतुर्थ अध्याय<br/>परिचय और परिभाषा ६२, सन्दर्भ-ग्रन्थ ६३, वमन के योग्य रोग और रोगी ६३, वाम्य रोग-सारणी ६३, अवाम्य रोग-सारणी ६४, वमन की उपयोगिता और फलश्रुति ६५, वमन द्रव्यों के गुण और कर्म ६७, वमनकारक द्रव्य ६८, चरकसंहिता के वामक द्रव्य ६९, वमनोपग द्रव्य ६९, क्षीरी द्रव्य ६९, कफपित्त वृद्धि एवं आमाशयिक रोगों में बगन द्रव्य ६९ मदनफलादि यामक योग ६९, सुश्रुतोक्त बामक द्रव्य ६९, वाग्भट-कथित वामक द्रव्य ७०, वमन द्रव्यों की कल्पना ७०, वमन का पूर्वकर्म ७०, वमन का प्रधानकर्म (१) वमन का आयोजन ७२, (२) औषध-पान ७३, (३) रुग्ण- निरीक्षण ७३, (४) वमनवेग-निर्णय ७४, (५) वमन के सम्यक् हीन और अतियोग ७५, (६) वमन के उपद्रव और उनका उपचार ७६; बयोग में उपचार ७६, अतियोग में उपचार ७६, पश्चात्कर्म (१) धूम्रपान ७७, (२) संयम-नियम ७८, (३) संसर्जन क्रम , पेयादि क्रम ७८, (४) सन्तर्पण क्रम ८०, कुछ तर्पणयोग ८१, वमन के अनन्तर शोधन ८१, कतिपय वमनकल्प |