Caraka Samhita (Record no. 18172)
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008 - FIXED-LENGTH DATA ELEMENTS--GENERAL INFORMATION | |
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020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER | |
International Standard Book Number | 9788176371650 |
041 ## - LANGUAGE CODE | |
Language code of text/sound track or separate title | HINDI |
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER | |
Classification number | 615.538 KUS |
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME | |
Author name | Kushwaha,Harish Chandra Singh |
245 ## - TITLE STATEMENT | |
Title | Caraka Samhita |
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. (IMPRINT) | |
Place of publication, distribution, etc. | Varanasi |
Name of publisher, distributor, etc. | Chaukhambha Orientalia |
Date of publication, distribution, etc. | 2018 |
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION | |
Page | 1172p. |
500 ## - GENERAL NOTE | |
General note | चरक संहिता (द्वितीय भाग)<br/>विषयानुक्रमणिका<br/>चिकित्सास्थानम्<br/>पृष्ठ विषय<br/>विषय<br/>१. प्रथमोऽध्यायः<br/>रसायनाध्याये प्रथमः पादः<br/>भेषज के पर्याय<br/>भेषज के भेद<br/>अभेषज के भेद<br/>०१-४६<br/>आमलक चूर्ण<br/>विडङ्गावलेह<br/>अपर आमलकावलेह<br/>नागवला रसायन<br/>१<br/>उन्नीस बलादि रसायन<br/>भल्लातक क्षीर<br/>भेषज का विवेचन<br/>२<br/>भल्लातक क्षौद्र<br/>रसायन के कार्य<br/>२<br/>भल्लातक तैल<br/>वाजीकरण के कार्य<br/>३<br/>भल्लातक के विविध योग<br/>परिभाषा<br/>३<br/>भल्लातक रसायन प्रकरण का उपसीहार<br/>अभेषज की परिभाषा<br/>अध्यायोक्त विषयों का उपसंहार<br/>रसायन विधि-प्रकरण<br/>रसायनाध्याये तृतीयः पादः<br/>रसायन के प्रकार<br/>(करप्रचितीय रसायनपाद)<br/>कुटी प्रावेशिक विधि<br/>आमलकायस ब्राह्मरसायन<br/>प्रवेश प्रक्रिया<br/>रसायनोक्त संशोधन की विधि<br/>आमलकायस ब्राह्मारसायन के गुण<br/>केवलामलक रसायन<br/>हरीतकी के गुण-कर्म<br/>E<br/>लौहादि रसायन<br/>हरीतको सेवन के अयोग्य पुरुष<br/>६<br/>ऐन्द्र रसायन<br/>आमलकी के गुण-कर्म<br/>६<br/>चार मेध्य रसायन<br/>औषधियों के सञ्चय की विधि<br/>७<br/>पिप्पली रसायन<br/>प्रथम ब्राह्य रसायन<br/>पिप्पली वर्धमान रसायन<br/>द्वितीय ब्राह्म रसायन<br/>१०<br/>त्रिफला रसायन (प्रथम)<br/>ब्राह्म रसायन (द्वितीय) के गुण<br/>१०<br/>त्रिफला रसायन (द्वितीय)<br/>च्यवनप्राश<br/>११<br/>त्रिफला रसायन (तृतीय)<br/>च्यवनप्राश रसायन के लाभ<br/>१२<br/>त्रिफला रसायन (चतुर्थ)<br/>आमलक रसायन<br/>१२<br/>शिलाजतु के गुण<br/>पञ्चम हरीतकी योग<br/>१३<br/>भावना देने की विधि<br/>हरीतक्यादि योग<br/>१३<br/>शिलाजीत रसायन के लाभ<br/>रसायन का वैशिष्ट्य<br/>१४<br/>प्रयोग काल एवं मात्रा<br/>उपसंहार<br/>१४<br/>शिलाजीत की उत्पत्ति एवं उनकी प्रयोग विधि<br/>रसायनाध्याये द्वितीयः पादः<br/>१५-२४<br/>स्वर्ण शिलाजीत के गुण-कर्म<br/>(प्राणकामीय रसायनपाद)<br/>रौप्य शिलाजीत के गुण-कर्म<br/>रसायन का फल<br/>१५<br/>ताम्र शिलाजीत के गुण-कर्म<br/>आमलक घृत<br/>१६<br/>लौह शिलाजीत के गुण-कर्म<br/>आमलक घृत के लाभ<br/>१७<br/>शिलाजीत सेवन में पथ्यापथ्य<br/>आमलकावलेह<br/>१७<br/>शिलाजीत का वैशिष्ट्य<br/>क्षारोदक निर्माण विधि<br/>उपसंहार<br/>(१६)<br/>पृष्ठ<br/>विषय<br/>३८-४१<br/>पृष्य दधिसर प्रयोग<br/>विषय<br/>रसायनाध्याये चतुर्थः पादः (आयुर्वेदसमुत्थानीय रसायनपाद)<br/>वृष्य षष्टिकौदन प्रयोग<br/>इन्द द्वारा दिया गया उपदेश<br/>बाम्यवास जन्य दोष<br/>३८<br/>३८<br/>३९<br/>इन्द्रोक्त रसायन<br/>४०<br/>रसायनोपयोगी दिव्य ओषधियाँ<br/>दिव्य ओषधियों के सेवन योग्य पुरुष<br/>४१<br/>४२<br/>इन्द्रोक्त रसायन (द्वितीय)<br/>४२<br/>इन्द्रोक्त रसायन से लाभ<br/>४३<br/>वृष्य पूपालिका<br/>वाजीकरण योगों का वैशिष्ट्य<br/>वाजीकर-विहार<br/>पादोक्त विषयों का उपसंहार<br/>वाजीकरणाध्याये तृतीयः पादः<br/>(माषपर्णभृतीय वाजीकरणपाद)<br/>तीन प्रकार के वृष्य गोदुग्ध<br/>क्षीर के पाँच प्रयोग<br/>रसायन के योग्य पुरुष<br/>४३<br/>अपत्यकर क्षीर योग<br/>आचार-रसायन<br/>४४<br/>वृष्य पिप्पली योग<br/>प्राणाचार्य (वैद्य) का महत्त्व<br/>अश्विनीकुमारों के महत्वपूर्ण कार्य<br/>४४<br/>वृष्य पायस योग<br/>४५<br/>वृष्य पूपलिका<br/>योग्य प्राणाचार्य<br/>जीवन दान सर्वश्रेष्ठ दान है<br/>४६<br/>अध्यायोक्त विषयों का उपसंहार<br/>४६<br/>२. द्वितीयोऽध्यायः<br/>४७-६९<br/>वाजीकरणाध्याये प्रथमः पादः (संयोगशरमूलीय वाजीकरणपाद)<br/>४७-५२<br/>वाजीकरण चिकित्सा का उद्देश्य<br/>४७<br/>उत्तम वाजीकरण<br/>४८<br/>सन्तान रहित पुरुष की उपमा<br/>४९<br/>पुत्रवान् की उपमा<br/>४९<br/>बृंहणी गुटिका<br/>५०<br/>वाजीकरण घृत<br/>५०<br/>वृष्य शतावरी घृत<br/>वृष्य मधुक योग<br/>अन्य वाजीकरण आहार-विहार<br/>कामोद्दीपक प्रकृति (वातावरण)<br/>उपसंहार<br/>वाजीकरणाध्याये चतुर्थः पादः<br/>(पुमाञ्जातबलादिक वाजीकरणपाद)<br/>विषय का प्रारम्भ<br/>शारीरिक बल एवं सन्तोनोत्पत्ति<br/>संशोधन-प्रक्रिया<br/>वृष्य मांस गुटिका<br/>वाजीकरण पिण्ड रस<br/>५१<br/>वृष्य माहिष रस<br/>वृष्य माहिष रस<br/>५१<br/>वृष्य भुने हुए मछली के मांस<br/>अन्यवृष्य रस<br/>५२<br/>वृष्य मांस<br/>वृष्य पूपलिका<br/>५२<br/>वृष्य माष योग<br/>अपत्यकर घृत<br/>वृष्य कुक्कुट मांस-प्रयोग<br/>५२<br/>वृष्य गुटिका<br/>५२<br/>वृष्य अण्ड रस<br/>वृष्य उत्कारिका<br/>अध्यायोक्त विषयो का उपसंहार<br/>शोधनोत्तर वाजीकरण द्रव्यों का प्रयोग करें<br/>५२<br/>वृष्य की परिभाषा<br/>५२<br/>वाजीकरणाध्याये द्वितीयः पादः<br/>मैथुन कब करें ?<br/>५२<br/>वृष्य पृपलिकादि योग<br/>अपत्यकरी अष्टिकादि गुटिका<br/>(आसितक्षीरिक वाजीकरणपाद)<br/>५३-५५<br/>मैथुन के पश्चात् कर्तव्य<br/>शुक्रोत्पत्ति की उपमा<br/>५३<br/>अपत्यकर स्वरस<br/>वृष्य क्षीर<br/>वृष्य घृत<br/>५४<br/>शुक्र क्षय में हेतु<br/>मैथुन के लिए उचित काल<br/>५४<br/>शुक्र का स्थान<br/>मैथुन शक्ति की अल्पता में हेतु<br/>शुक्र प्रवृत्ति के हेतु<br/>प्रशस्त शुक्र के गुण<br/>(१७)<br/>विषय<br/>यात्रीकरण शब्द को निरुति<br/>पृष्ठ विषय<br/>अध्यायोत विषयों का उपसंहार<br/>इन्द्रज-दर<br/>३. तृतीयोऽध्यायः<br/>(वर चिकित्सा)<br/>अग्निवेश द्वारा पूछे गये ज्वर विषयक प्रश्न<br/>ज्वर के पर्याय<br/>उपर की प्रकृति<br/>WE<br/>स्वभाव रूप प्रकृति<br/>ज्वर की प्रवृत्ति (आदि उत्पत्ति)<br/>७१<br/>ज्वरोत्पत्ति की कथा<br/>७२<br/>ज्वर का प्रभाव<br/>कफ-मित ज्वर के लक्षण<br/>सत्रिपात जार प्रकरण<br/>संवियात जर की साध्यायाता<br/>आगन्तुज ज्वर के प्रकार<br/>अभिधातन ज्वर<br/>अभिषङ्गज जार<br/>अभिचार एवं अभिशाप जन्य ज्वर के लक्षण<br/>कामादि ज्वर के लक्षण<br/>ज्वर के कारण<br/>कामादि ज्वर में संताप का स्वरूप<br/>ज्वर के पूर्वरूप<br/>७४<br/>आगन्तुक ज्वर का वैशिष्ट्व<br/>ज्वर के अधिष्ठान<br/>७४<br/>ज्वर की सामान्य संप्राप्ति<br/>ज्वर के प्रत्यात्म लक्षण<br/>७४<br/>तरुण ज्वर में स्वेद न निकलने में हेतु<br/>ज्वर के भेद तथा लक्षण<br/>७५<br/>आम ज्वर के लक्षण<br/>शारीरिक एवं मानसिक ज्वर<br/>७६<br/>पच्यमान ज्वर के लक्षण<br/>मानस संताप के लक्षण<br/>७६<br/>निराम ज्वर के लक्षण<br/>इन्द्रिय ताप के लक्षण<br/>७६<br/>नव ज्वर में निषिद्ध वस्तु<br/>सौम्य एवं आग्नेय ज्वर<br/>७६<br/>ज्वर में सर्वप्रथम लंघन का प्रयोग<br/>वायु का योगवाही गुण<br/>৩৩<br/>लंघन के परिणाम<br/>ज्वर के अन्तवेंग के लक्षण<br/>७७<br/>लंघन का प्रयोग कब करे ?<br/>ज्वर के बहिर्वेग के लक्षण<br/>७७<br/>नव ज्वर (तरुण ज्वर) में आम दोष के पाचनार्थ साधन<br/>कफ एवं पित्त ज्वर की सुखसाध्यता<br/>७८<br/>ज्वर में जल की उपयोगिता<br/>आकृत पित्तज्वर<br/>७८<br/>षडंगपानीय का प्रयोग<br/>प्राकृत कफज्वर<br/>20<br/>ज्वर में वमन का प्रयोग<br/>प्राकृत एवं वैकृत ज्वर की चिकित्सा<br/>७९<br/>वमन के उपद्रव<br/>साध्य ज्वर के लक्षण<br/>८०<br/>ज्वर में यवागू का प्रयोग<br/>प्राणनाशक ज्वर<br/>८०<br/>यवागू प्रयोग के अयोग्य रोग एवं रोगी<br/>संतत ज्वर की संप्राप्ति<br/>८१<br/>तर्पण का प्रयोगे<br/>संतत ज्वर के आश्रय<br/>८१<br/>तर्पण के पश्चात् कर्तव्य<br/>सततक ज्वर के लक्षण<br/>८३<br/>दातौन के प्रयोग एवं गुण<br/>अन्येद्युष्क ज्वर के लक्षण<br/>८३<br/>दातौन के पश्चात् कर्तव्य<br/>तृतीयक एवं चतुर्थक ज्वर<br/>८३<br/>ज्वर में कषाय पान<br/>ज्वर के वेगों के आगमन में दृष्टान्त<br/>८४<br/>नव ज्वर में कषाय पान का निषेध<br/>दोषोद्रेक विशेष से तृतीयक एवं चतुर्थक<br/>यवागू पान के बाद कर्तव्य<br/>ज्वर के प्रभाव<br/>८४<br/>ज्वर में धृतपान<br/>चतुर्थक विपर्यय<br/>८५<br/>घृतपान के अपवाद<br/>ज्वर की उत्पत्ति में कारण<br/>८६<br/>ज्वर में दुग्ध का प्रयोग<br/>धातुगत ज्वर विवेचन<br/>८६<br/>ज्वर में संशोधन चिकित्सा का प्रयोग<br/>धातुगत ज्वरो की साध्यताऽसाध्यता<br/>ज्वर में निरुह बस्ति का प्रयोग<br/>(41)<br/>विषय<br/>नावन नस्य के प्रयोग से होने वाले उपद्रव एवं<br/>पृष्ठ विषम<br/>उनकी चिकित्सा<br/>१०१०<br/>रूक्ष नस्य का निषेध<br/>तिमिर रोग एवं उसकी चिकित्सा<br/>१०९०<br/>१०१०<br/>प्रतिमर्श नस्य<br/>अध्यायोक्त विषयों का उपसंहार<br/>१०९१<br/>१०९२<br/>१०. दशमोऽध्यायः<br/>१०९३-१९०३<br/>(बस्तिसिद्धि)<br/>विषयारम्भ<br/>१०९३<br/>बस्ति चिकित्सा का महत्व<br/>१०९३<br/>बस्ति चिकित्सा को श्रेष्ठता में हेतु<br/>१०९३<br/>विरेचन की तुलना में बस्ति की श्रेष्ठता<br/>१०९४<br/>बस्ति के भेद<br/>१०९५<br/>बृंहण बस्ति के अयोग्य पुरुष<br/>१०९५<br/>शोधन बस्ति के अयोग्य पुरुष<br/>१०९५<br/>बस्ति में प्रयुक्त होने वाले द्रव आदि पदार्थ<br/>१०९६<br/>बस्ति में उपयोगी प्रक्षेप द्रव्य<br/>१०९६<br/>तीक्ष्ण व मृदु बस्ति के योग्य पुरुष<br/>१०९७<br/>विभिन्न प्रकार की बस्तियों का विवेचन<br/>१०९७<br/>वरित सम्बन्धी अन्य प्रश्न<br/>पुनर्वसु आहेय द्वारा दिया गया उतर<br/>पशुओं में बस्ति का प्रयोग<br/>पशुओं में प्रयुक्त बस्तिपुटक के निर्माण में<br/>उपयोगी द्रव्य<br/>पशुओं में प्रयुक्त होने वाले बरितनेत्र का प्रमाण विभित्र पशुओं में प्रयुक्त होने वाले वरित द्रव्य<br/>सामान्य रूप से उपयोगी बस्ति द्रव्य<br/>हाथियों में प्रयुक्त होने वाले बस्ति द्रव्य<br/>गायों में प्रयुक्त होने वाले बस्ति द्रव्य<br/>घोड़ों में प्रयुक्त होने वाले बस्ति द्रव्य<br/>गधे व अँट में प्रयुक्त होने वाले बस्ति द्रव्य<br/>बकरी तथा भेड़ आदि छोटे पशुओं में प्रयुक्त<br/>होने वाले बस्ति द्रव्य<br/>हमेशा रोगी रहने वाले व्यक्ति<br/>सदा रोगी रहने का कारण<br/>सदा रोगी रहने वाले व्यक्तियों की चिकित्सा<br/>फलवर्ति का प्रयोग<br/>निरूह बस्ति का प्रयोग<br/>वातनाशक बस्तियाँ (कुल संख्या तीन)<br/>१०९७<br/>बलादि निरूह बस्ति<br/>पित्तनाशक बस्तियाँ (कुल संख्या तीन)<br/>१०९७<br/>शिशुओं तथा वृद्ध पुरुषों में बस्ति का प्रयोग<br/>कफनाशक बस्तियाँ (कुल संख्या तीन)<br/>१०९८<br/>अध्यायोक्त विषयों का उपसंहार<br/>पक्वाशय शोधक बस्तियाँ (कुल संख्या चार)<br/>१०९८<br/>१२. द्वादशोऽध्यायः<br/>१११२-<br/>शुक्र व मांसवर्धक बस्तियाँ (कुल संख्या चार)<br/>१०९९<br/>(उत्तरवस्तिसिद्धि)<br/>सांग्राहिक बस्तियों<br/>१०९९<br/>संशोधित व्यक्ति की रक्षा की विधि<br/>परिस्त्राव नाशक वस्तियाँ<br/>१०९९<br/>दाहनाशक बस्तियाँ<br/>१०९९<br/>अग्नि की रक्षा हेतु संसर्जनक्रम की प्रयोग<br/>संशोधन के पश्चात् रसों के प्रयोग का क्रम<br/>परिकर्तिका नाशक बस्तियों<br/>११००<br/>आतुर को प्राकृत अवस्था में लाना<br/>प्रवाहिका नाशक बस्तियाँ<br/>१५००<br/>प्रकृति प्राप्त पुरुष के लक्षण<br/>विरेचन के अतियोग को दूर करने वाली बस्तियाँ<br/>११००<br/>महादोषकर भावों के त्याग का निर्देश<br/>रक्तस्त्राव रोधक (जीवादान नाशक) बस्तियाँ<br/>वर्ज्य आठ भावों के सेवन से होने वाली हानियों<br/>रक्तपित्तनाशक बस्तियाँ<br/>११०२<br/>महादोषकर भावों से उत्पन्न होने वाले रोग एवं<br/>प्रमेह नाशक बस्ति<br/>११०२<br/>उनकी चिकित्सा<br/>अन्य रोगों में बस्तियों की कल्पना<br/>११०२<br/>उच्च आवाज में अथवा अधिक बोलने से होने<br/>अध्यायोक्त विषयों का उपसंहार<br/>११०२<br/>वाली व्याधियों<br/>११. एकादशोऽध्यायः<br/>रथ आदि के क्षोभ में होने वाली व्याधियों<br/>(फलमात्रासिद्धि)<br/>अतिचङ्कमण से होने वाली व्याधियाँ<br/>फलादि विषयक सम्भाषापरिषद्<br/>११०४<br/>विभिन्न आचार्यों के विचार<br/>११०४<br/>एक ही स्थिति में अधिक देर तक बैठने के क<br/>रथ क्षोभ से होने वाले रोग<br/>भगवान पुनर्वसु आत्रेय का समाधान<br/>११०५<br/>पुनर्वसु आत्रेय के विचारों का स्वागत<br/>अजीर्ण भोजन एवं अध्यशन से होने वाले र<br/>विषम तथा अहित भोजन से हो वाले रोग<br/>(५२)<br/>विषय<br/>पृष्ठ विषय<br/>दिवा शयन से होने वाले रोग<br/>द्विपञ्चमूलादि यापना बस्ति<br/>स्वी-प्रसङ्ग से होने वाली व्याधियाँ<br/>वृष्यतम स्नेह बस्तियों<br/>चतुः स्नेह अनुवासन बस्ति<br/>महादोषकर भावों के सेवन से उत्पन्न विकारों<br/>को चिकित्सा<br/>१९१९<br/>बलादि यमक अनुवासन बस्ति<br/>यापना बस्तियों का उपयोग<br/>सहचरादि अनुवासन बस्ति<br/>मुस्तादि यापना बस्ति<br/>स्नेह का शत या सहस्र बार पाक करना<br/>एरण्डमूलादि यापना बरित<br/>सहचरादि यापना बस्ति<br/>११२२<br/>बृहत्यादि यापना बस्ति<br/>११२२<br/>प्रथम बलादि यापना बस्ति<br/>११२२<br/>द्वितीय बलादि यापना बस्ति<br/>११२२<br/>हपुषादि यापना बस्ति<br/>११२३<br/>हस्वपञ्चमूलादि यापना बस्ति<br/>११२३<br/>तृतीय बलादि यापना बस्ति<br/>११२३<br/>चतुर्थ बलादि यापना बस्ति<br/>११२३<br/>शालपण्र्ष्यादि यापना बस्ति<br/>११२३<br/>स्थिरादियापना बस्ति<br/>११२४<br/>तीन अन्य यापना बस्तियाँ<br/>११२४<br/>बलवर्धक बस्तियाँ (तित्तिरादि यापना बस्ति)<br/>११२५<br/>द्विपञ्चमूलादि यापना बस्ति<br/>११२६<br/>मयूरादि यापना बस्ति<br/>११२६<br/>विष्किरादि प्राणियों के मांस से निर्मित यापना<br/>यापना संज्ञक स्नेह बस्तियों के गुण<br/>बस्ति प्रयोग काल में अपथ्य<br/>यापना बस्तियों का संक्षेप में वर्णन<br/>बस्ति के वापस न लौटने पर कर्तव्य<br/>यापना बस्ति के अत्याधिक सेवन के दोष<br/>यापना बस्ति के अति प्रयोग से उत्पन्न उपद्रव<br/>की चिकित्सा<br/>महादोषकर प्रकरण का उपसंहार<br/>सिद्धिस्थान की निरुक्ति<br/>अग्निवेशतन्त्र में अध्यायों की संख्या<br/>संहिता के अध्ययन का फल<br/>प्रतिसंस्कर्ता के कार्य<br/>संपूरितकर्ता दृढ़बल<br/>अपूर्ण विषयों को पूर्ण करने की प्रक्रिया<br/>छत्तीस तन्त्र युक्तियाँ<br/>तन्त्रयुक्तियों की गणना<br/>बस्तियाँ<br/>११२६<br/>वृष्य बस्तियाँ<br/>शास्त्र में तन्त्र युक्तियों का विवेचन<br/>११२६<br/>कूर्मादि यापना बस्ति<br/>तन्त्रयुक्तियों का महत्त्व<br/>कर्कटकादि यापना बस्ति<br/>११२६<br/>एक शास्त्र के ज्ञान से अन्य शास्त्रों का ज्ञान<br/>गोवृषादि यापना बस्ति<br/>११२६<br/>शास्त्रज्ञान का महत्त्व<br/>दशमूलादि यापना बस्ति<br/>११२७<br/>अग्निवेशतन्त्र के अध्ययन का फल<br/>यापना बस्तियों के अन्य योग<br/>११२७<br/>चरकसंहिता का महत्त्व<br/>मधुतैलादि यापना बस्ति<br/>अध्यायोक्त विषयों का उपसंहार |
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA) | |
Source of classification or shelving scheme | Dewey Decimal Classification |
Koha item type | BOOKS |
Withdrawn status | Lost status | Source of classification or shelving scheme | Damaged status | Not for loan | Collection code | bill no. | bill date | Home library | Current library | Date acquired | Source of acquisition | Coded location qualifier | Cost, normal purchase price | volume | Total Checkouts | Full call number | Accession No | Date last seen | Price effective from | Koha item type | Public note | Checked out | Date checked out |
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Dewey Decimal Classification | Not For Loan | MAMCRC | COV-11923 | 26/07/2022 | MAMCRC LIBRARY | MAMCRC LIBRARY | 23/08/2022 | Chaukhambha Orientalia | REF | 585.00 | Vol.II | 615.538 KUS | A2803 | 23/08/2022 | 23/08/2022 | BOOKS | Reference Books | ||||||
Dewey Decimal Classification | MAMCRC | COV-11923 | 26/07/2022 | MAMCRC LIBRARY | MAMCRC LIBRARY | 23/08/2022 | Chaukhambha Orientalia | 585.00 | Vol.II | 2 | 615.538 KUS | A2804 | 23/07/2024 | 23/08/2022 | BOOKS | 21/10/2024 | 23/07/2024 | ||||||
Dewey Decimal Classification | MAMCRC | COV-11923 | 26/07/2022 | MAMCRC LIBRARY | MAMCRC LIBRARY | 23/08/2022 | Chaukhambha Orientalia | 585.00 | Vol.II | 5 | 615.538 KUS | A2805 | 23/11/2024 | 23/08/2022 | BOOKS | 26/10/2024 |