Susruta Samhita : Sutra avam Nidan Sthan (Record no. 18181)
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fixed length control field | 19721nam a22001817a 4500 |
003 - CONTROL NUMBER IDENTIFIER | |
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020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER | |
International Standard Book Number | 9788176373098 |
041 ## - LANGUAGE CODE | |
Language code of text/sound track or separate title | HINDI |
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER | |
Classification number | 615.538 THA |
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME | |
Author name | Thakaral,Keval Krishana |
245 ## - TITLE STATEMENT | |
Title | Susruta Samhita : Sutra avam Nidan Sthan |
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. (IMPRINT) | |
Place of publication, distribution, etc. | Varanasi |
Name of publisher, distributor, etc. | Chaukhambha Orientalia |
Date of publication, distribution, etc. | 2020 |
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION | |
Page | 915p. |
500 ## - GENERAL NOTE | |
General note | विषयानुक्रमणिका<br/>(सूत्रस्थान)<br/>प्राय (अध्याय<br/>धन्यमी के फम शिष्य में जाकर<br/>प्रश्न करना<br/>भगवान धन्वन्तरि द्वारा औषधेय आदि शिष्यों<br/>का स्वागत करना<br/>आयुर्वेद अखर्च वेद का अपांग है<br/>आयुर्वेद अहा है<br/>शल्य का लक्षण<br/>3<br/>१६<br/>ऐस का अधिष्ठान<br/>१७<br/>ऐत्रों का संशोधन<br/>१७<br/>२७<br/>१७<br/>१८<br/>१८<br/>१२<br/>सार प्रकार का आहार<br/>आचार<br/>५ औषधियों के दो भेद<br/>७ जङ्गम औषधियों के प्रयोजय अवयव<br/>भार प्रकार की स्थावर औषधियां<br/>चार प्रकार की जङ्गम औषधियां<br/>स्थावर औषधियों के प्रयोजय अंङ्ग<br/>७ पार्थिव द्रव्य<br/>शालाक्य का लक्षण<br/>कार्यचिकित्सा का लक्षण<br/>भूत विद्या का लक्षण<br/>कौमार भूल्य का लक्षण<br/>७ कालकृत परिस्थितियां<br/>अगद तंत्र का लक्षण<br/>रसायन तंत्र का लक्षण<br/>वाजीकरण का लक्षण<br/>शल्य तन्त्र के ज्ञान को मूल मानकर आयुर्वेद<br/>के ज्ञान की प्रार्थना<br/>सभी शिष्यों की ओर से सुश्रुत को प्रश्न<br/>करने की सहमति जताना<br/>आयुर्वेद का प्रयोजन<br/>आयुर्वेद की निरुक्ति<br/>७<br/>७ आगन्तु रोगों के दो प्रकार<br/>८<br/>८<br/>शारीरिक विकारों का चार प्रकार का वर्ग<br/>पुरुष, व्याधि, औषधि एवं क्रियाकाल की संक्षेप<br/>व्याख्या<br/>चिकित्सा शास्त्र का बीज<br/>सुश्रुत संहित में १२० अध्याय एवं ५ स्थान<br/>काशीपति दिवोदास धन्वन्तरि द्वारा प्रकाशित ज्ञान से लोक एवं परलोक में सुख प्राप्ति<br/>९<br/>द्वितीयोऽध्यायः (द्वितीय अध्याय)<br/>शल्य विज्ञान आयुर्वेद का श्रेष्ठ एवं आदि अंग<br/>९<br/>शिष्योपनयनीय अध्याय की व्याख्या<br/>१०<br/>उपनीत करने योग्य शिष्य के गुण<br/>शल्य तन्त्र की प्रशंसा<br/>११<br/>उपनयनोपरान्त शिष्य की दीक्षा विधि<br/>ब्रह्मा द्वारा आयुर्वेद का पहला प्रवचन एवं<br/>आगे की परम्परा<br/>१२<br/>शिष्य का आचरण<br/>आदिदेव धन्वन्तरि का आत्मपरिचय<br/>१२<br/>आयुर्वेद के अधिष्ठान पुरुष का निरुपण<br/>१२<br/>व्याधि का निरुपण<br/>व्याधियों के चार प्रकार<br/>कौन किसका उपनयन कर सकता है<br/>रोगी के प्रति शिष्य का व्यवहार<br/>अनध्याय काल<br/>१४ तृतीयोऽध्यायः (तृतीय अध्याय)<br/>१४<br/>अध्ययन सम्प्रदानीष अध्याय की व्याख्या<br/>आगन्तुक व्याधि<br/>शारीरिक व्याधि<br/>मानसिक व्याधि<br/>१४ पांच स्थानों में एक सौ बीस अध्याय<br/>१४ सूत्र स्थान के अध्यायों के नाम<br/>१५ निदान स्थान के अध्यायों के नाम<br/>१६<br/>जतके अध्यायों के नाम<br/>३६<br/>सातत्य के अन्तर्गत शाक्य तन्त्र के अध्यायों<br/>३६<br/>३८<br/>कुमार तन्त्र के अध्यायों को नाम<br/>कापचिकित्सा के अध्यायों का नाम<br/>३८ रक्षा कर्म<br/>३९<br/>भूत किया के अध्यायों का नाम<br/>३९<br/>शास्त्र के अलंकरण<br/>उत्तर तन्त्र श्रेष्ठ तन्त्र है<br/>३९<br/>उत्तर तन्व के अन्तर्गत कहे गए विषय<br/>३९<br/>কনায় तिर्यक छेदन के निर्देश<br/>चन्द्राकार आदि द्वण कहीं बनाएँ<br/>विधि अनुसार छेदन न करने पर उपद्रव विना भोजन कराए किन रोगों के शस्त्रकर्मनिर्दे<br/>शस्वकर्म करने के पश्चात कर्म<br/>श्रेण धूपन<br/>आगार में प्रवेश करें आचारिक उपदेश<br/>तीसरे दिन पट्टी खोलकर बदले दूसरे दिन पट्टी खोलने से हानि<br/>कषाय, आलेपन, बन्ध, आहार तथा<br/>४०<br/>आचार हेतु निर्देश<br/>उभयज्ञ चिकित्सक का महत्व<br/>राजा द्वारा वध किए जाने योग्य भिषक्<br/>४० रोपण क्रिया हेतु निर्देश<br/>औषधियों का विधिपूर्वक एकत्र करना<br/>४१<br/>रोपण क्रिया हेतु निर्देश<br/>कर्मानभिज्ञ वैद्य<br/>४२<br/>ऋतु अनुसार पट्टी बदलनी चाहिए<br/>उभयज्ञ वैद्य के गुण<br/>४२<br/>आयुर्वेद के अध्ययन की विधि<br/>४२<br/>शीघ्र बढ़ने वाले रोग में तदानुसार चिकित्सा<br/>विधि अपनाएँ<br/>शिष्य के गुण<br/>४४<br/>शस्त्रकर्म से उत्पन्न हुई तीव्र वेदना को शान्त<br/>चतुर्थोऽध्यायः (चौथा अध्याय)<br/>करने का उपाय<br/>प्रभाषणीय नामक अध्याय की व्याख्या<br/>४४<br/>षष्ठोऽध्यायः (छठा अध्याय)<br/>प्रभाषण का प्रयोजन<br/>४४<br/>प्रभाषण की व्याख्या की आवश्यकता<br/>४५<br/>काल की व्याख्या<br/>अन्य शास्त्रों का ज्ञान की आवश्यकता<br/>४७<br/>ऋतुचर्या अध्याय की व्याख्या<br/>संवत्सर स्वरुप काल की व्याख्या<br/>चिकित्सा कर्म करने का अधिकारी वैद्य<br/>४७<br/>संवत्सर के निमेष आदि अवयवों की व्याख्या<br/>औषधेनव आदि विद्वानों के शल्य तन्त्र<br/>४८ छः ऋतुऐं<br/>पञ्चमोऽध्यायः (पांचवां अध्याय)<br/>अग्रोपहरणीय अध्याय की व्याख्या<br/>दो अयन दक्षिण और उत्तर<br/>४८<br/>वायु प्रजा का पालन करती है<br/>चिकित्सा के तीन प्रकार के कर्म<br/>४८<br/>पांच संवत्सर का एक युग<br/>शस्त्रकर्म के आठ प्रकार<br/>४९<br/>ऋतुओं में दोषों का संचय, प्रकोप तथा प्र<br/>शस्त्रकर्म करने के पूर्व समीप रखने योग्य वस्तुएँ<br/>५०<br/>का कारण<br/>शस्त्रक्रिया का निर्देश<br/>५०<br/>संचित दोषों का निर्हरण<br/>शस्त्रकर्म से बने व्रण के गुण<br/>५१<br/>ऋतु अनुसार दोषों का उपशम<br/>प्रशंसनीय व्रण<br/>५२<br/>शस्त्रकर्म करने वाले वैद्य के गुण<br/>५२<br/>आवश्यकता पड़ने पर एक से अधिक व्रण बनाना<br/>५३<br/>दिन एवं रात्रि आदि काल में दोषों का उ<br/>अव्यापन्न ऋतुओं में औषधियां ओज वध<br/>ऋतुओं का व्यापत होना अदृष्ट के कारण<br/>(४२)<br/>८००<br/>अर्बुद रोग की सम्माप्ति<br/>आगन्तुज विद्रधि राकजन्य विद्रधि<br/>८००<br/>अर्थद के छः प्रकार<br/>८०१<br/>अर्बुद के लक्षण<br/>स्फोट<br/>आभ्यनार विद्रधि<br/>आभ्यन्तर निद्रधियों के उत्पत्ति स्थान एवं लक्षण<br/>८०२<br/>माँसार्बुद<br/>मर्म स्थान पर उत्पत्र विद्रधि<br/>८०३<br/>अर्बुद की साध्यतासथ्यता<br/>विद्रधियों का स्राव विसावण द्वार<br/>८०४<br/>द्विरर्बुद, अध्यर्बुद असाध्य<br/>८०४<br/>अर्बुद के पाक न होने का कारण<br/>रक्त विद्रधि<br/>विद्रधि एवं गुल्म रोग में भेद<br/>८०५<br/>गलगण्ड निदान<br/>८०८<br/>अस्थि विद्रधि<br/>दशमोऽध्यायः (दसवां अध्याय)<br/>विसर्पनाड़ौस्तनरोग निदान अध्याय की व्याख्या<br/>८०९<br/>८०९<br/>वातज, कफज एवं मेदजन्य गलगण्ड के<br/>गलगण्ड की साध्यतासाध्यता<br/>गलगण्ड का आकार<br/>द्वादशोऽध्यायः (बारहवां अध्याय)<br/>विसर्प के लक्षण<br/>दोषानुसार विसों के लक्षण<br/>८१०<br/>वातजन्य विसर्प<br/>पित्तजन्य विसर्प<br/>८१०<br/>सात प्रकार की वृद्धियां<br/>वृद्धि, उपदंश, श्लीपद निदान अध्याय की व्य<br/>८११<br/>वृद्धि रोग की परिभाषा<br/>श्लेष्म जन्य विसर्प<br/>त्रिदोषज विसर्प<br/>८११<br/>पूर्वरुप<br/>८१२<br/>विभिन्न वृद्धियों के लक्षण<br/>क्षतजन्य विसर्प<br/>८१२<br/>उपदंशरोग के कारण<br/>विसपों की साध्यासाध्यता<br/>८१३<br/>उपदंश रोग के पांच प्रकार<br/>नाड़ी रोग<br/>८१४<br/>शलीपद रोग का निदान<br/>आठ प्रकार के नाड़ी व्रण<br/>८१५<br/>तीन प्रकार का श्लीपद रोग<br/>स्त्रियों में स्तन रोग<br/>८१७<br/>श्लीपद की साध्यतासाध्यता<br/>कन्याओं में स्तन रोग नहीं होते<br/>८१८<br/>त्रयोदशोऽध्यायः (तेरहवां अध्याय)<br/>स्तन्य (माता के स्तनों से निकलने वाला दूध)<br/>८१८<br/>क्षुद्र रोग निदान अध्याय की व्याख्या<br/>स्तन्य के स्त्राव का कारण<br/>८१९<br/>चवालीस क्षुद्र रोगों के नाम<br/>वायु से दूषित स्तन्य<br/>८२१<br/>अजगल्लिका के लक्षण<br/>प्रसन्न स्तन्य की परीक्षा<br/>८२१<br/>यवप्रख्या के लक्षण<br/>पांचों स्तन रोगों के लक्षण वाह्य विद्रधि के समान<br/>८२२<br/>अन्धालजी के लक्षण<br/>एकादशोऽध्यायः (ग्यारहवां अध्याय)<br/>विवृता के लक्षण<br/>ग्रन्थि, अपची, अर्बुद, गलगण्ड निदान<br/>कच्छपिका के लक्षण<br/>अध्याय की व्याख्या<br/>८२३<br/>बल्मीक के लक्षण<br/>ग्रन्थि के लक्षण<br/>८२३<br/>इन्द्रवृद्धा के लक्षण<br/>वातजन्य ग्रन्थि<br/>८२४<br/>पनसिका के लक्षण<br/>पित्तजन्य ग्रन्थि<br/>कफजन्य ग्रन्थि<br/>८२४<br/>पाषाणगर्दभ के लक्षण<br/>मेदोग्रन्थि<br/>८२४<br/>जाल गर्दभ के लक्षण<br/>शिराजन्य ग्रन्थि<br/>८२५<br/>इरिवेल्लिका के लक्षण<br/>अपची रोग की सम्प्राप्ति<br/>कक्षा के लक्षण<br/>गन्धनामा के लक्षण<br/>८४९<br/>क्षण<br/>८५३<br/>८५१<br/>निदान अष्णाय की मा<br/>कदर के लक्षण<br/>COT<br/>तुमत के लक्षण<br/>८५३ ८५४<br/>नम्र के कारण<br/>८७१<br/>रुक के लक्षण<br/>भा के दो प्रकार सन्धिमुक्त काण्ड<br/>८७<br/>अरुषिका के लक्षण<br/>८५५<br/>सन्धिमुक्त के स. मेद<br/>८७२<br/>पलित के लक्षण<br/>८५५<br/>सन्धिमुक्त के सामान्य राखण मेदानुसार सन्धिमुक्त के लक्षण<br/>८७२<br/>17<br/>८५५<br/>८७३<br/>मसूरिका के लक्षण<br/>८५६<br/>काण्डमग्र के बारह भेद<br/>८७४<br/>के लक्षण<br/>पचिनीकण्टक के लक्षण<br/>८५६<br/>बारह काण्डभग्नों के विशिष्ट लक्षण<br/>८७८<br/>CH<br/>८३ तिलकालक के लक्षण मषक के लक्षण<br/>८३<br/>८४<br/>न्यच्छ के लक्षण<br/>चर्मकील के लक्षण<br/>के लक्षण<br/>परिवर्तिका के लक्षण<br/>अवपाटिका के लक्षण<br/>निरुद्धप्रकश के लक्षण<br/>अनुमणि के लक्षण<br/>८५७<br/>कृच्छ्रसाध्य भन के लक्षण<br/>८७७<br/>८५७<br/>असाध्य भय के लक्षण<br/>८७<br/>८५८<br/>आयु की अवस्था के अनुसार भग्र का साध्यत्व<br/>८७<br/>८५८<br/>अस्थि विशेष में भग्र विशेष<br/>८७<br/>८५९<br/>षोडशोऽध्यायः (सोलहवां अध्याय)<br/>८५९<br/>मुखरोगनिदान अध्याय की व्याख्या<br/>८<br/>८५९<br/>मुख रोगों की संख्या<br/>८५९<br/>ओष्ठ रोगों की संख्या<br/>८६०<br/>वातजन्य ओष्ठ रोगों के नाम<br/>८६१<br/>शीतादादि रोगों के विशिष्ट लक्षण<br/>सन्निरुद्धगुद के लक्षण अहिपूतन के लक्षण<br/>८६२<br/>दन्तगत रोगों के नाम<br/>८६२<br/>दालनादि रोगों के विशिष्ट लक्षण<br/>४<br/>वृषणकच्छू के लक्षण<br/>८६३<br/>जिह्वागत रोगों के नाम<br/>गुदभ्रंश के लक्षण<br/>८६३<br/>दोष के भेदानुसार कण्टक रोगों के लक्षण<br/>चतुर्दशोऽध्याय (चौदहवां अध्याय)<br/>अलास के लक्षण<br/>शुकदोष निदान अध्याय की व्याख्या<br/>८६३<br/>उपजिह्वा के लक्षण<br/>शूकदोषों की सामान्य सम्प्राप्ति एवं भेद<br/>८६४<br/>तालुगत रोगों के नाम<br/>सर्षपिका के लक्षण<br/>८६५<br/>कण्ठशुण्डी आदि रोगों के विशिष्ट लक्षण<br/>अष्ठीलिका के लक्षण<br/>कण्ठगतरोगों के नाम<br/>ग्रथित कुम्भिका, अलजी एवं मृदित के लक्षण<br/>रोहिणी के भेदानुसार विशिष्ट लक्षण<br/>संमूढपिडिका, अवमन्थ के लक्षण<br/>कण्ठ के रोगों के विशिष्ट लक्षण<br/>पुष्करिका के लक्षण<br/>सर्वसर मुखरोग के भेद<br/>स्पर्शहानि के लक्षण<br/>दोषानुसार सर्वसर के भेदों के विशिष्ट |
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA) | |
Source of classification or shelving scheme | Dewey Decimal Classification |
Koha item type | BOOKS |
Withdrawn status | Lost status | Source of classification or shelving scheme | Damaged status | Not for loan | Collection code | bill no. | bill date | Home library | Current library | Date acquired | Source of acquisition | Coded location qualifier | Cost, normal purchase price | volume | Total Checkouts | Full call number | Accession No | Date last seen | Price effective from | Koha item type | Public note | Checked out | Date checked out |
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Dewey Decimal Classification | Not For Loan | MAMCRC | COV-11923 | 26/07/2022 | MAMCRC LIBRARY | MAMCRC LIBRARY | 24/08/2022 | Chaukhambha Orientalia | REF | 575.00 | Vol. I | 615.538 THA | A2845 | 30/06/2025 | 24/08/2022 | BOOKS | Reference Books | ||||||
Dewey Decimal Classification | MAMCRC | COV-11923 | 26/07/2022 | MAMCRC LIBRARY | MAMCRC LIBRARY | 24/08/2022 | Chaukhambha Orientalia | 575.00 | Vol. I | 3 | 615.538 THA | A2846 | 11/03/2025 | 24/08/2022 | BOOKS | 09/06/2025 | 11/03/2025 | ||||||
Dewey Decimal Classification | MAMCRC | COV-11923 | 26/07/2022 | MAMCRC LIBRARY | MAMCRC LIBRARY | 24/08/2022 | Chaukhambha Orientalia | 575.00 | Vol. I | 4 | 615.538 THA | A2847 | 09/11/2024 | 24/08/2022 | BOOKS | 07/02/2025 | 09/11/2024 |