Susruta Samhita : Shaarira Sthan Vivechan (Record no. 18194)

MARC details
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003 - CONTROL NUMBER IDENTIFIER
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020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER
International Standard Book Number 9788176373128
041 ## - LANGUAGE CODE
Language code of text/sound track or separate title HINDI
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER
Classification number 615.538 SHA
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME
Author name Sharma,Mukesh Kumar
245 ## - TITLE STATEMENT
Title Susruta Samhita : Shaarira Sthan Vivechan
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. (IMPRINT)
Place of publication, distribution, etc. Varanasi
Name of publisher, distributor, etc. Chaukhambha Orientalia
Date of publication, distribution, etc. 2014
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION
Page 242p.
500 ## - GENERAL NOTE
General note विषयानुक्रमणिका<br/>अथवा शरीर निर्माण के आकार का स्वरूप<br/>दशाया इन्द्रियों का निर्माण<br/>एकादश इन्द्रियी<br/>शरीर अथवा पुरुष का संगठन तथा इसके चौबीस<br/>इन्द्रियों के कार्य<br/>प्रकृति तथा विकृति का संगठन<br/>अध्यक्त, महान, अहंकार आदि सभी तत्त्वों के नियन्त्रक पुरुष का स्वरूप एवं इसका क्रियात्मक स्वरूप<br/>W<br/>प्रकृति तथा पुरुष में समानतायें एवं विषमतायें पुरुष के त्रिगुण स्वरूप का मत<br/>शरीर अथवा सृष्टि के निर्माण में मौलिक कारण<br/>भूतग्राम का स्वरूप<br/>पंचमहाभूतों की चिकित्सा में महत्ता<br/>इन्द्रियों की पाँचभौतिकता<br/>महामूर्ती के संगठन में एक दूसरे का स्वा<br/>८ दोषों तथा मलों से दूषित शुकं अथवा शुक्र के दोष अथवा शुक्र की विकृतियों<br/>(अव्यक्त, महान, अहंकार तथा प<br/>आठ प्रकृतियाँ)<br/>सोलह विकार (एकादश इन्द्रियी रा<br/>२१ - सोलह विकार) तया क्षेत्रा/आला/पुरुष का २९<br/>अध्याय- द्वितीय<br/>दोषों तथा मलों से विकृत शुक्र के लक्षण<br/>१० दोषों तथा मलों से दूषित आर्तव अथवा आर्तव के<br/>१५ १४ पूयप्रख्य अर्थात् पूय जैसे तथा मात्रा में कम शुक्र<br/>ग्रन्थिभूत अर्थात् गाँठदार शुक्र की चिकित्सा<br/>इन्द्रियों द्वारा अपने विषयों को ग्रहण करने की प्रक्रिया १५ चिकित्सा किसकी की जाती है? पुरुष की<br/>विट्प्रभ शुक्र की चिकित्सा<br/>२२<br/>२३<br/>१२ १२ दूषित शुक्र की चिकित्सा<br/>दोष अथवा आर्तव की विकृतियों<br/>२४<br/>२४<br/>१४ कुणप गन्धि शुक्र की चिकित्सा<br/>२४<br/>२४<br/>की चिकित्सा<br/>२५<br/>२५<br/>शुक्र दोषों की चिकित्सा का सामान्य सिद्धान्त १५ शुद्ध शुक्र के लक्षण<br/>२५<br/>कर्मपुरुष अर्थात् जीवित शरीर के गुण सात्त्विक पुरुष के अथवा सत्त्व गुण के लक्षण<br/>२५<br/>१७ शुक्र निर्माण<br/>२६<br/>राजसिक पुरुष के अथवा राजस गुण के लक्षण तामसिक पुरुष के अथवा तमस गुण के लक्षण शरीर में पंचमहाभूतों के लक्षण<br/>१८. शुक्र के कर्म<br/>१८ शुक्रोत्पादक अंग<br/>२६<br/>२६<br/>१६ शुद्ध शुक्र का स्वरूप<br/>२६<br/>परिभाषा तथा कर्मपुरुष<br/>शरीर में आकाश महाभूत से बनने वाले या उत्पन्न भाव<br/>शरीर में वायु महाभूत से बनने वाले या उत्पन्न भाव<br/>शरीर में अग्नि महाभूत से बनने वाले या उत्पन्न भाव शरीर में जल महाभूत से बनने वाले या उत्पन्न भाव<br/>शरीर में पृथ्वी महाभूत से बनने वाले या उत्पन्न भाव पंचमहाभूतों का त्रिगुणात्मक संगठन<br/>१६ शुक्राणु जनन या शुक्र निर्माण (Spermatogenesis) २७ १६ शुक्राणु निर्माण (Spermiogenesis)<br/>शुक्राणुओं की परिपक्वता (Maturation of<br/>Spermatozoa)<br/>२० २० आर्तव अथवा स्त्री बीज की व्याधियों अथवा उसमें<br/>शुक्राणु (Spermatozoa)<br/>२० व्याप्त दोषों की चिकित्सा<br/>(Ovulation)<br/>प्रोजेस्ट्रोन के प्रभाव<br/>द्वितीयक विश्वापुजन कोशिकत की संरचना (Structure of Secondary Oocyte)<br/>अन्दर के कारण<br/>असुग्टर के लक्षण<br/>असम्दर में रक्त के अधिक मात्रा में निकल जाने से<br/>लक्षण<br/>असुन्दर की चिकित्सा<br/>नष्ट आर्तव अथवा अनार्तव के कारण<br/>नष्ट आर्तव अथवा अनार्तव की चिकित्सा<br/>श्रीणार्तव अथवा अल्पार्तव<br/>शुक तथा आर्तव के दोषों के दूर होने पर<br/>प्रजोत्पादन सामर्थ्य<br/>रजस्वला स्त्री के लिये सवृत्त<br/>ऋतुमती की चर्चा<br/>(2)<br/>पुरातन का सिद्धान्त<br/>१५ माता-पिता के द्वारा उत्पन्न संतान<br/>३५ संक्रमित स्त्री जनता का संतान पर प्रगान<br/>ॐ असम्यक मैवतु विना उपक्रम का संयम पर 36 प्रभाव<br/>मानसिक अवस्थाओं अपना चिन्तन का संतान पर प्रभाव<br/>३६ मैथुन की अवस्थाओं का संतान पर प्रनाक<br/>३६ सशुक्र तथा अशुक्र चण्ड ३७ गर्भ की आठ विकृतियाँ<br/>चरकानुसार ३७ माता-पिता के आहार, आचरणादि का गर्न अथवा<br/>भावी सन्तान पर प्रभाव ३७<br/>अनस्थिगर्न<br/>३७ आभासी अथवा मिथ्या गर्भ<br/>३७ विकृताकृति गर्न के कारण ३८<br/>६१<br/>६२<br/>६७<br/>६२<br/>ऋतुकाल के प्रथम दिन से ही स्त्री के निषेध भाव<br/>३८ माता-पिता के आचरणों का संतान पर प्रमाव दौहृद की अवधारणा करने से गर्म पर पड़ने वाले प्रभाव ६३<br/>ऋतुकाल के पश्चात् ग्राम्यधर्म निर्वहन<br/>स्त्री के मानसिक चिन्तनादि का परिणाम<br/>सन्तानोत्पादन हेतु चिन्तन<br/>ऋतुकाल में मैथुन के परिणाम<br/>गर्भाधान के पश्चात् सम्पादनीय उपक्रम<br/>गर्भाधान के लिये आवश्यक तत्त्व<br/>गर्भाधान (Fertilization)<br/>Vital factors for Fertilization/conception<br/>(गर्भाधान)<br/>पुंबीज विवेचना शुक्राणु (Semen)<br/>शुक्र का संगठन<br/>स्त्री बीज विवेचना<br/>स्त्रीबीज अथवा अण्डाणु (The Ovum)<br/>क्षेत्र<br/>The main external structures of the<br/>female reproductive system<br/>ऋतु क्षेत्र, अम्बु तथा बीजों के गुणवत्ता पूर्ण होने के<br/>प्रभाव<br/>गर्म<br/>के विभिन्न वर्षों (Complexions) का कारण<br/>३८ गर्भस्थ का उत्सर्जन का सिद्धान्त<br/>३६ गर्भ रोता है अथवा नहीं<br/>३६ गर्भ के श्वासादि का सिद्धान्त ३९<br/>६३<br/>६३<br/>६3<br/>६३<br/>गर्भ की शारीरिक बनावट का आनुवांशिक सिद्धान्त ६४ ४० पूर्व जन्म की स्मृति का सिद्धान्त<br/>४० ४१ पूर्वजन्म के कर्म फल<br/>अध्याय- तृतीय<br/>४१ शुक्र तथा आर्तव की पाँचभौतिकता<br/>४२ शुक्र तथा आर्तव का मिश्रित होकर गर्भ बनना तथा<br/>४२ गर्भ के पर्याय<br/>४४ स्त्री तथा पुरुष बीजों के आधार पर गर्भ लिंग<br/>४४ निर्धारण का सिद्धान्त<br/>४६ ऋतुकाल की समयावधि<br/>४६ ऋतुमती स्त्री अथवा ऋतुकाल में स्त्री में प्रकट<br/>होने वाले लक्षण<br/>ऋतुकाल के पश्चात् योनि का स्वरूप<br/>५६ मासिक धर्म की प्रक्रिया तथा आर्तव की प्रकृति अथव<br/>उसका स्वरूप<br/>م<br/>आर्तव काल की चयमर्यादा<br/>आर्तव काल (Menstruating age) आर्तव प्रवृत्ति (Process of menstruation)<br/>आर्तव बाहक अंग<br/>आर्तव उत्पत्ति प्रक्रिया<br/>स्त्री पुनरुत्पादक चक्र (Female Reproductive Cycle)<br/>डिम्बग्रन्धि चक्र (Ovarian cycle)<br/>स्त्री पुनरूत्पादक चक्र में हारमोनीय नियन्त्रण स्त्री पुनरूत्पादक चक्र की अवस्थायें (PHASES OF FEMALE REPRODUCTIVE CYCLE)<br/>अन्त पुष्प<br/>डिम्बजनन (Oogenesis)<br/>डिम्बक्षरण (Ovulation)<br/>प्रोजेस्ट्रोन के प्रभाव<br/>द्वितीयक डिम्बाणुजन कोशिका की संरचना (Structure of Secondary Oocyte)<br/>काल के अनुसार पुल्लिंगी अथवा स्त्रीलिंगी सन्तान<br/>का हेतु सद्योगर्भा अर्थात् गर्भाधान होने के तत्काल पश्चात्<br/>स्त्री में पाये जाने वाले लक्षण<br/>गर्भवती स्त्री के लक्षण<br/>गर्भावस्था में निषिद्ध आहार-विहार<br/>दोषों के अभिघात के गर्भिणी के शरीर के पाड़ित<br/>होने के परिणाम<br/>गर्भ का विकास मासानुमासिक वृद्धि के अनुसार दौहृद अवमानना के परिणाम<br/>गर्भिणी के विभिन्न मनोरथों (दौहृदों) के परिणाम गर्भ के पूर्वजन्म का दौहृद पर प्रभाव<br/>गर्भ वृद्धि अन्य संहिताओं के अनुसार (विवेचना)<br/>गर्भ वृद्धि आधुनिक दृष्टिकोण से<br/>गर्भ पोषण<br/>गर्भ में प्रथम उत्पन्न होने वाले अंग विषयक सम्भाषा<br/>गर्भ के मातृज, पितृज आदि भाव<br/>गर्भ के पितृज शरीर लक्षण या पितृज भाव<br/>गर्भ के मातृज भाव<br/>गर्भ के रसज भाव<br/>गर्भ के आत्मज भाव<br/>२ सु.शा.<br/>(۹)<br/>६० सत्त प्रकृति राजप्रकृति<br/>६८ तामस प्रकृति<br/>शास्यज भाव<br/>गर्भ के सात्यज भाव<br/>६. गर्मिणी के शारीरिक लक्षणों के आधार पर भागी सन्तान का अनुमान<br/>६६ कर्म एवं आचरण के अनुसार संतान प्राप्ति गर्भ के अंग प्रत्यंगों के निर्माण का सिद्धान्त<br/>७० अध्याय- चतुर्थ<br/>८७४<br/>प्राण (11)<br/>७४<br/>सुश्रुतानुसार प्राण बारह (12)<br/>103<br/>७६ आचार्य चरक के अनुसार प्राणायतन दस (10)<br/>७८ अष्टांगहृदयानुसार प्राणायतन दस (10)<br/>त्वचा का निर्माण तथा स्वरूप ७८ आचार्य चरक के अनुसार छः त्वचायें या त्वचा के<br/>7012<br/>१०५<br/>छः स्तर<br/>७६ त्वचा का आधुनिक स्वरूप<br/>कला का स्वरूप<br/>७६ गर्भ स्थापना के पश्चात् आर्तव का रूक जाना<br/>७६ गर्भ में अंग निर्माण<br/>१०७<br/>१०८<br/>१०८<br/>१०८<br/>१०६<br/>११०<br/>११५<br/>११७<br/>११७<br/>८० यकृत, प्लीहा, फुफ्फुस तथा उण्डुक का निर्माण ११७<br/>हृदय की संरचना<br/>८० निद्रा वर्णन<br/>८० नींद आने का सिद्धान्त<br/>८१ सपने आने का कारण<br/>११८<br/>११८<br/>११६<br/>११६<br/>८२ नींद का कारण तथा सोते समय आत्मा की स्थिति ११<br/>८३ नींद लेने का उचित काल<br/>८४ ६० निद्रा नाश को दूर करने के उपाय<br/>उचित निद्रा<br/>६७ निद्रा नाश की अवस्था में निर्दिष्ट आहार<br/>६७ तन्द्रा के लक्षण (Lassitude, Exhaustion,<br/>Laziness)<br/>६८ जुम्मा के लक्षण (Yawning)<br/>१०<br/>१०<br/>६६ क्लम के लक्षण (Fatigue, Exhaustion, Languor) ६६ आलस्य के लक्षण (Idleness, Sloth)<br/>६६ उत्क्लेश के लक्षण (Nausea, Sickness)<br/>(١٠)<br/>(Largot, Depresion of the 1 mind, Debility, Lassitade)<br/>गौर के (Heaviness in the chen/ body, Immensity)<br/>(Fainting, Mental stupefiction, Delusions, Hallucination), w (Giddiness, Dizzi- ness, Confusion, Perplexity), तन्द्रा (Lassitude, Exhaustion, Laziness)<br/>(Sleep. Resting phase of body & mind) में दोषों की स्थिति<br/>गर्भ की सम्यक वृद्धि का कारण<br/>शरीर के कुछ भाग जो कभी नहीं बढ़ते<br/>शपौर के कुछ भाग जो हमेशा बढ़ते रहते हैं<br/>शशारीरिक प्रकृति का निर्धारण<br/>बातिक प्रकृति के लक्षण<br/>पैत्तिक प्रकृति के लक्षण<br/>कफज प्रकृति के लक्षण<br/>संसर्गज तथा नहाभूतानुसार देह प्रकृति के लक्षण प्रकृति अपरिवर्तनीय होती है<br/>१२२<br/>१२३ गर्भाधान या निषेचन (FERTILIZATION)<br/>अध्याय-पंचम<br/>शरीर की परिभाषा<br/>शरीर को छ भागों में विजन<br/>शरीर का संगत्व<br/>गर्भ में आत्मा के लक्षण<br/>गर्माधान आधुनिक दृष्टिकोण से<br/>१२३ युग्मकों का परिवहन (Transport of gametes)<br/>१२३ पुग्मकों का सन्निकटन<br/>१२३ युग्मकों का एक दूसरे के सम्पर्क में आना तथा मिलना<br/>१२४ शरीर के प्रत्यंगों का निर्देश<br/>१२४ पन्द्रह कोष्ठांग आचार्य चरक के अनुसार<br/>१२५ अष्टांग हृदय के अनुसार कोष्ठांग<br/>१२६ छप्पन (56) प्रत्यंग आचार्य चरक के अनुसार शरीर के अवयवों की संख्या<br/>१२७ शरीर की अन्य संरचनाओं की संख्या<br/>सात्विक काय अर्थात सत्च गुण वाले व्यक्तियों का वर्णन<br/>१२८<br/>1. ब्रहाकाय के लक्षण<br/>2. माहेन्द्रकाय के लक्षण<br/>3. वारुणकाय के लक्षण<br/>4. कौबेकाय के लक्षण<br/>5. गान्धर्वकाय के लक्षण<br/>6. याम्यकाय के लक्षण<br/>7. ऋषिकाय के लक्षण<br/>शरीर अवयवों की संख्या<br/>आशय वर्णन १२८ १२८<br/>आन्त्रों का परिमाण १२८<br/>१२८ Body)<br/>बहिर्मुख स्रोतस् (External Openings of the<br/>१२८ कण्डरा<br/>१२६<br/>जाल १२६<br/>राजस काय अर्थात् रजस् गुण वाले व्यक्तियों का वर्णन<br/>१२६ कुर्च<br/>1. आतुरसत्त्वकाय के लक्षण<br/>मांस रज्जु<br/>१३० सेवनियाँ<br/>2. सर्पसत्त्वकाय के लक्षण<br/>१३० अस्थि संघात<br/>3. शाकुनसत्त्वकाय के लक्षण<br/>१३० सीमन्त १३०<br/>4. राक्षससत्त्वकाय के लक्षण<br/>अस्थि संख्या १३१<br/>5. पैशाचकाय के लक्षण<br/>अस्थि वर्गीकरण<br/>. प्रेतसत्त्व के लक्षण<br/>१३१<br/>उमस काय अर्थात् तामस् गुण वाले व्यक्तियों का<br/>अस्थियों के कार्य एवं स्वरूप<br/>वर्णन<br/>१३१ अस्थि आधुनिक विवेचन<br/>पाशदकाय के लक्षण<br/>अस्थियों का वर्गीकरण (CLASSIFICAT<br/>१३१ OF BONES)<br/>मत्स्यसत्त्व के लक्षण<br/>(١٩)<br/>(PHYLOGENETIC CLASSIFICATION)<br/>2. विकास के आधार पर क (DEVELOPMENTAL CLASSIFICATION)<br/>3. (MORPHOLOGICAL CLASSIFICATION)<br/>निधनको शरीरका महल<br/>गांत के आधार पर सक्रिय करण सदियों की संख्या तथा विभाजन<br/>रामरक्षण (Preservative Materials)<br/>MA<br/>आत्मा कार<br/>शाखाओं की सक्कियर्थी (068)<br/>१५६ प्रत्यक्ष ज्ञान का महत्व<br/>कोष्ठ या मध्य हारीर की सन्धियर्थी (059)<br/>१५६ अध्याय षष्ठम<br/>चीवा से ऊपर या ऊर्जा जत्रु की सन्धियों (083) संरगना के आधार पर सनिस्यों का वर्गीकरण<br/>सन्धि शब्द से अभिप्राय<br/>सन्धियों के प्रकार<br/>सन्धियों की गतियों के आधार पर वर्गीकरण<br/>शरीर में स्थान तथा आकृति के आधार पर सन्धियौ<br/>का वर्गीकरण<br/>स्नायु वर्णन<br/>स्नायु विभाजन (900)<br/>शाखाओं में स्थित स्नायु (600)<br/>कोष्ठ या मध्य शरीर में स्थित स्नायु (230)<br/>ग्रीवा से ऊपर या ऊर्ध्व जत्रु में स्थित स्नायु (70)<br/>स्थान तथा संरचना के आधार पर स्नायुओं का<br/>वर्गीकरण एवं उनके कार्य<br/>स्नायुओं के कार्य<br/>स्नायुओं का चैकित्सकीय महत्त्व<br/>स्नायु का ज्ञान का महत्त्व<br/>१५६ ममी की संख्या तथा संरचना के अनुसार मर्म वर्गीकरण<br/>१५६ संरचना के आधार पर सुश्रुत संहिता एवं अष्टांग<br/>१५७ हृदय में वर्णित मर्मों की तुलना<br/>१५७ शरीर में स्थान के अनुसार मर्म वर्गीकरण<br/>१५७ सविध अर्थात् पैर के मर्म (11)<br/>उदर तथा उरप्रदेश के मर्म (12)<br/>१५७ पृष्ठ अथवा पीठ के मर्म (14)<br/>१६२ बाहु अर्थात् हाथ के मर्म (11)<br/>१६२ ग्रीवा से ऊपर या ऊर्ध्व जत्रु के मर्म (37)<br/>१६२ संरचना के आधार पर मर्म<br/>१६३ मांस मर्म (11)<br/>१६३ सिरा मर्म (41)<br/>स्नायु मर्म (27) १६३<br/>अस्थि मर्म (08)<br/>१६३ सन्धि मर्म (20)<br/>७२<br/>१६४ संरचना के आधार पर मर्म अष्टांग हृदय के अनुस<br/>१६४ मांस मर्म (10)<br/>पेशी संख्या तथा विभाजन<br/>शाखाओं की पेशियाँ (400)<br/>कोष्ठ या मध्य शरीर की पेशियाँ (66)<br/>१६४ सिरामर्म (37)<br/>१६४ स्नायुमर्म (23)<br/>१६५ अस्थिमर्म (08)<br/>ग्रीवा से ऊपर या ऊर्ध्व जत्रु की पेशियाँ (34)<br/>१६५ सन्धिमर्म (20)<br/>पेशियों के कार्य<br/>स्त्रियों में अतिरिक्त पेशियाँ<br/>गर्भाशय की स्थिति<br/>स्थानानुसार पेशियों का वर्गीकरण<br/>पुरूष तथा स्त्रियों के जननांगों की पेशियाँ<br/>१६६ धमनीमर्म (09)<br/>१६६ परिणाम अथवा आघात के आधार पर मर्म वर्ग<br/>१६६ सद्यःप्राणहर मर्म <br/>१६६ कालान्तर प्राणहर मर्म <br/>१६७ विशल्घ्न मर्म <br/>बैंककर सर्ग (44)<br/>हजाकर वर्ग (08)<br/>लिए गर्मी की सत्र चातकता<br/>मर्म की रचनात्मक परिभाषा<br/>मभों का पंचभूतानिक स्वरूप तथा उन पर आघात<br/>के पंचभूत्तानुसार परिणाम<br/>अन्य आचार्यों का मर्म विषयक सिद्धान्त<br/>सिराओं द्वारा मर्म स्थानों का पोषण<br/>मर्म चिकित्सा का सिद्धान्त<br/>मर्म स्थानों पर आधात लगने से उत्पन्न परिणाम<br/>तथा उनकी कालावधि<br/>शाखागत मर्मों के स्थान तथा उन पर आधात के<br/>परिणाम<br/>क्षिप्र मर्म<br/>तलहृदय मर्म<br/>कूर्च मर्म<br/>कूर्चशिर मर्म<br/>(११)<br/>सममूल गर्न<br/>रतन रोहित गर्न<br/>२०१५ अपलाप गर्म<br/>१८० पृषत अथवा पौत के गर्मी का स्थान तथा उन पर<br/>आधात के परिणाम<br/>१८१ कटिकरुण गर्ने<br/>११ कुकुन्दर मर्ग नितम्ब मर्म<br/>१८१ पार्श्व सन्धिगर्म<br/>बृहती मर्म<br/>१८२ अंसफलक मर्म<br/>१८२ अंस मर्म<br/>१८२ ऊर्ध्वजत्रु के मर्मों के स्थान के माँ का स्थान तथा<br/>१८२ उन पर आधात के परिणाम<br/>१८३ नीला मर्म<br/>गुल्क मर्म<br/>१८३ मन्या मर्म<br/>इन्द्रबस्ति मर्म<br/>१८३ मातृका मर्म<br/>जानु मर्म<br/>१८३ कृकाटिका मर्म<br/>आणि मर्म<br/>१८४ विधुर मर्म<br/>ऊर्वी मर्म<br/>१८४ फण मर्म<br/>लोहिताक्ष मर्म<br/>१८४ अपांग मर्म<br/>विटप मर्म<br/>१८४ आवर्त मर्म<br/>कूर्च मर्म<br/>१८५ शंख मर्म<br/>कूर्च शिर मर्म<br/>१८५ उत्क्षेप मर्म<br/>क्षिप्र मर्म<br/>१८५ स्थपनी मर्म<br/>तलहृदय मर्म<br/>१८५ सीमन्त मर्म<br/>मणिबन्ध मर्न<br/>१८५ श्रृंगाटक मर्म<br/>कूर्पर मर्म<br/>कक्षघर मर्म<br/>उदर तथा उरःप्रदेश के मर्मों का स्थान तथा उन पर आघात के परिणाम<br/>गुदा मर्म<br/>बस्ति मर्म<br/>नामि मर्म<br/>१८६ अधिपति मर्म<br/>१८६ मर्मों का परिमाण अथवा माप<br/>शल्यकर्म में मर्म ज्ञान का महत्व<br/>१८६ मर्म विज्ञान शल्यविषय का आधा भाग<br/>१८६ मर्म पर आघात का परिणाम<br/>१८७ मर्म स्थानों के समीप चिकित्सा उपक्रमों के प्रयोग<br/>१८७ सावधानी<br/>वित्तशिराओं के गुणक<br/>सिरागत कुपित पित्त के लक्षण<br/>क्लेमवह सिराओं के गुणकर्भ<br/>सिरागत कुपित कफ के लक्षण<br/>रतवह सिराओं के गुणकर्म सिरागत कुपित रक्त के लक्षण<br/>सिरायें सर्ववहा होती है<br/>अलग-अलग सिराओं के लक्षण<br/>१९८ एकर<br/>१९९ पुन मित्राचनका शिक्षमते<br/>१९९ रियल द्वारा निकालेक १६९ विनित रोगों में सिराकेन के<br/>१९९ पुष्ट पधन या त्रुटिपूर्ण सिरामेधन के परिणाम<br/>१९६ सिराओं की प्रकृति<br/>११९ अकुशल चिकित्सक द्वारा सिराव्यध किये जाने के 200 परिणाम<br/>२०० सिराव्यधन की आशुकारिता<br/>शरीर में विभागानुसार सिरा संख्या तथा अकेध्य सिरायै शरीर के विभागानुसार सात सौ सिराओं (700)<br/>२०० सिराव्यधन का चिकित्सा में स्थान<br/>का विभाजन इस अनुसार होता है शरीर के विभागानुसार अ‌ट्ठानवें (98) अवेध्य<br/>सिराओं का विभाजन इस अनुसार होता है शाखाओं की अवैध्य/अवेधनीय सिरायें (16) ग्रीवा से ऊपर या ऊर्ध्व जन्नु अवेध्य/अवेधनीय<br/>सिरायें (50) सिराओं के शरीर में फैले होने का स्वरूप<br/>२१३<br/>393<br/>२१३<br/>चिकित्सा के उपक्रमों के प्रयोग के बाद वर्जा नाव२१३ २०० रक्त की स्थिति के अनुसार रक्तनिर्हरण के उपाय २१४<br/>२०० अध्याय- नवम<br/>२०१ धमनियों का उत्पत्ति स्थल<br/>धमनियों का विभाजन<br/>२१५<br/>२१६<br/>२०२ ऊर्ध्वगगामी धमनियों के कार्य तथा विभाजन<br/>२१६<br/>२०३ अधोगामी धमनियों के कार्य तथा विभाजन<br/>२१७<br/>अध्याय- अष्टम<br/>तिर्यक्‌ङ्गामी धमनियों के कार्य तथा विभाजन<br/>२१८<br/>सिराव्यध निषेध<br/>२०४ धमनियों का स्वरूप २०५ धमनियों का संगठन<br/>२१८<br/>सिरावेधन प्रयोग<br/>२१८<br/>आत्यायिक अवस्थाओं में सिरावेधन का प्रयोग सिराव्यध की प्रक्रिया<br/>२०५ स्रोतसों के प्रधान अंग तथा उनके विद्ध होने के लक्षण २१०<br/>२०५ स्रोतस् विभाजन एवं इनके मूल एवं विद्ध लक्षण २१<br/>सिराव्यध के लिये अनुपयुक्त काल<br/>२०५ प्राणवह स्रोतस्<br/>सिरावेधन हेतु सिराओं के उत्थान/उभारने की विधि<br/>अन्नवह स्रोतस्<br/>२०<br/>तथा उत्तमांग की सिराओं के वेधन की विधि<br/>२०५ उदक‌वह स्रोतस्<br/>२<br/>सिरावेधन के स्थान तथा सिराओं के वेधन की विधि २०६ रसवह स्रोतस्<br/>पैर की सिराओं के वेधन की विधि<br/>हाथ की सिराओं के वेधन की विधि<br/>२०६ रक्तवह स्रोतस्<br/>२०६। मांसवह स्रोतस्<br/>चरक के अनुसार तेरह सोतरा<br/>अष्टांगहृदयानुसार तैरह स्रोतस सुश्रुत द्वारा वर्णित सोती का वर्णन<br/>सोतसों के पर्याय<br/>सोतसों की आकृति<br/>अध्याय- वशम<br/>गर्भवती स्त्री के लिये पालनीय निर्देश<br/>गर्भवती स्त्री के लिये मासानुमासिक विशिष्ट भोजन<br/>निर्देश<br/>सूतिकागार विवरण<br/>मजायिनी के लक्षण<br/>उपस्थित प्रसवा के लक्षण<br/>प्रसव होने से ठीक पहले के उपक्रम<br/>गर्भ को सीधा करके निकालें<br/>गर्भ आपने आप बाहर न आने पर उपाय<br/>प्रसव के तत्काल पश्चात् के उपक्रम<br/>जातकर्म संस्कार तथा नवजात परिचर्या<br/>दुध स्राव का काल<br/>शिशु परिचर्या<br/>प्रसूता परिचर्या<br/>प्रसूता का आहार विहार<br/>प्रसव के बाद अपरा न निकलने पर उसे निकालने<br/>के उपाय<br/>प्रसूता को होने वाले उपद्रव/मक्कल<br/>शिशु के रहने के स्थान का विसंक्रमण<br/>शिशु का नामकरण<br/>धात्री के मापदण्ड<br/>(۹۷)<br/>२२१ शिशु के प्रति धात्री का<br/>२२१ धात्री का खान-पान<br/>२२१ शिशु की वेदना का जान<br/>रश्च शिशु के सिर तथा बक्तिगत रोग होने पर १२१ चाले लक्षण<br/>२२२ २२३ शिशु को औषध देने की विधी<br/>२२३ शिशु के लिये औषध की गात्रा २२३ स्तनपान से पूर्व स्तनों का विसंक्रमण<br/>२२३ माता के घृत उपयोग निषिद्ध शिशु के विभिन्न रोग तथा चिकित्सा<br/>शिशु की देखभाल के निर्देश<br/>२२४ शिशु का अन्नप्राशन<br/>शिशु की उपसर्ग से रक्षा<br/>२२५ शिशु के रोगग्रस्त होने पर दिखाई देने वाले सामान्य<br/>२२६ लक्षण<br/>२२७ बालक को शिक्षा ग्रहण हेतु भेजना<br/>२२७ विवाह संस्कार<br/>२२७ कम आयु में विवाह का निषेध<br/>२२८ अधिक आयु में विवाह का निषेध<br/>२२८ गर्भपात के लक्षण<br/>२२८ गर्भपात की चिकित्सा<br/>२२८ गर्मी द्वारा अधिक गतिशील होने पर चिकित्सा २२६ अकाल में गर्भाशय संकुचन की चिकित्सा<br/>२२६ गर्भपात, गर्भस्राव, अकालगर्भाशय संकुचन इत्यादि<br/>२२६ की चिकित्सा<br/>२३० गर्भिणी के लिये व्यायाम<br/>शुष्कगर्भ के लक्षण एवं चिकित्सा<br/>२३० नागोदर की अवस्था<br/>२३१ गर्भिणी के लिये मासानुमासिक आहार व्यवस्था<br/>२३१ दो गर्भकालों के मध्य अन्तर<br/>२३२ गर्भिणी के लिये औषध एवं आहार<br/>२३२ शिशु की मेधा, बल तथा बुद्धि वर्धनार्थ योग
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