Astanga Hrdayam (Record no. 18212)
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---|---|
fixed length control field | 24711nam a22001817a 4500 |
003 - CONTROL NUMBER IDENTIFIER | |
control field | OSt |
005 - DATE AND TIME OF LATEST TRANSACTION | |
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008 - FIXED-LENGTH DATA ELEMENTS--GENERAL INFORMATION | |
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020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER | |
International Standard Book Number | 9789386660824 |
041 ## - LANGUAGE CODE | |
Language code of text/sound track or separate title | HINDI |
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER | |
Classification number | 615.538 KUS |
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME | |
Author name | Kushwaha,Harish Chandra Singh |
245 ## - TITLE STATEMENT | |
Title | Astanga Hrdayam |
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. (IMPRINT) | |
Place of publication, distribution, etc. | Varanasi |
Name of publisher, distributor, etc. | Chaukhambha Orientalia |
Date of publication, distribution, etc. | 2018 |
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION | |
Page | 1230p. |
500 ## - GENERAL NOTE | |
General note | अष्टाङ्गहृदय विषयानुक्रमणिका सूत्रस्थानम्<br/>विषय<br/>९. प्रथमोऽध्यायः आयुष्कामीय<br/>मङ्गलाचरण<br/>पृष्ठ |<br/>विषय<br/>आयुर्वेद का अवतरण अष्टाङ्गहृदय का वैशिष्ट्य<br/>आयुर्वेद के उपदेशों का आदर करें<br/>१०६४<br/>रोग एवं आरोग्य का कारण<br/>रोग एवं आरोग्य की परिनाक<br/>आयुर्वेद के आठ अङ्ग<br/>द्विविध रोग<br/>१०<br/>व्याधि का अधिष्ठान<br/>दोषों के नियत काल<br/>वातादि दोषों के विशेष स्थान<br/>विकृत एवं अविकृत दोषों के कार्य<br/>२२<br/>मानसिक दोष<br/>१४<br/>रोगी परीक्षा अथवा आतुर परीक्षा<br/>२८<br/>रोग परीक्षा<br/>१८<br/>देश के भेद<br/>अग्नि का स्वरूप।<br/>१९<br/>भूमि (भू) देश के प्रकार<br/>कोष्ठ के भेद<br/>२००<br/>औषधि उपयोग काल<br/>प्रकृति-स्वरूप विवेचन<br/>२२<br/>औषधि के भेद<br/>वायु के गुण<br/>२३<br/>शारीरिक दोषों की परम् औषधि<br/>पित्त के गुण<br/>२६<br/>शोधन एवं शमन रूप औषधि<br/>कफ के गुण<br/>२६<br/>मानस दोषों की परम् औषधि<br/>संसर्ग एवं सन्निपात<br/>२७<br/>चिकित्सा के चतुष्पाद<br/>दृष्य विवेचन<br/>२७<br/>भिषक् (चिकित्सक) के गुण<br/>मल विवेचन<br/>२८<br/>औषध के गुण<br/>दोषादि की वृद्धि एवं क्षय का कारण<br/>२८<br/>परिचारक के गुण<br/>कायिक कर्म<br/>२९<br/>आतुर के गुण साध्यताऽसाध्यता के आधार पर व्याधि के<br/>२९<br/>वाचिक कर्म<br/>२९<br/>मानसिक कर्म<br/>सुख साध्य व्याधि के लक्षण<br/>२९<br/>कृच्छ्रसाध्य के लक्षण<br/>षड् रस<br/>३०<br/>याप्य व्याधि के लक्षण<br/>दोषानुसार रसों के कर्म<br/>३१<br/>अनुपक्रम (असाध्य) के लक्षण<br/>द्रव्य के तीन भेद<br/>३२<br/>साध्य रोगी की चिकित्सा का निषेध<br/>वीर्य विवेचन<br/>३३<br/>अष्टाङ्गहृदय के अध्यायों की संक्षिप्त यो<br/>विपाक विवेचन<br/>३४<br/>सूत्रस्थान के अध्याय<br/>गुण विवेचन<br/>शारीरस्थान के अध्याय<br/>(税込)<br/>पृष्ट<br/>विषय<br/>१२<br/>कत्पमिडिस्थान के अध्याय<br/>६२<br/>समभाव में रहने का निर्देश<br/>लोगों के अभिवाय के अनुसार कार्य करें विवर्गशून्य (रहित) कार्य का निषेध<br/>मध्यम मार्ग का अनुकरण करें<br/>२. द्वितीयोऽध्यायः दिनचर्या<br/>उत्तररथान के अध्याय<br/>रत्नादि का धारण<br/>६५-१०५<br/>64<br/>छत्र एवं पादत्र (जूता) धारण का निर्देश विशेष परिस्थिति में रात्रि में निकलने का विन<br/>प्रातः जागरण<br/>६६<br/>दातौन कब करें<br/>दन्तपवन के अयोग्य रोगी<br/>६८<br/>चैत्यादि के लङ्घन का निषेध<br/>६९<br/>निषिद्ध कर्मों का विवेचन<br/>अञ्जन का विधान<br/>७०<br/>रसाजन का प्रयोग<br/>सवृत्त के लक्षण<br/>७१<br/>अध्यायोक्त विषयों का उपसंहार<br/>अजनोत्तर कर्म<br/>७२<br/>आचमन एवं मुख प्रक्षालन का विधान<br/>ताम्बूल का निषेध<br/>अभ्यङ्ग सेवन से लाभ<br/>७२<br/>जिह्वा निर्लेखन विधि<br/>अभ्यङ्ग के विशेष स्थान<br/>७३<br/>एक सौ आठ माङ्गलिक द्रव्य<br/>अभ्यङ्ग का निषेध<br/>७४<br/>आजीविका के साधन<br/>व्यायाम से लाभ<br/>७४ ३<br/>. तृतीयोऽध्यायः ऋतुचर्या<br/>१<br/>व्यायाम का निषेध<br/>७५<br/>विषयारम्भ<br/>व्यायाम के योग्य काल एवं मात्रा<br/>७५<br/>ऋतुओं के नाम<br/>मर्दन का विधान<br/>७६<br/>आदानकाल का स्वरूप<br/>अति व्यायाम के दोष<br/>७७<br/>विसर्गकाल का स्वरूप<br/>निषेध्य अन्य कर्म<br/>७७<br/>ऋतुओं के अनुसार बल का विचार<br/>उद्वर्तन के गुण<br/>७७<br/>हेमन्त ऋतुचर्या<br/>स्नान के गुण<br/>७८<br/>मूर्ध तैल<br/>उष्णोदक के स्नान की विधि एवं निषेध<br/>७९<br/>हेमन्त ऋतु में निवास<br/>स्नान के लिए अयोग्य पुरुष<br/>७९<br/>शिशिर ऋतुचर्या<br/>भोजन करने का विधान एवं अन्य व्यवस्था<br/>८०<br/>वसन्त ऋतुचर्या विवेचन<br/>धर्मपरायण बनने का निर्देश<br/>८१<br/>मित्र एवं शत्रु के प्रति कर्तव्य<br/>८२<br/>दस प्रकार के पाप कर्म<br/>८२<br/>अन्य कर्तव्य<br/>८३<br/>जीव मात्र के प्रति अपनापन का भाव रखें<br/>८३<br/>इनके प्रति आदर भाव रखें<br/>८४<br/>शत्रु के प्रति भी अच्छा वर्ताव करें<br/>८४<br/>वसन्त ऋतु में मध्याह्न कहाँ व्यतीब<br/>वसन्त ऋतु में वर्जनीय आहार-विन<br/>ग्रीष्म ऋतुचर्या विवेचन<br/>सेवनीय आहार-विहार<br/>ग्रीष्म ऋतु में विशेष आहार-विहा<br/>मद्यसेवन की विधि<br/>मद्यपान विधान के विरुद्ध पान के<br/>(税込)<br/>पृष्ट<br/>विषय<br/>१२<br/>कत्पमिडिस्थान के अध्याय<br/>६२<br/>समभाव में रहने का निर्देश<br/>लोगों के अभिवाय के अनुसार कार्य करें विवर्गशून्य (रहित) कार्य का निषेध<br/>मध्यम मार्ग का अनुकरण करें<br/>२. द्वितीयोऽध्यायः दिनचर्या<br/>उत्तररथान के अध्याय<br/>रत्नादि का धारण<br/>६५-१०५<br/>64<br/>छत्र एवं पादत्र (जूता) धारण का निर्देश विशेष परिस्थिति में रात्रि में निकलने का विन<br/>प्रातः जागरण<br/>६६<br/>दातौन कब करें<br/>दन्तपवन के अयोग्य रोगी<br/>६८<br/>चैत्यादि के लङ्घन का निषेध<br/>६९<br/>निषिद्ध कर्मों का विवेचन<br/>अञ्जन का विधान<br/>७०<br/>रसाजन का प्रयोग<br/>सवृत्त के लक्षण<br/>७१<br/>अध्यायोक्त विषयों का उपसंहार<br/>अजनोत्तर कर्म<br/>७२<br/>आचमन एवं मुख प्रक्षालन का विधान<br/>ताम्बूल का निषेध<br/>अभ्यङ्ग सेवन से लाभ<br/>७२<br/>जिह्वा निर्लेखन विधि<br/>अभ्यङ्ग के विशेष स्थान<br/>७३<br/>एक सौ आठ माङ्गलिक द्रव्य<br/>अभ्यङ्ग का निषेध<br/>७४<br/>आजीविका के साधन<br/>व्यायाम से लाभ<br/>७४ ३<br/>. तृतीयोऽध्यायः ऋतुचर्या<br/>१<br/>व्यायाम का निषेध<br/>७५<br/>विषयारम्भ<br/>व्यायाम के योग्य काल एवं मात्रा<br/>७५<br/>ऋतुओं के नाम<br/>मर्दन का विधान<br/>७६<br/>आदानकाल का स्वरूप<br/>अति व्यायाम के दोष<br/>७७<br/>विसर्गकाल का स्वरूप<br/>निषेध्य अन्य कर्म<br/>७७<br/>ऋतुओं के अनुसार बल का विचार<br/>उद्वर्तन के गुण<br/>७७<br/>हेमन्त ऋतुचर्या<br/>स्नान के गुण<br/>७८<br/>मूर्ध तैल<br/>उष्णोदक के स्नान की विधि एवं निषेध<br/>७९<br/>हेमन्त ऋतु में निवास<br/>स्नान के लिए अयोग्य पुरुष<br/>७९<br/>शिशिर ऋतुचर्या<br/>भोजन करने का विधान एवं अन्य व्यवस्था<br/>८०<br/>वसन्त ऋतुचर्या विवेचन<br/>धर्मपरायण बनने का निर्देश<br/>८१<br/>मित्र एवं शत्रु के प्रति कर्तव्य<br/>८२<br/>दस प्रकार के पाप कर्म<br/>८२<br/>अन्य कर्तव्य<br/>८३<br/>जीव मात्र के प्रति अपनापन का भाव रखें<br/>८३<br/>इनके प्रति आदर भाव रखें<br/>८४<br/>शत्रु के प्रति भी अच्छा वर्ताव करें<br/>८४<br/>वसन्त ऋतु में मध्याह्न कहाँ व्यतीब<br/>वसन्त ऋतु में वर्जनीय आहार-विन<br/>ग्रीष्म ऋतुचर्या विवेचन<br/>सेवनीय आहार-विहार<br/>ग्रीष्म ऋतु में विशेष आहार-विहा<br/>मद्यसेवन की विधि<br/>मद्यपान विधान के विरुद्ध पान के<br/>বিষয়।<br/>१७८<br/>वारी दुप के गुला<br/>का गुण<br/>८२<br/>सारस जात (सरोग का वात)<br/>१८३<br/>१८٧<br/>एक हाफ (थोड़ी आदि) का दुरव<br/>चौण्डेय जल<br/>आम दुग्ध के गुण<br/>औद्भिद जल<br/>शरवण या झरने का कल<br/>दधि (दही) के गुण<br/>१८४<br/>विधिपूर्वक सेवितं मद्य के गुण<br/>१८४<br/>वापी का जल<br/>अजा दधि के गुण<br/>१८४<br/>नदी का जल<br/>माहिष दधि के गुण<br/>१८४<br/>जलसेवन के अयोग्य पुरुष<br/>ऊँटनी का दही<br/>१८५<br/>उष्ण जल के गुण<br/>शीतल जल के गुण<br/>भोजन के समय जलपान की विधि<br/>१८५<br/>परिसुत दधि के गुण<br/>१८६<br/>उबाले हुए दूध की दही के गुण<br/>१८७<br/>दुग्ध से मक्खन निकालकर बनायी हुई दधि<br/>अवश्याय जल<br/>क्वथित शीतल जल के गुण<br/>१८७<br/>तक्र के गुण<br/>१८९<br/>मन्दक दधि<br/>पद्मिनी जल<br/>१८९<br/>मस्तु (दही का पानी)<br/>हिम का पानी<br/>१८९<br/>नवनीत के गुण<br/>तुषार का जल<br/>१८९<br/>धृत के गुण<br/>केदार का जल<br/>बालू आदि से निकाला गया जल<br/>१८९<br/>पुराण घृत के गुण<br/>१८९<br/>गोदुग्ध एवं घृत की श्रेष्ठता<br/>आनूप जल<br/>१८९<br/>इक्षु वर्ग<br/>जाङ्गल क्षेत्र का जल<br/>१८९<br/>गन्ने के रस के गुण<br/>साधारण जल<br/>१८९<br/>नारिकेल जल के गुण<br/>कोल्हू से पेरा गया इक्षुरस<br/>१९०<br/>दिव्य व नादेय जल में श्रेष्ठ कौन?<br/>पौण्ड्रक इक्षु<br/>१९०<br/>विकृत जल<br/>फाणित के गुण<br/>१९१<br/>जल का पूर्ण निषेध नहीं है<br/>१९१<br/>धौत गुड़ के गुण<br/>अवस्था विशेष के अनुसार जल विशेष<br/>पुराण एवं नवीन गुड़ के गुण<br/>का हिताहितत्व<br/>१९१<br/>अथ क्षीरवर्ग<br/>मत्स्यण्डिका, खण्ड तथा सिता के गुण<br/>यासशर्करा के गुण<br/>गयों के १६ विच भेद<br/>٢٢٧٩<br/>चर्म (दस)<br/>११४९<br/>अस्थि गर्म (८)<br/>११४९<br/>स्नायु धर्म (२३)<br/>११४९<br/>धमनी मर्म (०९)<br/>११५०<br/>सिराभर्म (১৬)<br/>११५०<br/>सन्धि मर्म<br/>शारीर<br/>विषय प्रवेश<br/>रिश के लक्षण एवं प्रगीजन<br/>रिश एवं अरिट ज्ञान का महत्व<br/>रिश को अरिष्ट समझने में कारण<br/>रिश के दो भेद<br/>अस्थायी रिष्ट एवं स्थायी रिए<br/>रिट के लक्षण<br/>केश एवं रोम विषयक रिष्ट<br/>नेत्र विषयक रािष्ट<br/>अन्य आचार्यों के विचार<br/>नासिका विषयक रिष्ट<br/>मांसमर्म के विद्ध होने पर उत्पन्न होने<br/>ओष्ठ विषयक रिष्ट<br/>वाले लक्षण<br/>दन्त विषयक रिष्ट<br/>अस्थि मर्म के विद्ध होने के लक्षण<br/>११५२<br/>जिह्वा विषयक रिष्ट<br/>स्नायु मर्म के विद्ध होने के लक्षण<br/>११५२<br/>श्रीवादिगत सिंह के लक्षण<br/>धमनी मर्म के विद्ध होने के लक्षण<br/>११५२<br/>अङ्ग सम्बन्धी शिष्ठ<br/>सिरा मर्म विद्ध होने के लक्षण<br/>११५२<br/>स्रोतस् सम्बन्धी रिष्ट<br/>शिश्न एवं अण्डकोश सम्बन्धी रिष्ट<br/>सन्धि गर्म के विद्ध होने के लक्षण<br/>११५२<br/>षड् मास का रिष्ट<br/>सद्यः प्राणहर मर्म एवं उनके विद्ध<br/>शरीर सम्बन्धी रिष्ट<br/>होने के लक्षण<br/>११५३<br/>सिरा व रोमकूप विषयक रिष्ट<br/>कालान्तर प्राणहर मर्म<br/>११५३<br/>एक मास का रिष्ट<br/>विशल्यघ्न मर्म<br/>११५४<br/>तीन से छः दिन का रिष्ट<br/>वैकल्यहर मर्म<br/>११५४<br/>जिहा आदि से सम्बन्धी रिष्ट<br/>रुजाकर मर्म<br/>११५५<br/>पन्दह दिन का रिष्ट<br/>मों के प्रमाण<br/>११५५<br/>शरीर में एक साथ प्राकृत व विकृत<br/>मर्माभिधात से मृत्यु का प्रकार<br/>११५६<br/>भावों का उत्पन्न होना<br/>मर्म विद्ध की चिकित्सा<br/>११५६<br/>अङ्गुली विषयक रिष्ट<br/>मर्म प्रदेश की रक्षा विशेष रूप से<br/>छींक व कास विषयक रिष्ट<br/>करनी चाहिए<br/>११५७<br/>उच्छ्वास विषयक रिष्ट<br/>मर्माभिधात की चिकित्सा में सावधानी<br/>गन्ध विषयक रिष्ट<br/>रस विषयक रिष्ट<br/>विषय<br/>OWNE<br/>शीतपिटिका आदि से सम्बि<br/>११६८<br/>हृदयादि विषयक रिश<br/>सूत्र पुरीषादि विषयक रिए<br/>आकाश आदि से सम्बन्धी रिए<br/>१९८७<br/>१९८८<br/>इन्द्रिय की विकृति से रिप्स ज्ञान<br/>अरुन्धती, ध्रुवतारा आदि विषयक रिप्ट<br/>१९७१<br/>तीन पक्ष (४५ दिन) का रिए<br/>स्वर विषयक रिष्ट<br/>११८८<br/>नाभि आदि गत वायु की रिए<br/>११८९<br/>छायालयी रिष्ट<br/>१९७२<br/>मसूरिका सम्बन्धी रिह<br/>छाया एवं प्रतिच्छाया<br/>११७३<br/>विस्फोट सम्बन्धी रिए<br/>२१२०<br/>प्रतिच्छाया का विकृत होना<br/>११७४<br/>क्षण सम्बन्धी स्टि<br/>प्रभा के भेद<br/>महाभूतों की पृथक् पृथक् छाया का रूप<br/>११७४<br/>भगन्दर सम्बन्धी रिष्ट<br/>११९२<br/>११७५<br/>अन्य रिए<br/>११२<br/>छाया एवं प्रभा की व्यापकता<br/>११७६<br/>औषधि विषयक रिष्ट<br/>रिष्ट के अन्य लक्षण<br/>११७७<br/>अदृष्ट रिष्ट<br/>षड् मास का रिष्ट<br/>११७७<br/>मुमूर्ष की चिकित्सा का निषेध<br/>एक मास का रिष्ट<br/>११७९<br/>रिष्ट ज्ञान की महत्ता<br/>छः दिन का रिष्ट<br/>११७९ ६.<br/>षष्ठोऽध्यायः दूतादिविज्ञानीय शारीर १९९६-१८<br/>११८०<br/>विषयारम्भ<br/>ज्वर विषयक रिष्ट<br/>रक्तपित्त सम्बन्धी रिष्ट<br/>दूतों के शुभाशुभ लक्षण<br/>कास-श्वास के रिष्ट<br/>११८२<br/>अशुभ दूत के लक्षण<br/>११८२<br/>चिकित्सक की अवस्था विशेष से<br/>यक्ष्मा सम्बन्धी रिष्ट<br/>११८३<br/>अशुभ का ज्ञान<br/>छर्दि विषयक रिष्ट<br/>११८३<br/>देश व काल के अनुसार दूतागमन विचार<br/>तृष्णा विषयक रिष्ट<br/>११८३<br/>दूत की अशुभ चेष्टाएं<br/>मदात्यय विषयक रिष्ट<br/>११८३<br/>दूतागमन के अशुभ काल<br/>अतीसार विषयक रिष्ट<br/>११८४<br/>अशुभ निमित्त<br/>अश्मरी सम्बन्धी रिष्ट<br/>११८५<br/>अन्य दूसरे अशुभ लक्षण<br/>प्रमेह सम्बन्धी रिष्ट<br/>११८५<br/>नर व मादा पक्षियों से शुभ व अशुभ का<br/>पिटिका सम्बन्धी रिष्ट<br/>११८५<br/>शुभ भाव<br/>गुल्म सम्बन्धी रिष्ट<br/>११८५<br/>अशुभ भाव<br/>उदररोग सम्बन्धी रिष्ट<br/>११८६<br/>बोली (आवाज) का शुभाशुभत्व<br/>पाण्डु रोग सम्बन्धी रिष्ट<br/>११८६<br/>वैद्य को निर्देश<br/>शोफ सम्बन्धी रिष्ट<br/>आतुर के आरोग्य होने के लक्षण<br/>(४६)<br/>पृष्ठ |<br/>विषय<br/>१२०५<br/>दूत विषयक शकुन का उपसंहार<br/>१२०५<br/>अत्यन्त रिष्ट रूप स्वी<br/>स्वप्न विषयक रिष्ट का प्रारम्भ<br/>१२०५<br/>ज्वर सम्बन्धी स्वप्न रिष्ट<br/>१२०६<br/>रक्तपित्त सम्बन्धी स्वप्न रिष्ट<br/>१२०६<br/>यक्ष्मा सम्बन्धी स्वप्न रिष्ट<br/>१२०६<br/>गुल्म सम्बन्धी स्वप्न रिष्ठ<br/>१२०६<br/>कुष्ठ सम्बन्धी स्वप्न रिष्ट<br/>१२०६<br/>प्रमेह सम्बन्धी स्वप्न रिष्ट<br/>१२०७<br/>उन्माद सम्बन्धी स्वप्न रिष्ट्र<br/>१२०७<br/>अपस्मार सम्बन्धी स्वप्न रिष्ट<br/>१२०७<br/>अन्य रिष्ट सूचक स्वप्न<br/>१२०८<br/>विषय<br/>विविध प्रकार के अशुभ स्वप्न<br/>शारीरस्थान की निरुक्ति<br/>आरोग्य के लक्षण<br/>दारुण स्वप्न दर्शन के हेतु<br/>स्वप्न के भेद<br/>स्वप्नों के फलाफल<br/>रात्रि के प्रथम प्रहर में देखे गये स्वप्न का फल<br/>महाफलदायी स्वप्न<br/>अशुभ स्वप्न दर्शन में दानादि का फल<br/>अशुभ स्वप्न के पश्चात् शुभ स्वप्न देखने का फल<br/>शुभ सूचक सौम्य स्वप्न<br/> |
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA) | |
Source of classification or shelving scheme | Dewey Decimal Classification |
Koha item type | BOOKS |
Withdrawn status | Lost status | Source of classification or shelving scheme | Damaged status | Not for loan | Collection code | bill no. | bill date | Home library | Current library | Date acquired | Source of acquisition | Coded location qualifier | Cost, normal purchase price | volume | Total Checkouts | Full call number | Accession No | Date last seen | Price effective from | Koha item type | Public note | Checked out | Date checked out |
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Dewey Decimal Classification | Not For Loan | MAMCRC | COV-11923 | 26/07/2022 | MAMCRC LIBRARY | MAMCRC LIBRARY | 29/08/2022 | Chaukhambha Orientalia | REF | 945.00 | Vol. I | 615.538 KUS | A2770 | 29/08/2022 | 29/08/2022 | BOOKS | Reference Books | ||||||
Dewey Decimal Classification | MAMCRC | COV-11923 | 26/07/2022 | MAMCRC LIBRARY | MAMCRC LIBRARY | 29/08/2022 | Chaukhambha Orientalia | 945.00 | Vol. I | 1 | 615.538 KUS | A2771 | 20/02/2025 | 29/08/2022 | BOOKS | 21/05/2025 | 20/02/2025 | ||||||
Dewey Decimal Classification | MAMCRC | COV-11923 | 26/07/2022 | MAMCRC LIBRARY | MAMCRC LIBRARY | 29/08/2022 | Chaukhambha Orientalia | 945.00 | Vol. I | 615.538 KUS | A2772 | 29/08/2022 | 29/08/2022 | BOOKS |