Astanga Sangraha : Sarirasthanam (Record no. 18238)
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020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER | |
International Standard Book Number | 9788176370653 |
041 ## - LANGUAGE CODE | |
Language code of text/sound track or separate title | HINDI |
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER | |
Classification number | 615.538 JHA |
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME | |
Author name | Jha,Paksadhara |
245 ## - TITLE STATEMENT | |
Title | Astanga Sangraha : Sarirasthanam |
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. (IMPRINT) | |
Place of publication, distribution, etc. | Varanasi |
Name of publisher, distributor, etc. | Chaukhambha Orientalia |
Date of publication, distribution, etc. | 2017 |
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION | |
Page | 203p. |
500 ## - GENERAL NOTE | |
General note | विषय-सूची<br/>की नरपति तथा चिकित्सा १४<br/>बालोदर की चिकित्या मिष्या गर्म की रवरूप<br/>भूतों द्वारा गर्भ शरीरापहरण का अम भूलों द्वारा शरीरापहरण की<br/>असम्भावना भूतों में कोज या शरीरापहारषाति का श्रभावविवेचन<br/>शुद्ध आर्तव के लक्षण<br/>कैसे होता है<br/>तुमती के चतुर्थ दिन के क चतुर्थ दिन में पति दर्शन के<br/>पुषवापवर्थ चाचार<br/>पुत्र भऔर कन्या प्राप्ति के दिन प्रशस्त तथा अप्रशस्त सहानी<br/>त्पत्तिकाल का निरूपण<br/>युग्म और अयुग्म दिनों में शुकाच स्थिति<br/>१५ शुकवृद्धि होने पर भी विषम सन्तान<br/>की उत्पत्ति<br/>नपुंसक सन्तानोत्पादक दिन<br/>पुत्रीय विधि<br/>अवस्थानुसार शुक्रस्थिति का विवेचन १६ यदक्षक तथा भातंय बढ़ाने की<br/>पुत्रीयविधानोपरान्त कर्म<br/>चिकित्सा<br/>शुक्रयत दोष<br/>दूषित आर्तय के लक्षण<br/>दूषित शुक के दोषानुसार लक्षण<br/>१८ शुकार्तब दोषों की सामान्य चिकित्सा "<br/>शुकातंव दोष बोधक कोष्ठक<br/>१९<br/>२० कफ दुष्ट शुक्र की विशेष चिकित्सा<br/>यात दुष्ट शुक्र की विशेष चिकित्सा पित्त दुष्ट शुक की विशेष चिकित्सा<br/>बात दुष्ट आर्तव की विशेष चिकित्सा "<br/>पित्त हुह आर्तव की विशेष चिकित्सा २१ कफ दुष्ट आर्तव की विशेष चिकित्सा<br/>रक दुष्ट शुक्र की विशेष चिकित्सा २२ बात कफ दुष्ट शुक्र की विशेष<br/>चिकित्सा<br/>शय्यारुडोपरान्त मলর খাত<br/>अपत्याचं प्रार्थमा<br/>सहवासकालीन कसंध्य<br/>मैथुन के अयोग्य स्त्री-पुरुष<br/>सहवास कालिक खी के आसन<br/>पुंसवन विधान का समय<br/>पुंसवन विधान<br/>गर्भस्थापक विधान<br/>संगर्भा के साथ व्यवहार<br/>सहवासनिषेध<br/>गर्भ में वर्ण के कारण<br/>१०<br/>गर्भ में मन की विशेषता के कारण<br/>आर्तव के चिर स्थिति के कारण<br/>शुद्ध गर्भाशय में गर्भाधान स्थिति<br/>जन्मान्तरीय कर्म की स्थिति में ३५<br/>पुंसवन कर्म का विधान<br/>कार्य জिর চ্ছে তা<br/>स्वम्योत्पत्ति में रक सहायक कार<br/>१९ गर्भ का मासिक विकास कम<br/>लिङ्गानुरूप गर्न के गुण<br/>गर्भ के लिङ्गोत्पादक माव<br/>गर्भ के तृतीय माह के विशेष चा खी की बौद्धदिनी संज्ञा का चम<br/>२० बौद्धवोत्पत्तिकाल<br/>२१<br/>"<br/>३२<br/>"<br/>दौडदाभिलाषा का अहितकर डोने पर भी देने का विचान<br/>बौद्धद की अनिलाषा के विकत से (पूर्ति न होने पर) हानि<br/>दौडदाभिलाषा पूरी होने पर काम चतुर्थ मास में गर्भ स्थिति<br/>पञ्चम मास में गर्मस्थिति<br/>षष्ठ मास में गर्भस्थिति<br/>३३ सप्तम मास में गर्भस्थिति<br/>अष्टम मास में गर्भस्थिति<br/>अष्टममासीय प्रसव में सुत्यु के कारण ३४ गर्भ की मृत्यु में नैश्चंत भाग का<br/>"<br/>कारणश्व<br/>प्रसव प्रतिषेधार्थ कर्त्तव्य विधि<br/>गर्भाशय में गर्भ की स्थिति<br/>प्रसवकाळ-निर्देश<br/>माता के अनुरूप गर्भ का प्रवर्तन गर्भ का पोषण प्रकार<br/>()<br/>muleen il ma ngreકિ<br/>were win it would at feat<br/>विकृति से गर्भ में विकार<br/>च्याति के कारण दूतिप्रवासन्तान की उत्पत्ति का<br/>कारण<br/>बार्ता नामक सन्तान की उत्पत्ति<br/>खूण्युषिक सन्तान की उत्पत्ति का कारण<br/>गर्भ विकृति का उपसंहार<br/>सम्तान के अवयव विकृति सम्बन्धी सामान्यसिद्धान्त<br/>गर्भिणी में बात प्रकोपक्रम्य गर्भ का विकार<br/>वर्भवती श्री में पित्त प्रकोपजन्य गर्भ की स्थिति<br/>गर्भवती श्री में कफ प्रकापजन्य गर्भ की विकृति<br/>बात आदि के द्वारा दूषित सेज की विकृति से गर्भस्थ बालक में<br/>दृष्टि विकार<br/>सगर्मा के योगक्षेम की आवश्यकता का निरूपण<br/>सगर्मा में वह चय के कारण गर्योपधातकर बाज<br/>श्रेड सन्तानेच्तु माता-पिता के<br/>कश्य-कठाप<br/>आत्ययिक स्थिति में सगर्मा की रखा " सणओं की रक्षा का महत्व<br/>à સુl miite were we st<br/>mon not in are ad an<br/>enalan m<br/>धन की अवस्था<br/>सर्वोपरिचति होने पर चवासू पेच<br/>प्रसव के समय कथ्य विवि<br/>गर्भाचोमुखकारक उपक्रम<br/>श्रसव काल में गर्भ के बधोगामी<br/>होने के लपाण<br/>गर्भपरिष्कृत के लिए कर्म<br/>दूसरे आचायों के मत से गर्म- ७९<br/>परिपूस के लिये कर्म गर्म शिर दर्शन के बाद कर्तव्य<br/>उत्तविहार की विकि<br/>gorgetterine modern women es<br/>होने पर चिकित्सा<br/>जामगाव की विकिरता<br/>१०तार गर्न केकड़ने का कारण<br/>उपविष्टक गर्भ के उपशुष्क नागोदर गर्न<br/>उपविष्टक तथा नागोर की विडम्ब<br/>से उत्पत्ति<br/>६८<br/>यात दोष के अधिक होने से<br/>उपविष्टक एवं नागोदर की<br/>विकृति<br/>की विकृति<br/>पित्ताधिक उपविष्टक एर्व नागोदर<br/>की विकृति<br/>प्रसव कारक मन्त्र के जप का विचान ७० ५८ प्रजननकाल में वेदना न होने पर<br/>कफाधिक उपविष्टक एवं नागोदर<br/>प्रवाहण का निषेध तया वेदना में प्रवाहुण का विधान<br/>प्रजननकाल में प्रवाइज के नियम सगर्भा के प्रवाहण काल में<br/>आश्वासन वचन<br/>गर्भाशय सङ्ग में धूपन आदि उपक्रम "<br/>प्रसवोत्तरकाल में अपराधातन के<br/>उपक्रम<br/>योनिस्थ अपरा के चिह्न<br/>अपरा की परीक्षा<br/>मकल शूल एवं उसकी चिकित्सा<br/>योनिभ्रंश एवं उसकी चिकित्सा<br/>गर्भस्य बाठक के न रोने के कारण<br/>सूतिका परिचर्या से लाम<br/>तृतीयोऽध्यायः<br/>गर्मोपचरणीय नामक शारीर सगों के यथम मासिक बाहार कम<br/>प्रसूत बालक का उपचार सूतिका परिचर्या विधि<br/>६०<br/>सूतिका एवं उसकी मर्यादा<br/>सूतिका के रोगों को दूर करने के<br/>लिये परिचर्या की आवश्यकता<br/>११ प्रसूता के स्वस्थ वृत्त<br/>सुतिका फाठ की अवधि<br/>उपविष्टक पूर्व नागोदर गर्न की सामान्य चिकित्सा<br/>वाताधिक उपविष्टक एवं नागोदर<br/>पित्ताधिक उपविष्टक एवं नागोदर की चिकित्सा<br/>कफाधिक उपविष्टक पूर्व नागोदर<br/>की चिकित्सा<br/>८५<br/>७४ उपर्युक्त उपक्रम<br/>से गर्भ के न बढ़ने पर कर्तव्य विधि<br/>लीनगर्न के कारण एवं लक्षण<br/>७५ लीन गर्भ की चिकित्सा<br/>८६<br/>सगर्भा के उदावर्त की चिकित्सा<br/>सफर्भा के उदावर्त की उपेक्षा से हानि ॥<br/>मुङ्गर्भ के कारण एवं सम्प्राप्ति<br/>७८ मृतगर्भा खी के लक्षण<br/>मूद गर्भ का लक्षण<br/>सूद गर्भ की गति का निरूपण<br/>७९ मूड़े गर्भ के असाध्य लक्षण<br/>मृत गर्भ की उपेक्षा से हानि<br/>के વિરાયને કે વપાલ<br/>પૂજ તબ છે સાજ<br/>શ્રી જિયા<br/>or note owl ામ જ<br/>good several note<br/>pe not warm were<br/>move are mom ferm<br/>4<br/>ি<br/>कर्म<br/>उससे हाम<br/>मों की साधु हो जाने पर गर्भ तिरेण का विधान<br/>गर्भसाय होने की स्थिति में मामा नुमासिक उपकम<br/>पश्चमोऽध्यायः<br/>शरीर के अङ्ग विभागीय नामक शारीर<br/>शरीर के लङ्ग का निर्माण प्रकार<br/>आकृत्यादि की समानता पूर्व मिस्रता के कारण<br/>महासूतों के मुख्य गुण<br/>२५<br/>पश्वकर्मेन्द्रिय, उनके विषय<br/>सात आशका वर्णन<br/>बारीर के लववर्ती का उत्पति प्रकार<br/>हृदयोत्पत्ति का वर्णन<br/>इन्द्रियोत्पतिक्रम नेत्रमण्डलों की उत्पतिक्रम<br/>नेत्र के मण्डल-सन्धियों एवं पटल का निरुपण<br/>त्रिगुणानुसार पाच भौतिक संगठन ९५<br/>शरीरवन्धन-अवयव<br/>इन्द्रियों में महाभूतों के गुण का सम्बन्ध<br/>शरीर में आकाश के भाव<br/>बायु के भाव<br/>शरीर में अझि के भाव<br/>शरीर में जलीयभाव<br/>शरीर में पार्थिव भाव<br/>गर्भ शरीर के मातृज भाव<br/>गर्भ शरीर के पितृज भाव<br/>गर्भ शरीर के आरमज भाव<br/>गर्भ के साम्यज भाव<br/>गर्भ शरीर के रसज भाव<br/>गर्भ शरीर के साश्चिक भाव<br/>गर्भशरीर के राजस भाव<br/>गर्भशरीर के तामसभाव<br/>रेहनिर्माण के कारण<br/>देह के अवयवों का विभाग<br/>114<br/>149<br/>शरीरवि की गय<br/>श्लेष्मा सर्वसन्धि बम्चनरुप<br/>नेत्राधित तेज का कार्य<br/>जलस्थित तेज चीयर्वातिशय का<br/>निरूपण<br/>जिह्वा की उत्पत्ति<br/>वृषण की उत्पत्ति<br/>प्राणायतन का निरूपण<br/>९७ महामर्म का निरूपण<br/>शरीरस्थ कण्डराओं का वर्णन<br/>शरीरस्थ जालकों का निरूपण<br/>शरीरस्थ कूचों का स्थान<br/>९८ शरीरस्थ सिरजुओं का विवरण<br/>शरीरस्थ सात सीवनियों का स्थान<br/>निरूपण<br/>९९ शरीरस्थ चौदह अस्थि संघातों का<br/>111<br/>स्थान निरूपण<br/>११२<br/>पारीरस्थ अठारह सीमन्तों का<br/>निरूपण<br/>त्वचा की उत्पत्ति तथा उसके भेद १००<br/>शरीरश्य अस्थियों की संख्या तथा<br/>वचाओं के नाम<br/>२ अ.सं.<br/>स्थान का निरूपण<br/>सहित स्थान का निरुपण<br/>आठ प्रकार की सन्चियों का नामकरण रनायु-पेशी तथा सिरा की सन्विवों<br/>की संख्या<br/>119<br/>स्नायुसन्थियों की संख्या<br/>शरीर की शाखाओं में स्थित स्नायुओं की संख्या तथा स्वान का निर्देश<br/>मध्वशरीर की स्नायुद ऊध्र्वकाय की स्नायुर्यो की संख्या<br/>तथा स्थान का निर्देश<br/>स्नायु के स्थानभेद से प्रकारभेद<br/>स्नायु भेद<br/>स्नायुर्यो के कार्य<br/>स्नायु ज्ञान का महत्व<br/>पेशियों की संख्या तथा उनका स्थान<br/>निर्देश शाखा की पेशियों की संख्या तथा<br/>स्थान का निर्देश<br/>मध्यशरीर की पेशियों की संख्या<br/>तथा स्थान निर्देश<br/>ऊध्वंकाय की पेशियों की संख्या<br/>तथा स्थान का निर्देश<br/>त्रियों की विशेष पेशियों<br/>खियों के विशेष पेशियों का स्थान भेद से स्वरूप भेद <br/>Tને પાછલી<br/>विषम धातुओं के वृद्धि तथा अनुसार परिमाण का निर्देशा धन्वन्तरि सम्प्रदाय के मत से दोष चातु तथा मत के परिमाण का<br/>निरुपण का निरूपण<br/>परमताओं के संयोग विभाग में प्रेरक स्वरूप बावु का निरूपण<br/>शरीर को भेद या अभेद दृष्टि से देखना ही बन्धन तथा मोच का<br/>कारण है शरीर ज्ञान की आवश्यकता षष्ठोऽध्यायः<br/>सिराविभागीय शारीर<br/>हृदय से सम्बन्धित प्रशमूल सिराश्री का निर्देश<br/>१२५<br/>१२६<br/>हृदयस्य मूल सिराओं के विमान १२० अवेभ्य शाखागत सिराओं की संख्या श्रवेच्य मध्यदारीर की सिराकों की<br/>रफसहित वातवसिराओं के<br/>कवडा विराणों के<br/>संकर सिराओं का च<br/>शरीरस्य चमतियों की संवा में के पात्रों का स्थान निरुपण विविध विभाग तथा धमनियों के<br/>उच्वंगा दश धर्मामयों के स्थान निर्देश पूर्वक कार्य विभाग उनके स्थान निर्देश<br/>भीची को आनेवाली दया धमनियों के स्थान निर्देश पूर्वक<br/>तिर्यकगामिनी धमनियों के पूर्वोक्त १३३<br/>प्रविभाग का निर्देश शरीर के जी बाबा खोतों का नाम<br/>निर्देश जीवनीय त्रयोदश स्रोत के कार्य निर्देश<br/>अवेध्य ऊर्ध्वकाविकसिराओं की संख्या संख्या<br/>शाखागत अवेग्य सिराओं का नाम श्रवेच्य श्रोणिप्रदेशस्थ सिरानों का<br/>मानवहस्रोतों के नाम निर्देश तथा उनके दूषण के कारण<br/>प्राणवहस्रोतों के दूषित कश्चन दूषित प्राणवहस्रोतों का चिकित्सा निर्देश १३४<br/>स्थान निर्देश<br/>उदकवह स्रोतस के नाम तथा उनके दूषण के कारण<br/>दूषित उदकबह स्रोतों के लक्षण १३५ दूषित उदकवह स्रोतों की चिकित्सा<br/>अक्षवह खोतों के मूल तथा उनके<br/>दूषित लक्षण<br/>प्रकोप निय<br/>बीतप्रकोपक कारण<br/>अनारोग्य-नादि का निमित्र कारण<br/>विषरूपता<br/>अन्य मत से वित्त एवं ज<br/>विशेषता<br/>शरीर में अश्न का परिपाक प्रकार १७३ परिपाक अवस्था का विवरण<br/>पञ्चमहान्तानियों की परिपाक<br/>प्रक्रिया<br/>लाहार के सारभूत रस तथा किट्ट<br/>संशक मल विभाग का निरुपण<br/>रस तथा मह से स्रोतों की परिपूर्णता<br/>स्रोतस् के प्रविभागानुसार धातुओं के पोषण का निर्देश चातुनों के पोषणक्रम का निर्देश<br/>धातुपोषण में ब्यान बायु की<br/>क्रियाक्रम<br/>शरीर में मल पूर्व सूत्र का उत्पत्तिकम सष्ठ धातुओं के सार एवं किट्ट का<br/>नाम निर्देश<br/>वायु का उत्पतिप्रकार<br/>सभी भाव अश्नमय हैं इसका निरूपणप्रकार<br/>अन्नरस से सभी धातुओं<br/>की उत्पत्ति में दूसरे मत का निरूपण<br/>1<br/>धातुओं की उत्पत्ति में विभिन्न मत अग्नि के भेद तथा उनके कार्य का<br/>निर्देश 1 अन्तराग्निके बाहरी अग्नि से सावश्य<br/>अवेच्य पार्थश्य सिराओं का स्थान निर्देश १२८<br/>अयेच्य पृष्ठगत सिराओं का स्थान निर्देश<br/>रसबह स्रोतसों के मूल<br/>१३६<br/>उदर की सिराओं का स्थान निर्देश अवेच्य छाती की सिरानों का स्थान<br/>रक्तवह स्रोतों का मूल<br/>निर्देश<br/>मांसवह स्रोतों के मूल<br/>मेदोवह स्रोतों मूल का निर्देश<br/>१३० अस्थिवह स्रोतसों का मूल निर्देश मजवहस्रोतों का मूल निरूपण १३८<br/>अवेभ्य ग्रीवा की सिराओं का स्थान<br/>निर्देश<br/>निरूपण<br/>श्रवेच्य हुनु की सिराओं का निर्देश १२९<br/>शुक्रवहस्रोतों का मूल निरूपण<br/>अवेच्य जिद्धा की शिराओं का स्थान<br/>निर्देश<br/>सूत्रवहस्रोतों का मूल निरूपण<br/>बलमेद से अग्नि प्रकार एवं उसके<br/>कार्य<br/>पुरीषवह स्रोतों का मूल निरूपण १३९<br/>अग्नि के उपक्रम<br/>All<br/>Ci<br/>(११)<br/>करोतों के<br/>marinateningwe mla<br/>Demo Nam m<br/>mom eigel is mom a min<br/>अमविभागीयशारीर नामक अध्याय<br/>विभाग<br/>गर्म के स्थान, नाम पूर्व बिय परिणाम निरुदन<br/>गुरु मणिबन्ध मर्म के दिशिए नाम शागतमर्म निदर्शक कोशक (कुल ५४ मर्म)<br/>मध्यकाय के गुदमर्म का निरूपण<br/>मध्य शरीर में बरिव मर्म मध्य शरीर में नानिमर्म<br/>मध्य शरीर में हदय मर्म<br/>मध्य घरीर में स्तनमूल मर्म<br/>मध्य शरीर में अवताप मर्म<br/>होने में कारण<br/>निर्देश<br/>मर्म के ऊपर चोदे अभिधात<br/>ककारक होना विद्धमर्म के लक्षण<br/>" मर्म देव न होने पर भी मृत्यु के कारण<br/>१९९ प्रकार के विन्दित शरीरका<br/>मर्म वैच होने पर जीवन के कारण १६३<br/>अष्टमोऽध्यायः<br/>प्रकृतिनेदीषधारीर नामक लच्चाय का आरम्भ<br/>प्रकृति के भेद<br/>शरीर में म Try<br/>पांदिन शारीरिक गुण से हाम<br/>नवमोऽन्यायः<br/>"विकृताङ्ग विज्ञानीय नामक अध्यार्थ स्वस्थ एवं<br/>सम्म पुरुषों के रिश (अरिष्ट) का वचन शरीर के प्राकृतवर्ण का निरुपण<br/>१६५ अभाव प्रकृति निर्माण के सम्वन्ध में किसी<br/>१७३<br/>विकृतवर्ण, वांरिष्ट एवं अन्य<br/>अवयों के अरिष्ट निर्देश<br/>शरीर में छाया के भेद एवं उक्षम<br/>१००<br/>प्रभा के भेद तथा उनके नाम<br/>काया पूर्व प्रमा में अन्तर<br/>शारीरिक-वर्ग-छाया-प्रवा<br/>छायागत अरिष्ट के १७८<br/>कलाद के अरिष्ट लक्षण<br/>नेत्रगत अरिष्ट के लक्षण<br/>मध्य शरीर में अपस्तम्भ मर्म<br/>दोषानुसार गर्न प्रकृति का निरूपण<br/>चारीर में प्रकृति के गुण गुण की विशेषता<br/>शुकफोणित संयोम के समय दोष की विकृति से गर्भाधान का<br/>मन्ध शरीर में कटीक तथा तरुण मर्म का निरुपण<br/>मध्य शरीर में कुकुन्दर नामक मर्म का निरूपण<br/>आचार्य का विचार श्रोत्र एवं उसका प्रमाण<br/>मध्य शरीर में नितम्ब नामक मर्म<br/>बोज का स्वरूप<br/>नासागत अरिष्ट के लाण<br/>"ओष्ठगत अरिष्ट<br/>ओज का कार्य<br/>१६६<br/>दन्तगत अरिष्ट के लचण<br/>बोज के भेद<br/>वातप्रकृति मनुष्य के लचण १६०<br/>गण्ड शिर-श्रीवा-वृषण जिह्वागत अरिष्ट के ठक्षण<br/>अरिष्ट लचण<br/>आदि के<br/>कफ प्रकृति पुरुष के लक्षण<br/>१६८ दोनों तथा तीनों प्रकृति वाले पुरुष<br/>161 स्वर-गन्चगत अरिष्ट के लक्षण छः महीने के मृत्यु सूचक अरिष्ट के<br/>के लक्षण प्रकृति के अनुसार रोगों की उत्पत्ति<br/>का निरूपण मध्य पारीर में पारवं सन्धि मर्म<br/>मध्य शरीर में बृहती मर्म<br/>मध्य शरीर में अंसफलक मर्म<br/>मध्य शरीर में अंस मर्म<br/>ऊर्ध्व काविक मर्म के स्थान नाम तथा उनके अमिषात का<br/>परिणाम<br/>" पित्त प्रकृति के लक्षण<br/>मध्यकाषिक मध्यनिदर्शक कोष्ठक १५६<br/>सिरस्थित ममर्मों का नाम तथा उनके<br/>विद्ध होने का परिणाम १५७<br/>मस्तक में स्थित अधिपति मर्म का<br/>निरूपण<br/>उभ्वंकायिक मर्मनिदर्शक कोष्ठक १५८<br/>मर्म के सामान्य स्वरूप<br/>मर्म विद्ध के उक्षण<br/>जाश्रय भेद से मर्म के प्रकार तथा<br/>उनके विद्ध होने का परिणाम मांसादिपञ्चविध समों के नाम तथा १५९<br/>संख्या<br/>का वर्णन प्रकृतिगत दोषों के उपत्य की<br/>चिकित्सा<br/>मानसिक सात प्रकृतियों का निर्देश जाति-काल-आदि के अनुसार प्रकृति का भेद<br/>सत्वादि प्रकृतियों की असंख्येयता<br/>मानवीय प्रकृतियाँ<br/>पुरुष की अवस्थाओं का विभाग<br/>वय (अवस्था) के भेद<br/>एकीयमत से अवस्था भेव<br/>पिश से मरण सूचक अरिष्ट<br/>एक महीने में मरण सूचक अरिष्ट के लक्षण<br/>पद्ररात्रि एवं त्रिरात्रि में मरण सूचक अरिष्ट के लचण<br/>पन्द्रह दिन में मरण सूचक अरिष्ट १६९ प्रेत मुख्य सूचक अरिष्ट के लक्षण एक माह में मरण सूचक अरिष्ट के<br/>१७०<br/>१८३<br/>लक्षण<br/>मरण सूचक अरिष्ट के लक्षण १८३<br/>१०१ दूरतः त्यागने योग्य अरिष्ट के लक्षण<br/>* वमलषयसूचक अरिष्ट<br/>743<br/>See more yer are fre<br/>अरिश रहने पर श्री माणु निवारण<br/>ચિતિય ોબી<br/>सीमारक अरिश के<br/>रोगी के रिश<br/>सुमु पुरुष<br/>अरिह के मेह<br/>एकादशोऽध्यायः<br/>विकृतस्याधिविज्ञानीय अन्याय रोग के अनुसार विविध अरिष्टों के<br/>ज्वर के अरिष्ट<br/>रक्तपित्त के अरिह लचण<br/>१८८<br/>कास-पास के रोगी के अरिष्ट लक्षण १८९<br/>यषमा रोगी के अरिष्ट लक्षण<br/>बमन रोगी के अरिष्ट लक्षण<br/>तृष्णा रोगी के अरिष्ट लचण<br/>मदात्यय पीड़ित के अरिष्ट लक्षण<br/>मर्श पीड़ित के अरिष्ट लक्षण<br/>अतिसार रोगी के अरिष्ट लक्षण<br/>अश्मरी रोगी के अरिष्ट लक्षण<br/>१९०<br/>प्रमेह रोगी के अरिष्ट लक्षण<br/>गुरुम रोगी के अरिट उचण<br/>बल के गन्धवर्णादि के अनुसार<br/>भगन्दर रोगी के अरिष्ट लक्षण<br/>मुसुषु के लक्षण<br/>सथो मरण सूचक अरिष्ट के लक्षण मुमुषु के अन्य लक्षण<br/>संशय युक्त जीवन सूचक अरिष्ट<br/>द्वादशोऽध्यायः<br/>टूतादि विज्ञानीय नामक अध्याय<br/>का क्षारम्भ<br/>अध्यायगत विषय एवं उनके १९५<br/>प्रयोजन<br/>* दूत के अशुभ दर्शन आदि के द्वारा<br/>अरिष्ट का ज्ञान<br/>समयानुसार दूत-आगम के<br/>शुभाशुभ का विचार<br/>At mit and Tolstom<br/>" मार्ग में अनिष्टकर साव मार्ग में हट अनिष्टकर पदा<br/>१९३<br/>१९४<br/>وو<br/>१९६<br/>निषेध<br/>स्वम का शुभाशुभ विचार-विमर्श शुभ और अशुभ स्वम<br/>समयानुसार दृष्ट स्वम के शुन तया अशुभ लक्षण<br/>रोगानुसार अरिष्टसूचक स्वप्न लक्षण<br/>रुग्ण एवं स्वस्थ व्यक्ति के स्वमारिष्ट २०१<br/>स्वप्न देखने के कारण<br/>अशुभ के बाद शुभ स्वप्न दर्शन के<br/>परिणाम<br/>शुभसूचक स्वप्न के लक्षण<br/>क्रूद्ध तथा प्रसन्न पितरों के स्वम में २०२<br/>देखने पर फल<br/>शुभाशुभ दृष्ट स्वप्नपरिहारार्थ कर्त्तव्य २०३<br/>आरोग्य लाभ सूचक लक्षण शारीर स्थान कहने का कारण |
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA) | |
Source of classification or shelving scheme | Dewey Decimal Classification |
Koha item type | BOOKS |
Withdrawn status | Lost status | Source of classification or shelving scheme | Damaged status | Not for loan | Collection code | bill no. | bill date | Home library | Current library | Date acquired | Source of acquisition | Coded location qualifier | Cost, normal purchase price | Total Checkouts | Full call number | Accession No | Date last seen | Price effective from | Koha item type | Public note |
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Dewey Decimal Classification | Not For Loan | MAMCRC | COV-11923 | 26/07/2022 | MAMCRC LIBRARY | MAMCRC LIBRARY | 30/08/2022 | Chaukhambha Orientalia | REF | 195.00 | 615.538 JHA | A2794 | 30/08/2022 | 30/08/2022 | BOOKS | Reference Books | ||||
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