Caraka Samhita (Record no. 18274)

MARC details
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003 - CONTROL NUMBER IDENTIFIER
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020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER
International Standard Book Number 9788176371490
041 ## - LANGUAGE CODE
Language code of text/sound track or separate title Hindi
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER
Classification number 615.538 KUS
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME
Author name Kushwaha, Harish Chandra Singh
245 ## - TITLE STATEMENT
Title Caraka Samhita
250 ## - EDITION STATEMENT
Edition statement 2022
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. (IMPRINT)
Place of publication, distribution, etc. Varanasi
Name of publisher, distributor, etc. Chaukhambha Orientalia
Date of publication, distribution, etc. 2022
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION
Page 940p.
Size 18 c m
500 ## - GENERAL NOTE
General note विषय<br/>९. दीर्घक्षीवितीय अध्याय<br/>चरक संहिता<br/>विषयानुक्रमणिका<br/>सूत्रस्थानम्<br/>१-४२<br/>पित्त के गुण एवं मन हेतु<br/>कफ के गुण एशन के हे<br/>रसों के भेद<br/>इमों के उपयोगी कार्य<br/>प्रभात भेद से इस्यों के मेद<br/>इल्यों के प्रकारान्तर घंट<br/>शिष्य-सूत्र<br/>एकीयसूत्र<br/>आयुर्वेदाबतरण<br/>आयुर्वेद अध्ययन की परम्परा<br/>हिमवत् पावं संभाषापरिषद् में उपस्थित महर्षि<br/>पार्थिव द्रव्य<br/>औद्भिद इण<br/>इन्द्र द्वारा भरद्वार को आयुर्वेद का उपदेश<br/>वनस्पति<br/>त्रिसूत्र आयुर्वेद<br/>१०<br/>भरदाज द्वारा आत्रेयादि ऋषियों को उपदेश<br/>१०<br/>आत्रेय द्वारा अग्निवेशादि शिष्यों को उपदेश<br/>वानस्थत्य<br/>१२<br/>अग्निवेशादि शिष्यों द्वारा अपने-अपने तन्व की रचना १२<br/>ओषधि<br/>आयुर्वेद अवतरण का उपसंहार<br/>औद्भिद गण (चिकित्सार्थ प्रयोज्य अङ्ग)<br/>१३<br/>आयुर्वेद शब्द की व्युत्पत्ति<br/>प्रशस्त द्रव्यों की गणना<br/>१३<br/>आयु के पर्याय<br/>१४<br/>मूलिनी द्रव्यों के नाम एवं कर्म<br/>अन्य शास्त्री से आयुर्वेद की उत्कृष्टता<br/>फलिनी द्रव्य<br/>१४<br/>सामान्य विशेष निरूपण<br/>उपयोग<br/>१५<br/>सामान्य-विशेष के लक्षण<br/>स्नेहों के भेद<br/>१६<br/>आयुर्वेद का अधिकरण<br/>पड लवण<br/>१८<br/>अष्टविध मूत्र<br/>कारण द्रव्य<br/>१९<br/>गुणों की संख्या<br/>मूत्रों के गुण-कर्म तथा उपयोग<br/>२०<br/>कर्म की परिभाषा<br/>भेड़ी का मूत्र<br/>२०<br/>समवाय-विवेचन<br/>बकरी (अजा) का मूत्र<br/>२०<br/>द्रव्य के लक्षण<br/>गोमूत्र<br/>२१<br/>भैंस का मूत्र<br/>गुण के लक्षण<br/>हाथी का मूत्र<br/>कर्म के लक्षण<br/>२२<br/>आयुर्वेद का प्रयोजन<br/>ऊँट का मूत्र<br/>२३<br/>अश्व का मूत्र<br/>व्याधियों के हेतु<br/>खर (गधी) का मूत्र<br/>व्याधि के आश्रय<br/>२४<br/>अष्टविध दुग्ध<br/>पर-आत्मा स्वरूप<br/>२५<br/>शोधनोपयोगी अन्य तीन वृक्ष<br/>शारीरिक एवं मानसिक दोष<br/>२६<br/>शारीरिक एवं मानसिक व्याधियों की चिकित्सा<br/>तत्त्वविद् की प्रशंसा<br/>२७<br/>दोषों के गुण एवं उनके प्रशमन के हेतु<br/>योगवित् ही उत्तम चिकित्सक<br/>वात के गुण एवं उनके प्रशमन के हेतु<br/>योगवित् चिकित्सक की प्रशंसा<br/>(30)<br/>२. अपामार्गतण्डुलीच अध्याय<br/>लेखनीय हषाব<br/>४३-५०<br/>भेदनीय महाकषाय संथानीय महाकवाग<br/>V<br/>दीपनीम महाकवाय<br/>द्वितीय- चतुष्क कषायवर्ग<br/>बल्यं महाकपाय<br/>विरेचनोपयोगी दण्य<br/>वर्थ महाकषाय<br/>निरुपा बस्ति के प्रत्य<br/>कण्ठन महाकषाय<br/>एक्कर्म को कार्मुकता<br/>४६<br/>हृद्य महाकषाय<br/>मावा एवं काल के विचार का फल<br/>२८ प्रकार के सिद्ध यनागुओं का वर्णन<br/>तृतीय षट्क कषायवर्ग<br/>४८<br/>यवागू-विवेचन<br/>तृप्तिष्न महाकषाय<br/>४९<br/>अशोध्न महाकषाय<br/>उपसंहार<br/>योग्य चिकित्सक की प्रशंसा<br/>५०<br/>कुष्ठघ्न महाकषाय कण्डूष्न महाकषाय<br/>३ . आरग्वधीय अध्याय<br/>५१-५५<br/>सिद्धतम् कुष्ठहर योगों का विवेचन<br/>५१<br/>क्रिमिष्न महाकषाय<br/>मनःशिलादि लेप<br/>५२<br/>विषघ्न महाकषाय<br/>पलाश निर्वाह रस<br/>५३<br/>चतुर्थ - चतुष्क कषायवर्ग<br/>कोलादि लेप<br/>स्तन्यजनन महाकषाय<br/>बातरक्तनाशक लेप<br/>५४<br/>स्तन्यशोधन महाकषाय<br/>गोधूमादि लेप-वातरक्तनाशक<br/>रास्नादि प्रलेप-पार्श्वशूलनाशक<br/>शुक्रजनन महाकषाय<br/>शुक्रशोधन महाकषाय<br/>शैवालादि प्रलेप-दाहनाशक<br/>पञ्चम- सप्तक कषायवर्ग<br/>सितादि प्रलेप-दाहनाशक<br/>स्नेहोपग महाकषाय<br/>शैलेयादि प्रलेप-शीतनाशक<br/>५५<br/>स्वेदोपग महाकषाय<br/>शिरीषादि प्रलेप<br/>वमनोपग महाकषाय<br/>पत्रादि प्रलेप<br/>विरेचनोपग महाकषाय<br/>उपसंहार<br/>४. षड्विरेचनशताश्रितीय अध्याय<br/>विषयारम्भ<br/>आस्थापनोपग महाकषाय<br/>५६-७०<br/>अनुवासनोपग महाकषाय<br/>५६<br/>छः सौ विरेचन योगों का वर्णन<br/>विरेचन के छः आश्रय<br/>पञ्चकषाय योनियाँ<br/>कषाय कल्पनाओ के भेद<br/>स्वरस<br/>कल्क<br/>मृत या क्वाथ<br/>शौत<br/>पचास महाकषायों की गणना<br/>मूत्रविरजनीय महाकषाय<br/>५९<br/>मूत्रविरेचनीय महाकषाय<br/>शिरोविरेचनोपग महाकषाय<br/>५७<br/>षष्ठ-त्रिक् कषायवर्ग<br/>छर्दि निग्रहण महाकषाय<br/>तृष्णा निग्रहण महाकषाय<br/>५८<br/>हिक्का निग्रहण महाकषाय<br/>सप्तम्-पञ्चम कषायवर्ग<br/>पुरीष सङ्ग्रहणीय महाकषाय<br/>पुरीषविरजनीय महाकषाय<br/>मूत्रसङ्ग्रहणीय महाकषाय<br/>विषय<br/>नवम्-पश्चक कषायका<br/>शीतप्रायन महाकषाय<br/>अङ्गमार्दप्रशमन महाकধার্য<br/>शूलप्रशमन महाकषाम<br/>दशम् पञ्चक कषायवर्ग<br/>शोणिवस्यापन महाकषाय बेदनास्वापन महाकषाय<br/>संज्ञास्थापन महाकषाय<br/>१७<br/>"<br/>६८<br/>प्रजास्थापन महाकषाय<br/>व्यः स्थापन महाकषाय<br/>आत्रेय का उत्तर<br/>५०० कषायों से सम्बन्धित अग्निवेश की शङ्का<br/>६९<br/>अणु तेल में०<br/>निर्माण विधि<br/>पक्षात् कर्म<br/>दातीन-विवेचन<br/>दातीन से लाप<br/>प्रशस्त दातौन<br/>जीभी (जिह्वा निर्लेखनी)<br/>सुगन्धित द्रव्यों का मुख में धारण<br/>तैल गण्डूष धारण से लाभ<br/>सिर पर स्नेह धारण के लाभ<br/>उपसंहार<br/>५. मात्राशितीय अध्याय<br/>७०<br/>कर्णपूरण से लाभ<br/>मात्रावत् आहार की परिभाषा<br/>७१-९०<br/>अभ्यङ्गादि से लाभ<br/>पादाभ्यङ्ग के गुण<br/>स्वभावतः गुरु एवं लघु द्रव्य<br/>७२<br/>परिमार्जन के लाभ<br/>मात्रा निर्धारण में गुरुता एवं लघुता की उपयोगिता<br/>स्वच्छ वस्त्रधारण से लाभ<br/>आहार-मात्रा<br/>गन्धद्रव्य एवं मालाधारण के लाभ<br/>७४<br/>मात्रावत् आहार का फल<br/>रत्नधारण से लाभ<br/>गुरु द्रव्यों के सेवन का विधान<br/>पैर एवं मल मार्गों की शुद्धि से लाभ<br/>गुरु द्रव्यों के अभ्यास का निषेध<br/>७५<br/>क्षौर-कर्म के लाभ<br/>अभ्यास योग्य द्रव्य<br/>पादत्र धारण के लाभ<br/>स्वस्थवृत्त-विवेचन<br/>छत्र धारण से लाभ<br/>७६<br/>अञ्जन<br/>दण्ड धारण से लाभ<br/>७७<br/>अञ्जन के गुण<br/>स्वस्थवृत्त सम्बन्धी विषयों का उपसंहार<br/>धूमपान-विधि<br/>अध्यायोक्त विषयों का उपसंहार<br/>७८<br/>औषधि द्रव्य<br/>६. तस्याशितीय अध्याय<br/>स्नैहिकी धूमवर्ति<br/>विषयोपक्रम<br/>वैरेचनिक धूमवर्ति<br/>संवत्सरविभाग<br/>७९<br/>धूमपान के गुण<br/>विसर्ग काल<br/>धूमपान का काल<br/>८०<br/>आदानकाल का विवेचन<br/>धूमपान की कालमर्यादा<br/>विसर्गकाल का विवेचन<br/>सम्यक् धूमपान के लक्षण<br/>आदान व विसर्गकाल का उपसंहार<br/>अतिधूमपान के लक्षण<br/>हेमन्त ऋतुचर्या<br/>44<br/>चरीय स्थिति<br/>व्याण्ड आहार-विहार सेवनीय आहार-विहार<br/>शरद ऋतुचर्या<br/>वय स्थिति<br/>सेभ्य आहार-विहार<br/>निषिद्ध आहार-विहार<br/>हसोदक उपसंहार<br/>सात्म्य-विवेचन<br/>अध्यायोक्त विषयों का उपसंहार<br/>६. नवेगान्धारणीय अध्याय<br/>अधारणीय वेग<br/>अधारणीय वेगों के धारण से उत्पन्न<br/>रोग एवं उनकी चिकित्सा<br/>१०२<br/>१०३<br/>१०४<br/>१०५<br/>१०६-१२१<br/>१०६<br/>१०७<br/>मूत्रवेग विधारण से उत्पत्र रोग एवं चिकित्सा<br/>पुरीषवेग विधारण से उत्पन्न रोग एवं चिकित्सा<br/>शुक्रवेग विधारण से उत्पन्न रोग एवं चिकित्सा<br/>वातवेगावरोध जन्य व्याधिर्या एवं चिकित्सा<br/>छर्दि वेग विधारण से उत्पन्न रोग एवं चिकित्सा<br/>क्षक्यु वेग विधारण से उत्पन्न रोग एवं चिकित्सा<br/>उद्‌गार वेग विधारण से उत्पन्न रोग एवं चिकित्सा जुम्भा वेग विधारण से उत्पन्न रोग एवं चिकित्सा<br/>क्षुधावेग विधारण से उत्पन्न रोग एवं चिकित्सा<br/>पिपासावेग विधारण से उत्पन्न रोग एवं चिकित्सा वाष्प वेग (अश्रु) विधारण से उत्पन्न रोग एवं चिकित्सा<br/>१०८<br/>निद्रा वेग विधारण से उत्पन्न रोग एवं चिकित्सा<br/>पावंशिक हम के पालन से<br/>देह-प्रकृति विवेचन<br/>मलायन-शरीर के ৎ তিয়<br/>स्वस्यवृत के नियमों के पालन का निर्देश<br/>संशोधन काल<br/>संशोधन विधि<br/>रसायन-वाजीकरण चिकित्सा से लाभ<br/>आगन्तुज एवं मानस व्याधियों के हेतु<br/>आगन्तुज एवं मानस रोगों की निवृत्ति में हेतु<br/>पुरुष के लिए हितकर<br/>दभि का निषेध<br/>उपसंहार<br/>८. इन्द्रियोपक्रमणीय अध्याय<br/>विषयोपक्रम<br/>इन्द्रिय पञ्च पञ्चक विवेचन<br/>मन का वैशिष्ट्य<br/>मन का एकत्व<br/>सत्त्वादि भेद से मन के भेद<br/>ज्ञानोत्पत्ति की प्रक्रिया<br/>पञ्छ ज्ञानेन्द्रियाँ<br/>पञ्चेन्द्रिय द्रव्य<br/>पञ्चेन्द्रिय अधिष्ठान<br/>पञ्चेन्द्रिय अर्थ (विषय)<br/>पञ्चेन्द्रिय बुद्धि<br/>अध्यात्म द्रव्य-गुण-संग्रह<br/>इन्द्रियों में महाभूतों का स्वरूप एवं<br/>विषय ग्रहण में कारणता<br/>इन्द्रियों के सम्यक् एवं असम्यक् योग के परिणाम<br/>स्वास्थ्य संरक्षण के उपाय<br/>विषय<br/>(11)<br/>सङ्क्तचर्चा-विवेचन अन्य सद्‌वृत्त विवेचन<br/>भोजन विधि<br/>अन्य सद्युत<br/>पृष्ठ विषय<br/>मानम आवृत<br/>यज्ञादि विषयक सद्‌वृत्त<br/>सद्वृत विषयक उपसंहार<br/>अध्यायोक्त विषयों का उपसंहार<br/>अनुक्त सद्वृत्त के पालन करने का निर्देश<br/>१३७<br/>माता-पिता को जन्म का कारण<br/>ताले गत का खपढন<br/>स्वभाववादी विना का खन्दन<br/>पानिर्माणवादी पक्ष का खण्डन<br/>यदुब्बावादी मत का खण्डम<br/>बुद्धिमान पुरुष के कर्तव्य<br/>परीक्षा के भेद<br/>९. खुट्टाकचतुष्पाद अध्याय<br/>विषयोपक्रम<br/>१३८-१४५<br/>आप्त के लक्षण<br/>चिकित्सा के चतुष्पाद<br/>१३८<br/>आरोग्य की परिभाषा<br/>१३९<br/>चिकित्सा की परिभाषा<br/>१४०<br/>वैद्य के गुण<br/>भेषज के गुण<br/>परिचारक के गुण<br/>१४१<br/>आतुर के गुण<br/>चिकित्सा में भिषक् की प्रधानता<br/>१४२<br/>अज्ञ वैद्य से चिकित्सा का निषेध<br/>१४३<br/>प्राणाभिसर वैद्य के लक्षण<br/>राजवैद्य कौन<br/>१४४<br/>वैद्य की चार वृत्तियाँ<br/>१४५<br/>उपसंहार<br/>१०. महाचतुष्पाद अध्याय<br/>१४६-१५३<br/>चतुष्पाद-विषयक पुनर्वसु आत्रेय के विचार<br/>१४६<br/>प्रत्यक्ष के लक्षण<br/>अनुमान का स्वरूप<br/>युक्ति प्रमाण के उदाहरण<br/>युक्ति के लक्षण<br/>उपसंहार<br/>आप्तोपदेश प्रमाण द्वारा पुनर्भव की सिनि<br/>पुनर्भवः सम्बन्धी अन्य आचार्यों के विचा<br/>प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा पुनर्भव की सिद्धि<br/>अनुमान प्रमाण द्वारा पुनर्भव की सिद्धि<br/>युक्ति प्रमाण द्वारा पुनर्भव की सिद्धि<br/>तीन-तीन संख्या वाले सात सूत्र<br/>तीन उपस्तम्भ<br/>त्रिविध बल<br/>त्रिविध आयतन<br/>स्पर्शनेन्द्रिय का व्यापकत्व<br/>कर्म के अतियोगादि<br/>चतुष्पाद-विषयक आचार्य मैत्रेय की शङ्का<br/>शारीर के मिथ्यायोग<br/>मैत्रेय की शङ्का का निवारण<br/>१४८<br/>वाणी के मिथ्यायोग<br/>उपर्युक्त विषय में प्रत्यक्ष प्रमाण<br/>१५०<br/>मन के मिथ्यायोग<br/>साध्यता असाध्यता सम्बन्धी विचार<br/>कर्म के मिथ्यायोग<br/>साध्यासाध्य के अनुसार व्याधियों के भेद<br/>१५१<br/>प्रज्ञापराध<br/>सुख साध्य व्याधियों के लक्षण<br/>कृच्छ्रसाध्य व्याधि के लक्षण<br/>१५२<br/>याप्य व्याधि के लक्षण<br/>प्रत्याख्येय व्याधि के लक्षण<br/>चिकित्सक को निर्देश<br/>13<br/>१५३<br/>उपसंहार<br/>-. तित्रैषणीय अध्याय<br/>विषयानुक्रम<br/>त्रिविध एषणाएं<br/>० सं०-1<br/>१५४-१८६<br/>१५४<br/>काल के लक्षण<br/>त्रिविध रोगायतन विषय का उपसंह<br/>युक्ति की महत्ता<br/>त्रिविध रोग<br/>मानस व्याधियों की चिकित्सा<br/>मानस रोग चिकित्सा का उपसंहा<br/>त्रिविध रोगमार्ग<br/>शाखाश्रित रोग<br/>मध्यम मार्गानुसारी रोग<br/>१२. काकलाकालीम अध्याय<br/>पाकक विषयक संभाषापरिषद्<br/>१८५<br/>१८७-१९६<br/>१८७<br/>बायु के क्या गुण है? का उत्तर<br/>द्वितीय प्रश्न 'किमस्य प्रकोपणम्' का उत्तर 'उपशमनानि चास्य कानि तृतीय प्रश्न का उत्तर<br/>चतुर्थ बहन असंधातवान एवं अनवस्थित होने से बायु को प्राप्त किये बिना प्रकोपण एवं प्रशमन करने वाने दव्या इसे किस प्रकार प्रकृपित एवं शान्त करते हैं।"<br/>पक्रम प्रश्न शरीर एवं अशरीर में विचरण करने वाली<br/>वायु के प्रकोप एवं प्रशमन के क्या लक्षण है?<br/>शरीर में विचरण करने वाली कुपित वायु शरीर में कौन-कौन से कर्म करती है, का उत्तर। सप्तम प्रश्न-लोक में विचरण करने वाली प्राकृत वायु बाड़ा लोक में कौन-कौन से कार्यों को करती है।<br/>अष्टम प्रश्न-बाड़ा लोक में विचरण करती हुई कुपित बायु के लोक में कौन-कौन से कर्म है?<br/>१९०<br/>वायु की विशेषतायें<br/>१९१<br/>राजर्षि वायोंविंद का पक्ष<br/>१९४<br/>मरीचि ने कहा<br/>आचार्य काप्य के विचार<br/>१९५<br/>त्रिदोष सम्बन्धी विचारों पर पुनर्वसु आत्रेय के निष्कर्ष<br/>पुनर्वसु आत्रेय के वचनों का परिषद् द्वारा अनुमोदन<br/>अध्यायोक्त विषयों का उपसंहार<br/>१९६<br/>१३. स्नेहाध्याय<br/>१९७-२१९<br/>विषयोपक्रम<br/>१९७<br/>आचार्य अग्निवेश द्वारा स्नेह से सम्बन्धित पूछे गये प्रश्न"<br/>इनहीं के पान का कमल काल विशेष एवं दोष विशेष के अनुसार<br/>स्नेहपान के नियम<br/>असमय में प्रयुक्त स्नेहपान के उपद्रव, स्नेही के अनुपान२०<br/>स्नेह की २४ प्रविचारणाये प्रश्न<br/>(कति काळ प्रविचारणा) का उत्तर<br/>अच्छ पेय की श्रेष्ठता<br/>स्नेह की अन्य प्रविचारणायें<br/>प्रश्न संख्या ७-८ (स्नेह की मात्रा कितनी<br/>होती है तथा उनके मान क्या है? का उत्तर प्रश्न संख्या ९ (कौन सी मात्रा किन रोगियों में प्रयुक्त<br/>की जाती है?) का उत्तर<br/>स्नेह की उत्तम मात्रा के योग्य रोग एवं रोगी<br/>स्नेह की उत्तम मात्रा के गुण<br/>स्नेह की मध्यम मात्रा के योग्य रोग एवं रोगी<br/>स्नेह की मध्यम मात्रा के गुण<br/>स्नेह की हस्व मात्रा के योग्य रोग एवं रोगी<br/>स्नेह की ह्रस्व मात्रा के गुण<br/>प्रश्न नं० १० (कौन सा स्नेह किसके लिए हितकर<br/>है?) का उत्तर<br/>घृतपान के योग्य पुरुष<br/>तैल के योग्य पुरुष<br/>वसापान के योग्य रोग एवं रोगी<br/>मज्जापान के योग्य रोग एवं रोगी<br/>प्रश्न नं० ११ (स्नेह का प्रकर्षकाल कितना?) का उत्त<br/>प्रश्न नं० १२ (स्नेहन के योग्य कौन?) का उत्तर<br/>प्रश्न नं० १३ (स्नेहन के अयोग्य कौन?) का उत्तर<br/>अस्निग्ध पुरुष के लक्षण (प्रश्न नं० १४ का उत्तर)<br/>सम्यक् स्नेहन के लक्षण<br/>अतिस्निग्ध पुरुष के लक्षण (प्रश्न संख्या १६ का उ स्नेहपान के पूर्व पथ्यापथ्य<br/>(५६)<br/>विषय<br/>पृष्ठ<br/>विषय<br/>ज्वर एवं कास<br/>९१०<br/>ज्वर, अतिस्गर एवं शोथ विषयक अरिष्ट<br/>अन्य अशि<br/>९११<br/>७. पन्नरूपीय इन्द्रिय<br/>९१३-९१७<br/>विषयोपक्रम<br/>९१३<br/>प्रतिच्छाया विषयक अरिष्ट<br/>डाया विकृति<br/>विकृत छाया के भेद<br/>छायाश्रितः अरिष्ट<br/>छाया एवं प्रतिच्छाया<br/>छाया के प्रकार<br/>नाभसी छाया<br/>वायवीय छाया<br/>आग्नेय छाया<br/>आम्भसी छाया<br/>पार्थिव छाया<br/>९१५<br/>प्रभा के भेद<br/>छाया एवं प्रभा में भेद<br/>आहार विषयक अरिष्ट<br/>९१६<br/>श्वासोच्छ्‌वास विषयक अरिष्ट<br/>नेत्र विषयक अरिष्ट<br/>लिङ्ग एवं वृषण विषयक अरिष्ट<br/>९१७<br/>एक मास का अरिष्ट<br/>उपसंहार<br/>८. अवाक् शिरसीय इन्द्रिय<br/>विषयोपक्रम<br/>९१८-९२०<br/>९१८<br/>शिरोगत प्रतिच्छाया विषयक अरिष्ट<br/>पदम विषयक अरिष्ट<br/>केश विषयक अरिष्ट<br/>नासिका सम्बन्धी अरिष्ट<br/>९१९<br/>दन्तविषयक अरिष्ट<br/>जिह्वा विषयक अरिष्ट<br/>श्वासोच्छ्वास विषयक अरिष्ट<br/>उपसंहार<br/>९२०<br/>९. यस्यश्यावनिमित्तीय इन्द्रिय<br/>विषयोपक्रम<br/>९२१-९२३<br/>नेत्र विषयक अरिष्ट<br/>९२१<br/>पित्तज व्याधि विषयक अरिष्ट<br/>राजयक्ष्मा विषयक अरिष्ट<br/>महाव्याधि विषयक अरिष्ट<br/>आनाह विषयक अरिष्ट<br/>चिकित्सा विषयक अरिष्ट<br/>९२२<br/>मिष्ठभूत पुरीष एवं शुक्र विषयक अरिष्ट<br/>शङ्खक विषयक अरिह<br/>उपसंहार<br/>१०<br/>. सद्योगरणीय इन्द्रिय<br/>विश्योपक्रम अध्याय की प्रस्तावना<br/>उपसंहार<br/>११. अणुज्योतीय इन्द्रिय<br/>विषयोपक्रम<br/>१२<br/>एक वर्ष के भीतर मृत्युकारक अरिष्ट के लक्षण<br/>बलि विषयक अरिष्ट<br/>अरुन्धती नक्षत्र विषयक अरिष्ट<br/>षड् मास का अरिष्ट<br/>एक मास के भीतर का अरिष्ट<br/>नेत्र विषयक अरिष्ट<br/>पञ्चमहाभूत विषयक अरिष्ट<br/>चतुष्पाद विषयक अरिष्ट<br/>आयु ज्ञान का फल<br/>उपसंहार<br/>१२. गोमयचूर्णीय इन्द्रिय<br/>विषयोपक्रम<br/>गोमयचूर्ण विषयक अरिष्ट<br/>गति विषयक अरिष्ट<br/>लेपानुलेप विषयक अरिष्ट<br/>चिकित्सक विषयक अरिष्ट<br/>औषध विषयक अरिष्ट<br/>आहार विषयक अरिष्ट<br/>दूताधिकार-प्रकरण<br/>वैद्य विषयक अरिष्ट<br/>९३२<br/>पथ एवं आतुर गृह में पाये जाने वाले अपशकुन<br/>आतुरगृह के अशुभ लक्षण<br/>उपसंहार<br/>इन्द्रियस्थानोक्त अरिष्टों का संग्रह<br/>मुमूर्ष के लक्षण<br/>छाया-प्रतिच्छाया विषयक अरिष्ट<br/>शुक्रादि धातु विषयक अरिष्ट<br/>आरोग्य का निर्णय<br/>प्रशस्त दूत के लक्षण<br/>माङ्गलिक द्रव्य<br/>आरोग्य के लक्षण<br/>उपसंहार<br/>इन्द्रियस्थानोक्त विषयों का उपसंहार
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA)
Source of classification or shelving scheme Dewey Decimal Classification
Koha item type BOOKS
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    Dewey Decimal Classification   Not For Loan MAMCRC cov-12000 26-08-2022 MAMCRC LIBRARY MAMCRC LIBRARY 06/09/2022 REF 725.00 Vol. I   615.538 KUS A3106 06/09/2022 06/09/2022 BOOKS    
    Dewey Decimal Classification     MAMCRC cov-12000 26-08-2022 MAMCRC LIBRARY MAMCRC LIBRARY 06/09/2022   725.00 Vol. I 4 615.538 KUS A3107 23/07/2024 06/09/2022 BOOKS 21/10/2024 23/07/2024
    Dewey Decimal Classification     MAMCRC cov-12000 26-08-2022 MAMCRC LIBRARY MAMCRC LIBRARY 06/09/2022   725.00 Vol. I 5 615.538 KUS A3108 29/02/2024 06/09/2022 BOOKS   05/02/2024
    Dewey Decimal Classification     MAMCRC cov-12000 26-08-2022 MAMCRC LIBRARY MAMCRC LIBRARY 06/09/2022   725.00 Vol. I 7 615.538 KUS A3112 10/10/2024 06/09/2022 BOOKS   19/09/2024
    Dewey Decimal Classification     MAMCRC cov-12000 26-08-2022 MAMCRC LIBRARY MAMCRC LIBRARY 06/09/2022   725.00 Vol. I 8 615.538 KUS A3113 21/02/2025 06/09/2022 BOOKS   10/02/2025
    Dewey Decimal Classification     MAMCRC cov-12000 26-08-2022 MAMCRC LIBRARY MAMCRC LIBRARY 06/09/2022   725.00 Vol. I 7 615.538 KUS A3114 21/09/2024 06/09/2022 BOOKS   23/07/2024
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