SushrutSamhita (Record no. 20283)
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fixed length control field | 21643nam a22001937a 4500 |
003 - CONTROL NUMBER IDENTIFIER | |
control field | OSt |
005 - DATE AND TIME OF LATEST TRANSACTION | |
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008 - FIXED-LENGTH DATA ELEMENTS--GENERAL INFORMATION | |
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020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER | |
International Standard Book Number | 9788189798192 |
041 ## - LANGUAGE CODE | |
Language code of text/sound track or separate title | HINDI |
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER | |
Classification number | 615.538 SHA |
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME | |
Author name | Shastri,Ambika Dutta |
245 ## - TITLE STATEMENT | |
Title | SushrutSamhita |
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. (IMPRINT) | |
Place of publication, distribution, etc. | Varanasi |
Name of publisher, distributor, etc. | Chaukhambha |
Date of publication, distribution, etc. | 2023 |
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION | |
Page | 124p. |
500 ## - GENERAL NOTE | |
General note | (6)<br/>शारीरस्थान-विषयसूची<br/>शुक<br/>पुरीशाच शुक्र विकिराको<br/>१३ १३. किती शुभ साल कैसे मिलता है<br/>इन्दियों के विषय<br/>शुद्र शुक<br/>प्रकृति और विकृति<br/>आर्तत चिकिल्ला<br/>प्रकाशमान तेरह तात्यों का<br/>प्रविभूत आर्तत की चिकित्सा<br/>११ जाने<br/>१४ दो गर्यो की पति १४ नपुंसकों के कार में<br/>आधक्य गर्नुसक सौगन्धिक नपुंसवा<br/>१५<br/>विवरण<br/>दुर्गन्ध युक्त आर्तव के लिए<br/>वातादिदुए आर्सवों की निकिासा<br/>कुन्भीक नपुंसक<br/>ईर्णक नपुंसक का लक्षण<br/>प्रकृति और पुरुष का साधयें और वैधर्म<br/>षण्ड का लक्षण<br/>पुरुष के विषय में एकीय मत<br/>शुद्ध आर्तव का लक्षण<br/>१५ १५ नारीषगड़<br/>४ असूग्दर का लक्षण<br/>५ अल्पोपदुत रक्तप्रदर की चिकित्सा<br/>नपुंसकों की परिगणना<br/>स्थावर अहम भूत ग्रामों के<br/>१६ शुक्र होने पर घण्ड क्यों शुभाशुभ कार्यों का परिणाम<br/>लक्षण<br/>६ नाहार्त्तव का कारण और<br/>भूत ही चिकित्सोपयोगी है<br/>अपनी भौतिक इन्द्रियों से अपने भौतिक इन्द्रियार्थ का ग्रहण<br/>७<br/>चिकित्सा<br/>अनस्थि गर्भ १६<br/>क्षीणार्तव की चिकित्सा<br/>१७ स्वप्न में मैथुन से गर्भ<br/>७ ऋतुकाल में वर्ज्य<br/>वाले सात्त्विकादि गुण<br/>आत्मा की सांख्य मत से भिन्नता<br/>आत्मा के नित्यत्व में हेतु<br/>आत्मा के गुण<br/>सात्त्विक मन के गुण<br/>राजस मन के गुण<br/>तामस मन के गुण<br/>पञ्चमहाभूतों के गुण<br/>आकाशादि भूतों में रहने<br/>१७<br/>कलल का वर्णन<br/>تا ऋतुकाल के नियम<br/>१७. विकृत गर्भ<br/>७. इस प्रकार करने का फल<br/>१८<br/>दोहद की पूर्ति न होने से<br/>८ तत्पश्चात् सन्तान के लिए<br/>विकृत सन्तति उत्पन्न होने<br/>८ हितकर कर्म करे<br/>१८<br/>के कारण<br/>८ हवन के बाद का कर्तव्य<br/>१८ गर्भ की मलोत्सर्ग क्रिया गर्भ रोता क्यों नहीं<br/>९ ९<br/>उत्तरोत्तर रात्रियों में गमन<br/>करने से लाभ<br/>१८ गर्भ के लिए व्यवहार<br/>पुत्री पैदा होने के लिये दिन<br/>१८ स्वाभाविक कार्य<br/>उपसंहार<br/>९ त्रऋतुमती के साथ संभोग १० करने से दोष<br/>१९ सत्त्वभूयिष्टों का उत्पत्ति में कारण<br/>दूसरा अध्याय<br/>शुक्र के दोष<br/>वीर्य दोष के लक्षण<br/>११<br/>पुत्र की इच्छा रखने वालों के लिए प्रयोग<br/>१९ कर्मानुसार जन्म की और<br/>१२ गर्भ और अङ्कुर का साम्य<br/>१९ प्राप्ति<br/>अभ्यासानुसार गुणों की<br/>(7)<br/>विषयाः<br/>पृष्ठाङ्काः<br/>विषया<br/>तीसरा अध्याय<br/>का वर्णन शुक्ल के दोषशुक और आधि<br/>गर्भ की उत्पति और उसके<br/>४९<br/>२६ मध से रता कैसे निamm<br/>२६ है इसका प्रमाण<br/>१९<br/>निद्रानाशहर के<br/>४६<br/>लिङ्ग भेद में कारगण<br/>२६ मेटीचरा करण<br/>३९<br/>रात्रि जागरण और<br/>२६ गोला भेदहीका श्लेष्मधरा कला का वर्णन<br/>जिसके लिये<br/>ऋतुमती की के लमाण<br/>अतुकाल से पिक्ष काल में योनि का संकोच<br/>२७ श्लेष्मपरा कला का कार्ग<br/>२७<br/>पुरीषधरा कला का वर्णन<br/>करम का लक्षण<br/>Vis<br/>मासिक धर्म<br/>२७<br/>पित्तथरा कला<br/>रजोनिवृत्ति काल<br/>२७<br/>शुकचरा कला<br/>४० उत्क्लेश करण<br/>कन्या या पुत्र का उत्पति काल<br/>सघोगर्भधारण के चिह<br/>२८ २८<br/>शुक्रम्यापकता के दृष्टान्त<br/>४१<br/>ग्लानि का বলে। ४९<br/>४८<br/>शुक्रमार्ग<br/>गौरव का लक्षण<br/>गृहीतगर्भा के उत्तरकालिक मिह<br/>२८<br/>हर्षजन्य शुक्रप्रादुर्भाव गर्भवती खी के आर्तच न<br/>४१<br/>मूर्खा, भ्रम, तन्द्रा और निद्रा के लक्षण<br/>गर्भधारण के बाद वर्जनीय<br/>३० ३०<br/>४९<br/>निषिद्ध सेवन से परिणाम<br/>दीखने तथा पुष्ट स्तन और अपरा बनने में कारण<br/>गर्भ की वृद्धि<br/>४९<br/>गर्भ का बार मास तक<br/>४९<br/>गर्भवृद्धि<br/>४९<br/>वृद्धिक्रम<br/>यकृत्, प्लीहा, फुफ्फुस और उण्डुक की उत्पत्ति<br/>न बढ़ने वाले अङ्ग ४१ नित्य बढ़ने वाले अङ्ग<br/>४९<br/>दौईयों का परिणाम<br/>३१<br/>४९<br/>दाँहुँद से भावी सन्तान के<br/>आन्व, गुद और बस्तियों की<br/>प्रकृति के भेद<br/>४९<br/>गुणों की पहचान<br/>३२ उत्पत्ति<br/>४२ प्रकृति बनने में कारण<br/>४९<br/>दौहुँदों में कारण<br/>३२ जिह्वा की उत्पत्ति स्रोतसों का विदारण और<br/>४२ बात प्रकृति के लक्षण पित्त प्रकृति के लक्षण<br/>४९<br/>गर्भ का पक्षम महीने से<br/>५०<br/>वृद्धिक्रम<br/>३३<br/>पेशियों का बनना<br/>४२ कफ प्रकृति के लक्षण द्वदोषज और त्रिदोषज प्रकृति<br/>५०<br/>गर्भ का पोषण प्रकार<br/>३३ नायु और आशयों की<br/>५१<br/>गभर्योत्पत्तिक्रम<br/>३४<br/>उत्पत्ति<br/>४२ प्रकृति स्थिर रहती है प्रकृति बाधक न होने में<br/>५१<br/>गर्भ के पितृजादि लक्षण<br/>३५<br/>वृक्क, वृषण और हृदय<br/>गर्भ लिङ्गनिचय<br/>३५<br/>की उत्पत्ति<br/>४२<br/>दृष्टान्त<br/>सद्गुणी बालक के जन्म<br/>हृदय का स्वरूप<br/>४३ अन्य आचार्यों का मत<br/>निद्रा<br/>४४ सत्त्वकाय के लक्षण<br/>में कारण<br/>३६<br/>विकृत अङ्ग प्रत्यङ्गों में कारण<br/>३६<br/>निद्रा का विषय<br/>४४ राजस काय के लक्षण तामस काय के लक्षण उपसंहार<br/>निद्रा तो बोध नहीं होने<br/>चौथा अध्याय<br/>देती फिर स्वप्न-दर्शन<br/>३७<br/>कैसे होता है<br/>४५<br/>पाँचवा अध्याय<br/>प्राण<br/>त्वचाओं का वर्णन<br/>३७<br/>निर्विकार भूतात्मा की निद्रा<br/>शरीर संज्ञा ४५<br/>कलावर्णन<br/>कला-स्वरूप<br/>३८<br/>में कारणता<br/>प्रत्यङ्ग विभाग<br/>३८ निद्रा के नियम तथा उनके<br/>३९<br/>भीतरी अङ्ग प्रत्यङ्गों का वर्णन<br/>प्रथम कला<br/>परिपालन न करने के दोष<br/>(8)<br/>विषयाः<br/>जीवा के उपर गर्ने<br/>जागा तह होने से मृत्यू<br/>नहीं होती<br/>६५ वर्षों की प्राधान्य<br/>६६<br/>पर्षों में विगुण, भूतान<br/>आदि रहते हैं<br/>६६ तिनिध वर्गों पर आधात<br/>५७ भागा का दर्शन<br/>होने से उत्पन होने<br/>५७ निःसन्देह शान के पश्चात्<br/>वाले जहण<br/>NW निकित्सा करे<br/>६६. मर्मी के शिकार कृच्छ्राय होते हैं<br/>शाखागत अस्थियों का पारगम्णन<br/>५७<br/>छठा अध्याय<br/>५७<br/>श्रोणि, धा, वक्र स्थल और स्कन्य प्रदेश की अस्थियाँ<br/>५८<br/>भर्मों की संख्या तंगा प्रकार<br/>मर्म विभागों की संख्या<br/>सातवीं अध्याय<br/>६७ शिराओं की संख्या और<br/>गर्दन और उसके ऊपर की<br/>देशभेद से मर्मों की संख्या<br/>६७<br/>मांसादि मर्मों के नाम<br/>६८ सात सौ सिराओं का विवरण<br/>५८ मर्मों के प्रकार ६०<br/>अस्थियों के प्रकार<br/>६८ यातयह शिराओं का विभाग<br/>शरीर धारण में अस्थियों की प्रधानता<br/>सद्यः प्राणहर मर्म<br/>६९ शेष शिराओं का विभाग<br/>कालान्तर प्राणहर मर्म<br/>६९ शिराचारी अकुपित और<br/>६० विशल्यघ्न मर्म<br/>सन्धियों<br/>६९ कुपित वायु का कार्य<br/>६० वैकल्यकर मर्म<br/>सन्धियाँ की संख्या<br/>६९ शिराचारी अकुपित और<br/>६१ रुजाकर मर्म<br/>शाखागत सन्धियाँ<br/>६९ कुपित पित्त के कार्य<br/>६१ क्षित्र मर्म का लक्षण<br/>कोष्ठगत सन्धियाँ<br/>६९ शिराचारी अकुपित और<br/>६१ मर्म का लक्षण<br/>ऊर्ध्वजत्रुगत सन्धियाँ<br/>६९<br/>कुपित कफ के कार्य<br/>६१<br/>सन्धियों के प्रकार<br/>मों के साथ महाभूतों का ६१<br/>निज शिरागत अकुपित्त और कुपित रक्त के कार्य<br/>सन्धियों के स्थान<br/>सम्बन्ध ६१<br/>७०<br/>केवल हड्डियों में सन्धि<br/>अन्य आचार्यों का मत ६२<br/>७०<br/>प्रायः सभी शिराएं सब<br/>लायु की संख्या<br/>उपर्युक्त विधान की पुष्टि<br/>७०<br/>दोषों का वहन करती हैं उपर्युक्त मत की पुष्टि के<br/>६२ शल्य चिकित्सा में मर्मी<br/>शाखागत स्रायु<br/>६२<br/>कोष्ठगत लायु<br/>की रक्षा करनी चाहिए<br/>७१<br/>लिए उदाहरण या प्रमाण<br/>६२<br/>ऊर्ध्वजत्रुगत लायु<br/>पेशियों का वर्णन<br/>६२<br/>कुपित कफ-पित्तों का लक्षण<br/>मर्मों का कार्य करने का काल<br/>७१ शिराओं का वर्ण विभाग<br/>७१ अवेध्य शिराओं का वेध<br/>६३<br/>शाखागत पेशियाँ<br/>सक्थि (शाखाओं) के मर्म<br/>करने से उपद्रव<br/>६३<br/>कोष्ठगत पेशियाँ<br/>और उन पर आघात होने<br/>६३<br/>सब शिराओं का परिगणन<br/>ऊर्ध्वजत्रुगत पेशियाँ<br/>पर होने वाले उपद्रव<br/>६४<br/>७२ अवेध्य शिराओं का परिगणन शाखागत अवेध्य शिरायें कोष्ठगत अवेध्य शिरायें<br/>स्रियों की पेशियों<br/>पेशियों के दृढ़ होने के कारण ६४<br/>पेट और छाती के मर्म तथा<br/>६४<br/>उनके विरुद्ध होने पर<br/>पेशियों के स्वरूप<br/>पैदा होने वाले उपद्रव<br/>ऊर्ध्वजत्रुगत शिरायें<br/>(9)<br/>-<br/>--<br/>और<br/>शिरायेथे कर में करे?<br/>भिमानी के लिए<br/>24<br/>नियनत्रण विधि<br/>वर्ष करना चाहिने<br/>रहनिहरण साधनों का<br/>स्थान-भेदानुसार येथे विभि<br/>स्थानानुभूत प्रयोग<br/>९२ प्रसूता के लिए वर्न<br/>शिरावेधने काल<br/>वाँ अध्याय<br/>८७<br/>सुविद्ध के लक्षण<br/>मृतिका के विकार क ९३ होते हैं<br/>८७ धमनी विवरण<br/>अशुद्ध रक प्रथम आने में<br/>ऊपर जानेवाली धमनियों<br/>९३ अरपरा पतन न होने पर<br/>८७ तिर्यम् धमनियों के कार्य<br/>अधोगामी धमनियों के कार्य<br/>२०४<br/>९४ मक्कल्ल रोग-लक्षण<br/>• शिराओं के न बहने के कारण क्षीणादि व्यक्तियों में लावण<br/>१०४<br/>८७<br/>९४ मक्कल्ल रोग की चिकित्सा<br/>२०५<br/>جانے<br/>धमनियों को मृणालों का<br/>बालक की सेवा<br/>- पूर्णतया दुषित रक्त न निकाले<br/>१०५<br/>८७<br/>९५ नामकरण<br/>१०५<br/>रक-निर्हरण का प्रमाण<br/>८७ धमनियों की उत्पत्ति, कार्य<br/>धात्री-नियुक्ति विचार<br/>१०५<br/>किन-किन रोगों में कहां-कहां<br/>और लय<br/>९५ दुग्धपान विधि<br/>सिरावेध करे?<br/>८८ स्रोतों के मूलों में विद्ध होने<br/>१०५<br/>अनेक दाइयों की नियुक्ति<br/>दुष्टवेध के बोस प्रकार<br/>८९<br/>पर पैदा होने वाले लक्षण<br/>९६ न करें ९७<br/>१०.६<br/>दष्टवेध के प्रकारों के लक्षण<br/>८९ स्रोत का लक्षण<br/>दुर्विद्धा का<br/>दूध पिलाने के पूर्व दूध निकालने की आवश्यकता<br/>८९<br/>दसवाँ अध्याय<br/>१०६<br/>अतिर्विद्धा का<br/>८९<br/>कुचिता का<br/>९०<br/>गर्भिणी के लिए सामान्य<br/>नियम<br/>स्तन्य नाश के कारण और उसके वर्धन के उपाय<br/>९८<br/>१०६<br/>पिच्चिता का<br/>९०<br/>विशेष नियम महीने-महीने<br/>दुग्ध परीक्षा<br/>१०६<br/>कुट्टिता<br/>९०<br/>के हिसाब से<br/>९८<br/>किस प्रकार की दाई का<br/>अप्रसुता का<br/>९०<br/>चौथे से सातवें महीने तक<br/>दूध न पिलावे<br/>१०६<br/>अत्युदीणों का<br/>९०<br/>के नियम<br/>९९' बालक के रोग जानने का<br/>अन्तेऽभिहिता का<br/>९० आठवें महीने से प्रसवपर्यन्त<br/>प्रकार<br/>१०७<br/>परिशुष्का का<br/>९०<br/>के नियम<br/>९९ बालकों के विकारों में औषध किसको देना चाहिए?<br/>कूणिता का<br/>९० नवम मास में सूतिकागार में<br/>१०७<br/>वेपिता का<br/>९०<br/>रखे<br/>९९ औषध मात्रा<br/>१०७<br/>अनुत्थितविद्धा का<br/>९० सूतिकागार कैसा हो<br/>शरहता का<br/>९० प्रसूति के लक्षण<br/>१०० कल्क से स्तन-लेप करें<br/>१०० ज्वर की विशेष चिकित्सा<br/>(10)<br/>विषयाः<br/>तालुणत की चिकित्सा<br/>पृष्ठाङ्काः<br/>विषयाः<br/>पृष्ठाङ्काः<br/>विवयाः<br/>१०८<br/>विद्याग्रहण काल<br/>११०<br/>गर्भिणी की चिकित्सा<br/>तुण्डनाभि और गुदापाक<br/>चिकित्सा<br/>विवाह-काल<br/>११०<br/>कैसी हो<br/>१०८<br/>उपर्युक्त काल से कम<br/>बालक के लिए हितकर यो<br/>घृतपान विधि<br/>१०८<br/>आयु वाले पति पत्नी<br/>शब्दानुक्रमणिका<br/>बालक के साथ बर्ताव<br/>होने पर दोष<br/>११०<br/>शारीरस्थान के चित्र<br/>कैसा हो?<br/>१०९<br/>गर्भाधान न करने योग्य व्यक्ति<br/>११०<br/>स्त्री दुग्ध न मिले तो क्या करे?<br/>१०९<br/>अध्याय-२<br/>गर्भदोष-चिकित्सा<br/>११०<br/>अध्याय-३<br/>अन्नप्राशन कब करावे?<br/>१०९<br/>गर्भस्राव न हो इसलिए<br/>अध्याय-४<br/>बालक की रक्षा कैसे करे?<br/>१०९<br/>मासानुमास चिकित्सा<br/>११२<br/>ग्रहों से पीडित बालक के<br/>अध्याय-५<br/>लक्षण<br/>निवृत्त-प्रसवा की सन्तति अल्पायु होती है |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM | |
Subject heading | Sushrutsamhita |
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA) | |
Source of classification or shelving scheme | Dewey Decimal Classification |
Koha item type | BOOKS |
Withdrawn status | Lost status | Source of classification or shelving scheme | Damaged status | Not for loan | Collection code | bill no. | bill date | Home library | Current library | Date acquired | Source of acquisition | Coded location qualifier | Cost, normal purchase price | Total Checkouts | Full call number | Accession No | Date last seen | Price effective from | Koha item type | Public note |
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Dewey Decimal Classification | Not For Loan | MAMCRC | 2152 | 17/04/2023 | MAMCRC LIBRARY | MAMCRC LIBRARY | 03/02/2024 | Tarun Books Pvt. Ltd. New Delhi | REF | 195.00 | 615.538 SHA | A3963 | 03/02/2024 | 03/02/2024 | BOOKS | Reference Books | ||||
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