Sushrut Samhita (Record no. 20292)

MARC details
000 -LEADER
fixed length control field 22658nam a22001937a 4500
003 - CONTROL NUMBER IDENTIFIER
control field OSt
005 - DATE AND TIME OF LATEST TRANSACTION
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008 - FIXED-LENGTH DATA ELEMENTS--GENERAL INFORMATION
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020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER
International Standard Book Number 9788189798208
041 ## - LANGUAGE CODE
Language code of text/sound track or separate title HINDI
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER
Classification number 615.538 SHA
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME
Author name Shastri,Ambikadatta
245 ## - TITLE STATEMENT
Title Sushrut Samhita
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. (IMPRINT)
Place of publication, distribution, etc. Varanasi
Name of publisher, distributor, etc. Chaukhambha
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION
Page 702p.
500 ## - GENERAL NOTE
General note विषयसूची<br/>पहला अध्याय<br/>प्रथम उत्तमाह होग वर्णन<br/>अन्य वयं विषय<br/>t<br/>१७<br/>शुके<br/>२ २<br/>कृमिमन्चि का लक्षण<br/>चतुर्विभ नेत्रात का लक्षण चर्वणी तगा असत्री का लक्षण<br/>१८<br/>२६<br/>१८<br/>१८<br/>१९<br/>उत्तरतन्च की अगाधता<br/>शुक्तिका तथा अर्जुन के लक्षण<br/>२७ १७<br/>तीसरा अध्याय<br/>पिष्टक तथा सिराजाल के लक्षण २८<br/>२<br/>नयनयुद्बुद की पश्वभूतीत्पति<br/>कार्यगतरोगवर्णन<br/>सिराजपिडका लक्षण<br/>६<br/>मत्र्त्यगतरोगसम्प्राप्ति<br/>१९<br/>२८<br/>बलासक लक्षण<br/>१९<br/>२६<br/>कृष्णमण्डलमान<br/>७<br/>वर्त्यगत रोगों के नाम तथा संख्या<br/>१९<br/>पौवाँ अध्याय<br/>उत्सङ्गिनी-लक्षण<br/>दृशिमान<br/>२०<br/>कुंभिका<br/>कृष्णगत रोग विज्ञान का उपक्रम २९<br/>नेत्रमण्डलसन्धि, पटलसंख्या<br/>९<br/>२०<br/>कृष्णमण्डल के रोग<br/>२९<br/>नेत्र के पञ्चमण्डल<br/>पोथकी<br/>९<br/>२०<br/>सन्त्रण शुक्र के लक्षण<br/>२९<br/>नेत्र को सन्धियाँ<br/>वत्र्मशर्करा<br/>१०<br/>२२<br/>सव्रण शुक्र की साध्यासाध्यता<br/>३६<br/>नेत्र के पटलों का वर्णन<br/>अशोंवर्त्म<br/>११<br/>२२<br/>अव्रण शुक्र के लक्षण<br/>३२<br/>नेत्रगोलक के बन्धन में सिरा-<br/>शुष्कार्श<br/>२२<br/>अक्षिपाकात्यय लक्षण<br/>३३<br/>कण्डरादि का उपयोगो<br/>अञ्जननामिका<br/>१२<br/>२२<br/>अजकाजात लक्षण<br/>३३<br/>नेत्ररोगसम्प्राप्ति<br/>बहलवर्त्म<br/>१३<br/>२२<br/>छठा अध्याय<br/>नेत्ररोगपूर्वरूप<br/>वत्र्मबन्ध<br/>१३<br/>२३<br/>नेत्ररोगपूर्वरूपावस्था में<br/>क्लिष्टवर्म<br/>सर्वगत रोग विज्ञान का उपक्रम ३३<br/>२३<br/>सर्वगत रोगगणना<br/>चिकित्सा से लाभ<br/>वर्त्मकर्दम<br/>३<br/>१४<br/>२३<br/>अभिष्यन्द सर्वनेत्ररोगों का कारण ३०<br/>नेत्ररोग की सामान्य चिकित्सा<br/>१४<br/>श्याववत्र्म<br/>२३<br/>नेत्ररोगों के हेतु<br/>क्लिन्नवत्र्म<br/>वाताभिष्यन्द लक्षण<br/>३<br/>१४<br/>२३<br/>पित्ताभिष्यन्द लक्षण<br/>नेत्ररोगों की दोषानुसार संख्या<br/>अक्लिन्नवर्त्म<br/>१५<br/>२३<br/>कफाभिष्यन्द<br/>वातजनेत्र रोगों की साध्यासाध्यता<br/>१६<br/>वातहतवर्त्य<br/>२४<br/>रक्ताभिष्यन्द<br/>पित्तजनेत्ररोगों की<br/>वर्मार्बुद<br/>२४<br/>१६<br/>अधिमन्थों का कारण<br/>कफजनेत्ररोगों की<br/>निमेष<br/>१६<br/>२४<br/>अधिमन्य सामान्य लक्षण<br/>रक्तजनेत्ररोगों की<br/>वर्मार्श<br/>१७<br/>२५<br/>वाताधिमन्थ<br/>सान्निपातिकनेत्र रोगों की "<br/>१७<br/>लगण<br/>२५<br/>पित्ताधिमन्थ<br/>सन्धिवर्मादि नेत्रभागों में होने<br/>विषवर्म<br/>२५<br/>कफाधिमन्थ<br/>वाले नेत्र रोगों की संख्या<br/>१७<br/>पक्ष्मकोपल<br/>२५<br/>रक्ताधिमन्थ<br/>चौथा अध्याय<br/>दूसरा अध्याय<br/>अधिमन्थ परिणाम तथा दृष्टि-<br/>नेत्रसन्धिगतरोगवर्णन<br/>शुक्लगत रोगवर्णन<br/>विनाश कालावधि<br/>१०<br/>३८<br/>आयञ्जन<br/>आठवाँ अध्याप<br/>समुद्रफेनाद्यञ्जन<br/>विकिसित प्रविभाग विज्ञान<br/>आरव्योतनकर्म<br/>के उपक्रम नेत्ररोग चिकित्सतिदेश<br/>४९<br/>अम्ताध्युषित तथा शुक्तिका<br/>४१<br/>रोगचिकित्साक्रम<br/>४<br/>वेद्यभेद्यार्हनेत्ररोगसंख्या तना<br/>अम्लाध्युषित तथा शुक्तिका<br/>साध्यासाध्यविचार<br/>४९<br/>रोग में विफलादिमृतपान<br/>स्रातवाँ अध्याय<br/>खेद्यादि नेत्ररोग<br/>वैदूर्याद्यञ्जन<br/>दुशिगत रोग विज्ञान का उपक्रम<br/>४०<br/>लेख्यनेत्ररोग<br/>४९<br/>धूमदर्शी चिकित्साविधान<br/>४०<br/>भेद्यनेत्ररोग<br/>४९<br/>ग्यारहवाँ अध्याय<br/>दृष्टि लक्षण<br/>दृष्टिगत रोग संख्या<br/>४१ ४१<br/>वेद्यनेत्ररोग<br/>४९<br/>श्लेष्माभिष्यन्दप्रतिषेध का<br/>प्रथम पटलगततिमिर के लक्षण<br/>अशखकृत्यनेत्ररोग<br/>४९<br/>उपक्रम<br/>द्वितीय पटलगततिमिर के "<br/>४१<br/>याप्य और असाध्य नेत्ररोग<br/>५०<br/>श्लेष्माभिष्यन्द की सामान्य<br/>तृतीय पटलगततिमिर के"<br/>४२<br/>नाँ अध्याय<br/>चिकित्सा<br/>चतुर्व पटलगततिमिर के<br/>४२<br/>वाताभिष्यन्दप्रतिषेध का उपक्रम ५०<br/>श्लेष्माभिष्यन्द में अञ्जन और<br/>लिङ्गनाश, नीलिका और<br/>अभिष्यन्दाधिमन्य का<br/>अञ्जनवर्ति<br/>काच संज्ञा<br/>४२<br/>चिकित्साक्रम<br/>५०<br/>बलासग्रथितचिकित्सा<br/>वातजतिमिर लक्षण<br/>४३<br/>वाताभिष्यन्द की चिकित्सा<br/>५२<br/>पिष्टकनेत्ररोगहराञ्जन<br/>पित्तजतिमिर"<br/>४३<br/>श्लैष्मिकतिमिर<br/>वाताभिष्यन्द तथा अधिमन्ध<br/>पिष्टकहराञ्जन<br/>४३<br/>की चिकित्सा<br/>५२ वार्ताकाद्यञ्जन<br/>रक्तदोषजतिमिर<br/>४३<br/>अन्य सेचनादिक उपाय<br/>सन्निपातजतिमिर"<br/>संसर्गजतिमिर<br/>रागप्राप्त ष‌ड्विधलिङ्गनाश<br/>रागप्राप्त लिङ्गनाश के<br/>दोषानुसार लक्षण<br/>५२<br/>प्रक्लिन्नवर्त्म में योगाञ्जन<br/>४४<br/>अद्धर्बोदक दुग्धसेक<br/>५२<br/>नेत्रकण्डूचिकित्सा<br/>४४<br/>अञ्जनप्रयोग<br/>५२<br/>कण्डूशोफहराञ्जन<br/>४४<br/>गुटिकाञ्जन<br/>५२<br/>अन्यतोवात तथा वातपर्यय<br/>बलासग्रथितादि रोगों में अभि-<br/>ष्यन्दादिचिकित्सोपदेश<br/>४४<br/>पित्तज परिम्लायि के लक्षण<br/>४४<br/>में उपर्युक्त चिकित्सा<br/>५२<br/>बारहवाँ अध्याय<br/>दोषभेद से ष‌ड्विध लिङ्गनाश<br/>अन्यतोवात मारुतपर्यय की<br/>का वर्णन<br/>विशिष्ट चिकित्सा<br/>रक्ताभिष्यन्दप्रतिषेधोपक्रम<br/>४४<br/>दृष्टिगत द्वादशरोगनिर्देश<br/>४५<br/>शुष्काक्षिपाकचिकित्सा<br/>५३<br/>अधिमन्यादि चार रोगों की<br/>५३<br/>पित्तविदग्धदृष्टि लक्षण<br/>४५<br/>शुष्काक्षिपाक में अञ्जन<br/>समान चिकित्सा<br/>श्लेष्मविदग्धदृष्टि"<br/>४६<br/>सर्ववातजनेत्ररोगचिकित्सोपदेश<br/>५३<br/>कौम्भघृतोपयोग<br/>५३<br/>अधिमन्यादि में प्रदेह,<br/>धूमदर्शी<br/>४६<br/>दसवाँ अध्याय<br/>परिषेचनादि<br/>हस्वजाड्य<br/>नकुलान्ध्य<br/>गम्भीरिका<br/>४७ पित्ताभिष्यन्दाधिमन्थरोग-<br/>४७ पित्ताभिष्यन्दप्रतिषेध का उपक्रम ५४<br/>नीलोत्पलादि प्रलेप<br/>नेत्ररुजा में स्वेदादि प्रयोग<br/>४७<br/>सनिमित्त तथा अनिमित्त<br/>चिकित्साक्रम<br/>लिङ्गनाश लक्षण<br/>पित्ताभिष्यन्दाधिमन्य में सर्व-<br/>५४ नेत्ररुजा में अञ्जनप्रयोग<br/>नेत्ररुजा में आश्च्योतन<br/>४७<br/>पित्तहरी क्रिया<br/>नेत्ररुजा में चन्दनादि वर्ति<br/>का प्रयोग<br/>१७<br/>t<br/>९५९<br/>५७७<br/>प्रदेश<br/>उन्माद के पैद<br/>444<br/>५८५<br/>५८२<br/>143<br/>५६०<br/>अपस्मार का पूर्वरूप<br/>१६८ ५६८<br/>देवासुर के विशिश्पुण<br/>धाम जोन्माद के लक्षण<br/>५८४<br/>तातिकापस्मार लक्षण<br/>देयादिक आबिह नहीं होते हैं<br/>५६१<br/>५६९<br/>विषोन्माद के उन्मादचिकित्सा<br/>८८५<br/>वैतिश्यपस्मार<br/>५७०<br/>शह-परिचारकों का<br/>लैणिकापस्मार"<br/>प्रमेश होता है<br/>भूर, नस्य तथा अभ्यङ्ग बोग उन्माद में नय, विस्मापन<br/>५८७<br/>५६१<br/>मातादि-अपस्मारों में विशिष्ट<br/>देवगणानुचरों की देवतुल्यता<br/>५६२<br/>तथा सामान्य लक्षण<br/>५७०<br/>आदि चिकित्सा<br/>५८७<br/>देववाहों की संख्या<br/>५६२<br/>सात्रिपातिक अपस्मार के लक्षण<br/>५७०<br/>उन्माद में आहारादि व्यवस्था<br/>५८७<br/>देवप्रहों का स्वभाव<br/>५६२<br/>परमत से आगन्तुकापस्मार का वर्णन<br/>अनुचर ग्रहों की वृत्ति<br/>महाकल्याण वृत<br/>५८८<br/>५६२<br/>५७२<br/>फलमूत<br/>५८८<br/>महों की भूतसंज्ञा<br/>५६२<br/>अपस्मार का दोषजन्यत्व-साधन ५७२ रोगों की नियतकालोत्पत्तिका<br/>ब्राह्मघादि वर्ति<br/>५८८<br/>५६२<br/>उन्माद में सिरावेध<br/>५८०<br/>ग्रहसामान्य चिकित्सा<br/>५६२<br/>ग्रहशान्ति के लिये माल्याग्रुपहार<br/>५६२<br/>दोषों की अल्प काल में भी<br/>५७२<br/>उन्माद में अपस्मार-चिकित्सा<br/>का अतिदेश<br/>५८<br/>इष्ट बलिदान<br/>५६३<br/>वस्त्रादि बलि के देने का समय<br/>५६३<br/>रोगोत्पादकता<br/>५७३<br/>शान्तोन्माद में कर्तव्य<br/>५८<br/>बलिदान के लिये देवस्थान<br/>अपस्मारचिकित्सा<br/>५७३<br/>उन्माद में चित्तप्रसादनोपदेश ५८<br/>५६३<br/>विभिन्न बलिस्थान<br/>अपस्मार में ग्रहोक्त चिकित्सा<br/>शोकज और विषज उन्माद की चिकित्सा<br/>५६३<br/>यक्ष के लिये बलिदान<br/>का अतिदेश<br/>५७३<br/>५८<br/>५६३<br/>पितृ और नाग ग्रह के लिये<br/>अपस्मार में शिग्वादि तैल<br/>५७३<br/>तिरसठवाँ अध्याय<br/>बलिदान<br/>अपस्मारहर गोधादि<br/>५६३<br/>५७४<br/>रसभेदविकल्पवर्णन<br/>राक्षस और पिशाच के लिये<br/>अंपस्मार में शिरोविरेचन<br/>रसभेदकथन में प्रयोजन<br/>बलिदान<br/>तथा दैवचिकित्सा<br/>५६३<br/>५७४<br/>रस कैसे तिरसठ भेद को<br/>मन्त्र और बलि के द्वारा लाभ न होने पर अन्य उपाय<br/>अपस्मार में दोषानुसार शोधन<br/>५७४<br/>प्राप्त होते हैं<br/>५६३<br/>वातिकापस्मार में कुलत्थादि घृत<br/>५७४<br/>६<br/>अजादिरोम का धूपन<br/>ग्रहोपशान्ति के लिये नस्य,<br/>पैत्तिकापस्मार में काकोल्यादि "<br/>५७४<br/>दोषानुसार त्रिषष्टि रसों का<br/>५६३<br/>श्लेष्मापस्मार में कृष्यादि<br/>उपयोग<br/>E<br/>"५७४<br/>अञ्जन तथा सेक<br/>५६४<br/>अपस्मारादि में सिद्धार्थक<br/>५७५<br/>द्विरससंयोग से पन्द्रह भेद<br/>त्रिरससंयोग से बीस प्रकार<br/>६<br/>खराश्वादिपुरीषसिद्ध तैल<br/>ग्रहजुष्ट में तक्रमालादि वर्ति<br/>पञ्चगव्य<br/>५६४<br/>"५७५<br/>५६४<br/>भाग्र्यादिसुराप्रयोग<br/>"५७६<br/>चतुष्करससंयोग से पन्द्रह प्रकार<br/>ग्रहदोष में सैन्धवादि"<br/>अपस्मार में सिरावेध<br/>५६४<br/>"५७६<br/>पञ्चरसयोग से षट्<br/>षड्रसयोग से एक<br/>सर्वग्रहदोष में लशुनादिवर्ग-<br/>सिद्धघृत<br/>बासठवाँ अध्याय<br/>एकैकरस से षड्रसभेद<br/>उन्मादप्रतिषेधवर्णन<br/>रसभेदविषयक उपसंहार<br/>६२५<br/>राधियों के गुण<br/>६२५<br/>निर्णयन्तमुक का<br/>सामुद्रौषधवर्णन<br/>तथा चिकित्सायोजन<br/>६२५<br/>६१०<br/>मुहर्मुहौषध वर्णन<br/>६२५ ६२५<br/>अनुमण<br/>स्वाथकृत का विस्तार<br/>विधान<br/>शासान्तरौषध<br/>६१०<br/>६२५<br/>अन्यगतापेक्षण<br/>पासग्रासान्तर ओषधियों के गुण<br/>६२६<br/>अतिक्रान्तावेक्षण<br/>६१२<br/>औषधकालोपसंहार<br/>६२६<br/>संयमवर्णन<br/>हेमन्तर्तुचाँ<br/>६१३<br/>आहारकालवर्णन<br/>६२६<br/>व्याख्यान लक्षण<br/>वसन्तर्तुभर्या<br/>स्वसंज्ञा<br/>६९५<br/>पैसठवाँ अध्याय<br/>" निर्वाचन<br/>६१६<br/>तन्वयुक्तिविवेचन<br/>وو निदर्शन<br/>६२७<br/>६१७<br/>तन्त्रयुक्तियों के भेद<br/>६२७<br/>नियोग<br/>ऋतुपथ्याचरण का फल<br/>६१८<br/>द्वादश अशन-प्रविचार<br/>तन्त्रयुक्तिप्रयोजन<br/>६२८<br/>६१८<br/>समुच्चय लक्षण " विकल्प<br/>शीताहर विषय<br/>तन्त्रयुक्ति के अन्य प्रयोजन<br/>६२८<br/>६१८<br/>उष्णाहार<br/>तन्त्रयुक्तिप्रयोजनान्तर<br/>६२८<br/>ऊद्याख्य तन्त्रयुक्ति का लक्षण<br/>६१८<br/>स्निग्धाहार<br/>दृष्टान्त द्वारा तन्त्रयुक्तिकार्य<br/>६२८<br/>६१९<br/>रूक्षाहार<br/>अधिकरणलक्षण<br/>६२९<br/>द्रवाहार<br/>६२०<br/>योगवर्णन<br/>६२९<br/>शुष्क भोजन "<br/>६२१<br/>पदार्थाभिधा तन्त्रयुक्ति का वर्णन<br/>६३०<br/>एककाल तथा द्विकाल<br/>६२१<br/>हेत्वर्थ तन्त्रयुक्तिलक्षण<br/>६३१<br/>आहार विषय<br/>उद्देशतन्त्रयुक्ति का लक्षण<br/>६३२<br/>६२१<br/>औषधयुक्त मात्राहीन आहार<br/>का विषय<br/>निर्देशतन्त्रयुक्ति<br/>अपदेशतन्त्रयुक्ति<br/>६३२<br/>तन्त्रयुक्ति का उपसंहार तथा<br/>उसके ज्ञान का फल<br/>दोषभेदविकल्पवर्णन<br/>दोषभेदविषय में सुश्रुत का प्रश्न<br/>एक-एक, दो-दो या तीन-तीन<br/>दोषों के मिलने से भेद<br/>छियासठवाँ अध्याय<br/>६२१<br/>यथर्तुदत्ताहारफल<br/>अपदेशाख्य तन्वयुक्ति का लक्षण<br/>६३२<br/>उक्त दोषभेद प्रश्न का उत्तर<br/>स्वस्थवृत्त्यर्थ आहार<br/>दश औषधकालवर्णन<br/>६२१<br/>प्रदेशाख्य<br/>का<br/>त्रिदोषादियों का देहधारकत्व<br/>६२२<br/>वर्णन<br/>६३३<br/>पुरुषप्राणरोगादिसंख्यावर्णन<br/>६२४<br/>अभक्तकालनिरूपण<br/>अभक्तौषधसेवनफल<br/>अतिदेश का लक्षण<br/>६३३<br/>६२४<br/>अपवर्गतन्त्रयुक्ति का लक्षण<br/>६३३<br/>प्राग्भक्त-औषधवर्णन<br/>६२४<br/>वाक्यशेष का वर्णन<br/>६३४<br/>वातादि दोषों के बासठ भेद<br/>दोषों के द्विषष्टि भेद<br/>दोषों की असंख्येयता<br/>प्राग्भक्तौषधसेवनफल<br/>६२४<br/>अर्थापत्ति<br/>६३४<br/>चिकित्सा में कर्ता, करण<br/>अधोभक्तौषधवर्णन<br/>६२४<br/>विपर्ययलक्षण<br/>६३४<br/>आदि का निर्देश<br/>मध्ये भक्तौषध लक्षण<br/>६२४<br/>प्रसङ्गतन्त्रयुक्ति का वर्णन<br/>अधोमध्यभक्तौषध के गुण<br/>एकान्त लक्षण<br/>तन्त्रप्रशंसा तथा उपसंहार<br/>अन्तराभक्तौषध वर्णन<br/>अनेकान्त लक्षण<br/>उत्तरतन्त्र के अध्ययन का फला<br/>पूर्वपक्ष<br/>शब्दानुक्रमणिका
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Subject heading Sushrutra Samhita
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA)
Source of classification or shelving scheme Dewey Decimal Classification
Koha item type BOOKS
Holdings
Withdrawn status Lost status Source of classification or shelving scheme Damaged status Not for loan Collection code bill no. bill date Home library Current library Date acquired Source of acquisition Coded location qualifier Cost, normal purchase price volume Total Checkouts Full call number Accession No Date last seen Price effective from Koha item type Public note Date checked out
    Dewey Decimal Classification   Not For Loan MAMCRC 2152 17/04/2023 MAMCRC LIBRARY MAMCRC LIBRARY 03/02/2024 Tarun Books Pvt. Ltd. New Delhi REF 745.00 Vol. II   615.538 SHA A4040 03/02/2024 03/02/2024 BOOKS Reference Books  
    Dewey Decimal Classification     MAMCRC 2152 17/04/2023 MAMCRC LIBRARY MAMCRC LIBRARY 03/02/2024 Tarun Books Pvt. Ltd. New Delhi   745.00 Vol. II 1 615.538 SHA A4041 29/07/2024 03/02/2024 BOOKS   10/07/2024
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