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Vidhi Vaidyaka : Vyavaharayurveda Vijnana

By: Contributor(s): Material type: TextTextLanguage: HINDI Publication details: Varanasi Chaukhambha Orientalia 2019Description: 368pISBN:
  • 9788176371964
DDC classification:
  • 614.1 KHA
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विषय सूची
of myte લ સ્વીપર છે, સnese mom સાર છે. १४, न्याय के विषय में कान्ता १५।
द्वितीय अध्याय कोर्ट (न्यायालय)
१८-७९
स्मृतिकालीन न्यायालय का परिचय १८, व्यवहार आयुर्वेद एवं न्यायालय का परिचय व परिभाषा, वैधानिक चिकित्साशाब २०, (१) भारतीय न्यायालय, (१) भारतवर्ष के फौजदारी के न्यायालय, कौरोनर (अपमृत्युविचारक) का कोर्ट २१, जूरी (पजायत), कौरोनर का कर्तव्य २२, मैजिस्ट्रेट का न्यायालय, प्रथम श्रेणी के मैजिस्ट्रेट या प्रेसीडेन्सी मैजिस्ट्रेट, द्वितीय श्रेणी के मैजिस्ट्रेट, तृतीय श्रेणी के मैजिस्ट्रेट २४, सेशन कोर्ट, हार्ड कोर्ट २५, मौलिक पार्श्व, सेशन पार्श्व २६, सर्वोच्च न्यायालय, प्रारम्भिक विवाद, दण्ड (सजायें), जेल की सजा, मृत्युदण्ड २६, बेंत मारना, जूरी तथा असेसर २७, असेसर व जूरी में भेद, असेसर, जिलान्यायाधीश, जूरी २८, कब्र खोदकर मुर्दा निकलवाना २९, अपराध की प्रारम्भिक जाँच ३०, सम्मन, समनीया ३३, दीवानी कोर्ट, फौजदारी कोर्ट ३४, चिकित्सक की फांस, गवाह ३५, साधारण गवाह, विशेषज्ञ गवाह, शत्रुतापूर्ण (होस्टाइल) गवाह ३६, साधारण गवाह, विशेषज्ञ गबाह, शराबी की गवाही, न्यायालय को कार्यविधि, शपथ, प्राचीन काल में भी शपथ लेने की व्यवस्था ३७, चिकित्सक की गवाही-
AR
रानीकी नीर कार्यकজা ২২৯।
२९८-३१०
भारतीय दण्ड संहिता धानिक संतान १९८, वैधानिक सहि से 'बाल इत्या' का महत्व २९९, पैदा होते समय था या नहीं २९९, साँस लेने या न लेने के प्रमाण २०० परीक्षा २०१, रेडिन की परीक्षा, गर्म के परिवहन तन्त्र में परिवर्तन ३०४, बेसलो की परीक्षा, मरा बथा पैदा होने के लक्षण ३०५७ शिशु के मरने का कारण २०७, प्राकृतिक कारण, दुर्घटना ३०७, पैदा होने के बाद की दुर्घटना, अवैधानिक कारण ३०८, असावधानी के कारण मृत्यु ३०८, अकस्मात् प्रसव होना ३०९, शिशु के शब की परीक्षा ११० ।
अठारहवाँ अध्याय उन्माद का वैधानिक महत्त्व
उन्माद ३११, कानून ३११, मतिभ्रम का वैधानिक महत्व ३१२, आंति का वैधानिक महत्व ३१३, मानसिक सुबोध के समय का वैधानिक महत्व ३१४, उन्माद के प्रकार, विक्षिप्तावस्था २१७, क्रियात्मक उन्माद, साधारण उन्माद, उम्र पागलपन ३१८, जीर्ण पागलपन, मानसिक अवसाद ३१९, तीव्र मानसिक अवसाद, जीर्ण मानसिक अवसाद ३२०, भ्रमित उन्माद, तीव्र अवस्था, जीर्ण अवस्था ३२१, थकावटजन्य मानसिक विकृति ३२२, शाइजोफीनिया ३२२, केटाटोनिया ३२३, शारीरिक रोग से सम्बन्धित उन्माद, मिरगीजन्य उन्माद, मिरगी के पूर्व का उन्माद ३२४, मिरगी के पश्चात् का उन्माद, मनोवैज्ञानिक मिरगी, सिफलिसजन्य उन्माद ३२५, वास्तविक तथा नकली उन्माद में भेद ३२६, रोगी का नागरिक उत्तरदायित्व, बसीयत बनाना ३२८, रोगो पर अपराध का उत्तरदायित्व ३३०, पागल रोगी को अस्पताल से छुट्टी देना ३३३ ।
(२४)
उनीसवाँ अध्याय : वैकृतिक परीक्षायें
३३४-३५२
रक्त के धकने की पहचान (ब्लेड स्टेन्स), स्थूल परीक्षा, रफ के. रंग पर समय का प्रभाव ३१४, रक्त निकलने के अनुसार रक्त की प्रकृति, जीवित अवस्था में तथा मरणोपरांत रक्त में अन्तर ३३४, रत की रासायनिक परीक्षा, बेनजीहीन परीक्षा, फेनौल फ्थलीन परीक्षा, ग्लायकम परीक्षा ३३६, माइक्रोस्कोप से परीक्षा, टेकमान परीक्षा १३७, स्पेक्टौस्कोप से परीक्षा ३३०, सीरोलोजिकल या प्रेसिपिटीन परीक्षा ३३८, रक्त का वर्गीकरण (ब्लड भूपिंग), पिता तथा संतान के रक्त का सम्बन्ध, माता-पिता के रक्त का बर्ग, संतान के रक्त का बर्ग ३३९, सन्तान के वास्तविक पिता का पता लगाना ३४०, शुक का घच्या ३४१, एसिडफौसफेलेस की परीक्षा, फ्लोरेन्स परीक्षा ३४२, बारबेरो की परीक्षा, प्रेसिपिटीन परीक्षा, अपराध में प्रयोग किये जाने बाले कुछ यंत्र, व्यवहारायुर्वेद तथा नीतिशास्त्र ३४३, नीतिशान ३४४।
बीसवाँ अध्याय : चिकित्सक सम्बन्धी कुछ कानून
इनडिप मेडिकल काउंसिल, चिकित्सकों के नाम का पञ्जीकरण ३४७, चिकित्सक के कर्तव्य ३४८, चिकित्सक को मिलने वाली सुविधायें या अधिकार ३५०, चिकित्सा परिषद् चिकित्सक का नाम स्थायी या अस्थायी रूप से अपने रजिस्टर से काट सकती है ३५१, अव्यवसायिक कार्य ३५२, व्यवसायिक लापरवाही, नागरिक (या दोबानी) लापरवाही ३५३, लापरवाही के अपराध से बचने के लिये चिकित्सक को निम्न बातों पर ध्यान देना चाहिये ३५४, अपराधी (या फौजदारी) लापरवाही, संक्रामक रोग ३५५ ।
इक्कीसवाँ अध्याय : भारतीय दण्डसंहिता की कुछ विशेष
बातें (इण्डियन पीनल कोर्ट) ३५६-३५८ आयु निर्धारण के लिए किसी मनुष्य की परीक्षा करना ३५७, आग्नेय अन से सम्बन्धित नियम ३५८।
बाइसवाँ अध्याय : उत्तर प्रदेश इण्डियन मेडिसिन एक्ट की
कुछ उपयोगी धाराएँ

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