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500 _aविषयानुक्रमणिका मङ्गलाचरण (आत्माका आश्रयण) आत्माके विशेषण अखण्डम् २, सच्चिदानन्दम् ३, अवाङ्मनसगोचरम् ४, स्वरूपलक्षण और तटस्थलक्षण ४. अखिलाधारम् ५, आत्माश्रयणका प्रयोजन ५। गुरुवन्दना और ग्रन्थनिर्माणकी प्रतिज्ञा वेदान्तपदवाच्य ग्रन्य और अनुबन्धोंका उल्लेख उपनिषद् ७, शारीरकसूत्रादीनि ८, प्रकरणका लक्षण ६। अनुबन्धचतुष्टय प्रथम अनुबन्ध अधिकारीका लक्षण साधनचतुष्टयसम्पन्नः ११, नितान्तनिर्मलस्वान्तः ११, निर्गतनिखिल- कल्मषतया ११, त्याज्य और अनुष्ठेय कर्म ११, अधिगताखिल- वेदार्थः १२, 'जन्मान्तरे वा'का औचित्य १२, प्रमाता १४। त्याज्य और अनुष्ठेय कर्मोंके लक्षण और उदाहरण काम्य और निषिद्ध १५, नित्यकर्म १५, नैमित्तिककर्म १६, प्रायश्चित्त १६, उपासना १६, शाण्डिल्यविद्या १७। अनुष्ठेय कर्मोंका परमफल तथा अवान्तरफल साधनचतुष्टय नित्यानित्यवस्तुविवेक २२, इहामुत्रार्थफलभोगविराग २३, शम और दम २४, उपरति २४, तितिक्षा २५, समाधान २६, श्रद्धा २७, मुमुक्षुत्व २७। अवशिष्ट अनुबन्ध विषय ३१, सम्बन्ध ३२, प्रयोजन ३२, ग्रीवास्थग्रैवेयकन्याय ३३। आत्मज्ञानके लिए अधिकारीका कर्त्तव्य अध्यारोपापवादन्याय ३६। अध्यारोपका लक्षण अज्ञानका लक्षण ३८, अनिर्वचनीयम् ३८, त्रिगुणात्मकम् ३६, ज्ञान- विरोधि ३६, भावरूपम् ४०, यत्किञ्चित् ४०, अज्ञानमें प्रमाण ४१ अज्ञानसमष्टि और उससे उपहित चैतन्य (ईश्वर) समष्टि और व्यष्टि ४३, उपाधि ४४। अज्ञानव्यष्टि और उससे उपहित चैतन्य (प्राज्ञ) ईश्वर और प्राज्ञका भोग, उनका और उनकी उपाधियोंका अभेद अनुपहित तुरीय चैतन्य और "तत्त्वमसि" महावाक्यका लक्ष्यार्थ लक्षणा ५५. तप्तायः पिण्डका दृष्टान्त १५, महावाक्यका अर्थ ५६। अज्ञानकी दो शक्तियाँ आवरणशक्ति ५८. विक्षेपशक्ति ५८। ईश्वरकी निमित्तोपादानकारणता आक्षेप और समाधान ६१। अज्ञानोपहित चैतन्यसे आकाशादि सूक्ष्मभूतोंकी उत्पत्ति सूक्ष्मशरीरकी उत्पत्ति तथा उसके सत्रह अवयव विज्ञानमयकोश और मनोमयकोश पञ्चकर्मेन्द्रिय और पञ्चवायु पञ्चवायुके सम्बन्धमें मतान्तर प्राणमयकोश सूक्ष्मशरीरमें कोशोंकी व्यवस्था समष्टि सूक्ष्मशरीर तथा उससे उपहित चैतन्य (सूत्रात्मा) व्यष्टि सूक्ष्मशरीर और उससे उपहित चैतन्य (तैजस) सूत्रात्मा और तैजसका भोग, उनका तथा उनकी उपाधियोंका अभेद पञ्चीकरणकी प्रक्रिया - स्थूलभूतोंकी उत्पत्ति पञ्चीकरणका प्रामाण्य और स्थूलशब्दादिकी अभिव्यक्ति स्थूलभूतोंसे चौदह लोकों और चतुर्विध स्थूलशरीरोंकी उत्पत्ति स्थूलशरीरोंकी समष्टि तथा उससे उपहित चैतन्य (वैश्वानर) व्यष्टिस्थूलशरीर और उससे उपहित चैतन्य (विश्व) वैश्वानर और विश्वका भोग, उनका तथा उनकी उपाधियोंका अभेद त्रिविध प्रपञ्चोंका समष्टिभूत महान् प्रपञ्च 'सर्व खल्विदं ब्रह्म' का अर्थ सामान्य अध्यारोपका उपसंहार
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