000 | 04194nam a22001697a 4500 | ||
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999 |
_c15877 _d15877 |
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003 | OSt | ||
005 | 20240612123823.0 | ||
008 | 201027b xxu||||| |||| 00| 0 eng d | ||
041 | _aHINDI | ||
082 | _a181.45 SRI | ||
100 | _aSrivastava,Sureshchandra | ||
245 | _aPatan Jal Yog Darshanam | ||
260 |
_aVaranasi _bChaukhamba Surbharati Prakashan _c2019 |
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300 | _a600p. | ||
500 | _aविषयानुक्रमणी प्रथम समाधिपाद (कुल ५१ सूत्र) योगशास्त्र का आरम्भ योग का लक्षण एवं फल चित्तवृत्तियाँ योग के उपाय अभ्यास वैराग्य सम्प्रज्ञात समाधि असम्प्रज्ञात समाधि समाधिसिद्धि की आसन्नता ईश्वर-प्रणिधान ईश्वर-निरूपण योग के अन्तराय चित्त के परिकर्म चतुविधसमापत्तिवर्णन निविचारासमापत्ति का उत्कर्ष ऋतम्भराप्रज्ञा ऋतम्भराप्रज्ञाजन्यसंस्कार निरोधसमाधि द्वितीय साधनपाद (कुल ५५ सूत्र ) क्रियायोग पञ्चक्लेशवर्णन अविद्यालक्षण अस्मितालक्षण रागलक्षण द्वेषलक्षण अभिनिवेशलक्षण क्लेशनिवारणस्वरूप कर्माशयभेद कर्मफलसिद्धान्त दुःखवाद का विवेचन हेयनिरूपण हेयहेतु निरूपण दृश्यस्वरूपनिरूपण द्रष्ट्रस्वरूप निरूपण दृश्य की नित्यता का वर्णन प्रकृतिपुरुषसंयोग का वर्णन हान का स्वरूप हानोपाय योग के आठों अङ्गों का वर्णन यमों की सिद्धियाँ नियमों की सिद्धियाँ आसन और उसकी सिद्धि प्राणायाम और उसकी सिद्धि प्रत्याहार और उसकी सिद्धि विषय तृतीय विभूतिपाद (कुल ५५ सूत्र) धारणाध्यान समाधिवर्णन संयम का अन्तरङ्गत्व त्रिविध चित्तपरिणाम धर्मलक्षणावस्थापरिणाम धर्मी का स्वरूप परिणामक्रम संयम की सिद्धियाँ महाविदेहा वृत्ति भूतजय और उसकी सिद्धियाँ इन्द्रियजय और उसकी सिद्धियाँ सत्त्वपुरुषान्यथाख्याति और सिद्धियाँ देवताओं का निमन्त्रण विवेकजज्ञाननिरूपण कैवल्यनिर्वचन चतुर्थ कैवल्यपाद (कुल ३४ सूत्र ) विषय पञ्चविधसिद्धियाँ जात्यन्तरपरिणाम निर्माणचित्त चतुर्विध कर्म वासना बाह्य पदार्थों की सत्ता पुरुष में चित्तद्रष्टृत्व जीवन्मुक्त की मनोवृत्ति धर्ममेघसमाधि परिणामक्रमसमाप्ति कैवल्यस्वरूपव्यवस्था | ||
942 |
_2ddc _cBK |