000 12542nam a22001817a 4500
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041 _aHINDI
082 _a615.538 THA
100 _aThatte,Dinkar Govind
245 _aSusruta Samhita me Shaarira Rachana
260 _aVaranasi
_bChaukhambha Orientalia
_c2017
300 _a244p.
500 _aविषय-सूची अध्याय : १ धातु भेद शारीर १-१३ उद्भुत शुक्र लक्षण आर्तव विसर्जन परिभाषा १ सप्त धातु १ अव्यक्त २ क्षेत्र एवं क्षेत्रज्ञ २ अहंकार २ इन्द्रिया ४ अष्ट प्रकृति एवं षोडष विकार ४ देश के ि त्रिगुणात्मक प्रकृति ४ भूतग्राम ४ परीक्ष चिकित्साधिकृत पुरुष 4 वणोंत्पत्ति ६ चिकित्स्य पुरुष ७ पुरुष, व्याधि, औषधि, क्रियाकाल चतुष्टय ८ दौहद जीवरक्त विज्ञा ९ धातु ९ OT शरीरागार १० त्रिगुणात्मक शरीर १० स्वभाव सन्निवेश ११ सत्य भूयिष्ठ ११ शल्य ज्ञान का महत्व १२ शवच्छेदन योग्य मृत शरीर १२ चतुष्यमाण १३ अध्याय : २ गर्भ शारीर १४-५१ पूर्ण वीर्यता आर्तव स्वाव काल ऋतुमति ऋतु स्नाता सुप्रजा शुक्र प्रादुर्भाव-रोम राजी पुत्रार्थी निर्देश सौम्य शुक्र-आग्नेय आर्तव सम्मूर्छित गर्भ वर्णोत्पत्ति गर्भ सामग्री मासानुमासिक गर्भ विकास क्रम गात्र पंचक सद्योगृहीत गर्भिणी देह प्रकृति निर्माण गर्भिणी लक्षण गुणयुक्त पुत्र प्राप्ति गर्भ रस संवहन अंग प्रत्यंग निवृत्ति गर्भस्थ शिशु क्यों नहीं रोता है? पितृज मातृज भाव पुत्रोत्पत्ति लक्षण एवं कारण गृहीत गर्भाSTIC १४ शुक्रार्तव विसर्जन धमनी नाभि ज्योति स्थान १४ गर्भ शय्या प्रसव पूर्व गर्भ आसव १५ गर्भाशय स्थिति मिथ्या वेदना १५ सर्वदेहाश्रित शुक्र आसन्न प्रसवा लक्षण १६ शुक्र प्रवर्तन अपरा पातन प्राणि भेद स्तन्य प्रकार-प्रवृत्ति ४० जाल मलाधार ५६ नवजात में स्तनपान निदेश ४१ कूर्च सूतिका काल ४२ संधात ५ शिशु रूजा लक्षण ४२ सीमन्त बाजीकरण ४२ स्वभाव क्या है? आर्तव लक्षण ४३ अस्थि सार कौमार भृत्य क्या है ४३ भग्र भेद अल्प शुक्रता कारण ४४ भग्न के अन्य भेद आर्तव क्षय ४४ अधिर्मास रोग आर्तव वृद्धि ४५ कपालिका रोग आदिबल एवं जन्म बल प्रवृत्त रोग ४५ भग्न जुड़ने का काल सहज एवं अपथ्यज प्रमेह ४६ भग्न में पट्ट निदेश नैत्रवर्ण ४६ पर्शका भग्न यमल गर्भ ४६ मांस रज्जु षण्ड ४७ भग्न में बंध निर्देश शुक्र विकारी कौन है ४७ कपाट शयन क्लीव ४८ भग्न पाक वातप्रकोप एवं दौहद आद्यिदन्त में अग्निकर्म अवमानना परिणाम ४८ स्तन विद्रधि ४९ अपरापातन निर्देश ४९ मूढ़गर्भ निष्कासन क्रिया ५० मूढ़गर्भ पातन ५० दंत उत्पाटन में उपद्रव दंत कपालिका अवमार्जन नस्य कर्म के लाभ अध्याय : ४ संधि शारीर ७ अध्याय : ३ अस्थि शारीर५२-६९ शारीर विषय की बहुज्ञता अस्थि पितृज भाव ५२ सन्धि भेद अस्थि संख्या ५२ संधि संख्या पाणि-पाद अस्थि संख्या ५२ संधि प्रकार अस्थि प्रकार ५३ संधि मर्म अस्थि का आन्तरिक रूप ५४ संधि संस्लेष अस्थि धातु दर्शन ५४ संधि विष्लेष सप्त धातु एवं धातुओं के मल ५४ बलास अस्थि मर्म ५५ चल सन्धि आश्रित व्रण मर्म ज्ञान महत्व उत्तरोत्तर दीर्घायु लक्षण (xi) आंत्र प्रमाण १८१ अष्ठौला श्रोणि गव्हर गत रचनाएं १८१ अंगुलि प्रमाण मूत्रोत्पत्ति वर्णन ९८२ सम्यगरूढ़व्रण पनीहोदर १८३ पुनः प्रत्यंग अंगुलि प्रमाण १८३ सार पुरुष यकूददाल्युदर अर्श १८३ अध्याय : १२ दोष धातु एवं गुद् एवं गुद वलियां १८४ मल शारीर २०२- त्रिदोष-धातु क्या है? बद्धगुदोदर १८६ परिश्रावी उदर १८७ त्रिदोष स्थान एवं गुण सत्रिरूध गुद् १८७ रक्त का स्थान निरूद्ध प्रकाश १८८ दोषों का स्थान संश्रय मूह गर्भ १८८ शारीरिक शल्य अन्र्तविद्रधि १८९ अध्याय : १३ शल्य तंत्रीय वृद्धि रोग १९० शारीर २०६ आंत्र वृद्धि १९० छेदन प्रकार रक्त धरा कला १९१ अग्नि कर्म मेदोधरा कला १९१ अधिमन्थ पुरीष धरा कला १९२ प्रच्छान विधि बर्हिमुख स्रोतस १९२ संधान कर्म षोडष कण्डरा १९२- व्रणवस्तु अध्याय : ११ प्रमाण शारीर मूत्रवृद्धि एवं जलोदर में १९३-२०१ सिरावेध परिभाषा १९३ सीवन हेतु निर्देश आयु प्रमाण १९३ अस्थि गत शल्य दीर्घायु लक्षण १९४ वृद्धि रोग मध्यायु लक्षण १९४ परिवर्तिका अल्पायु लक्षण १९४ अवपाटिका अंग्र प्रत्यंग अंगुलि प्रमाण १९५ निरूद्ध प्रकश पुरूष एवं स्त्री की सन्तानोत्पत्ति अध्याय : १४ व्यवहा योग्यता १९७ शारीर शिष्योपचयन १९८ व्याधि प्रकार स्वास्थ्य की परिभाषा १९८ बन्ध का महत्व त्वचा स्तर सुचिकित्स्य व्रण (xii) जिल्हा की उत्पत्ति अन्तर्मुख भगन्दर २१८ स्वभाव बलं प्रवृत रोग पंच महाभूतों का शरीर निर्माण २१८ कालकृत एवं अकालकृत रोग २१९ में योगदान चेष्टावान एवं स्थिर संधि नेत्र विकास में पंचमहाभूत २२० पिड़िका प्रकार २२० बहिर्मुख स्रोतस विविध विद्रधि लक्षण २२० इन्द्रियों में सन्धि संख्या अध्याय १५ कला शारीर इन्द्रियों में पेशियां उर्ध्व जत्रु गत सिरा संख्या कलाप्रकार २२२ इन्द्रियों में धमनी संख्या (अ) मांस धरा कला २२२ इन्द्रियों के सामान्य रोग (ब) रक्त धरा कला २२३ धमनी एवं इन्द्रियाधिष्ठान संबंध (स) मेदो धरा कला २२३ इन्द्रियों द्वारा रोग ज्ञान (द) श्लेष्म घरा कला २२४ ओष्ठ अरिष्ट (य) पुरीष धरा कला २२४ नेत्र द्वारा अरिष्ट ज्ञान (र) पित्त धरा कला २२४ शब्दवाही स्रोतो दुष्टि चार प्रकार के भोज्य २२५ अधिमंथ २ शुक्र धरा कला २२५ पंच महाभूतों से इन्द्रिय उत्पत्तिस अध्याय : १६ इन्द्रिय शारीर २२७ दो-दो रचनाएं कौन हैं? २ एकादश इन्द्रियां २२७ इन्द्रियों के देवता नयन बुद् बुद्-प्रमाण २ २२७ इन्द्रियों में पंच महाभूतों के गुण २२८ नेत्र दृष्टि २ बारह प्रकार के प्राण नेत्र मण्डल, सन्धि एवं २२८ पटल संख्या इन्द्रियों में अभिलाषा की उत्पत्ति २ २२९ मन उभयेन्द्रिय का विकास नेत्र गोलक के बन्धन में २२९ नेत्र आयाम सहयोगी रचना सत्व सार नेत्र गोलार्क की चालक पेशिया २
942 _2ddc
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