000 | 19240nam a22001817a 4500 | ||
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100 | _aSharma,Priyavrat | ||
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260 |
_aVaranasi _bChaukhambha Orientalia _c2017 |
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300 | _a265p. | ||
500 | _aविषय-सूची चाने क megle m OF दोषों का काल कोड का भेद १० कि १२ नश्यादि मेवनविधि १३ इथ्य के उष्ण और शीतवीर्य तैलाभ्यङ्ग के गुण द्रव्य का विपाक का निषेध दृद्व्य के गुण व्यायाम से लाभ रोग का कारण तस्थान के अध्यार्थी के माम शारीरश्धान २५ चारपालका परिणाम बायु के गुण पित के कफ के दिनचर्या अध्याय ।। २॥ संसर्ग और सचियान के गुण धातुओं का वर्णन मों की संज्ञा वृद्धि और हास रसों का वर्णन रसों के गुण दब्य के भेद प्रातः उठने का समय २५ 11 उठने के पश्चात् कर्तब्य २६ दम्तधावन का प्रतिषेध २७ सौवीराञ्जन (सुर्मा) के गुण रसाश्रन की विधि ऋतुचर्या अध्याय ।। ३॥ पातु वर्णन बल का उपचयापचय डाल हेमभाऋतु में जाराद्मि का प्रावस्य "मैं ऋतुचर्या " में ज्ञान भोजनादि व्यवस्था " में संभोग्य स्त्री में प्रशस्त गृह शिशिर ऋतुचर्या २८ वसन्त ऋतुचर्या २९ "के मध्याद्ध में सेवनीय ध्यान में वर्य पदार्थ प्रीष्म ऋतुचर्या में भोजनादि व्यवस्था में रात्रि-भोजन व्यवस्था रोग विशेष में ताम्बूल का निषेध के अयोग्य मनुष्य रोगारोग्य का व्याग और भेद की योग्यता और समय के मध्याद्ध में सेवनीय स्थान रोगों का अधिष्ठान के पश्चात् कर्तव्य ३० अतिव्यायाम तथा जागरणादि से हानि " की रात्रि में मन को दूषित करने वाले दोष रोगज्ञान के उपाय वर्षा ऋतुचर्या उबटन में लाभ में भोजनादि व्यवस्था रोगविशेष को जानने के उपाय खान के गुण में विशेष नियम देशभेद उष्ण जल से खान की विधि-निषेध पारद् ऋतुचर्या औषध के भेद १७ जान के अयोग्य मनुष्य " में भोजनादि व्यवस्था औपच का विषय १८ भोजन तथा मल-मूत्रोत्सन की " में हंसोदक का प्रावासय चिकित्सा के पादभेद व्यवस्था " में संध्या सेवन विधि वैद्य के गुण औषध के चार गुण १९ परिचारक के" " सुखसाधन धर्म की प्रशंसा मित्र और शत्रु के प्रति आचरण दाविध पार्यों की समीक्षा ३२ " में षयवस्तु पऋतुचर्या গऋतुसन्धि (1) wild of mind eve જાય રોવરે છે રોષ भाई बाँ रोकने से रोग शुक के रन वेग रोकने से रोग च्य रोग बेगरोभव्य रोगों में कर्तव्य तादिमों का बचाकर शोधन होमादि का वेग रोकना श्रावश्यक शोधन के पद्मात् रसायन प्रयोग पथ्यादि विधि पूर्वोक्त कम का सुपरिणाम आगन्तु शेव •का प्रतीकार रोगों से बचने का उपाय द्रवद्रव्यविज्ञानीय अध्याय ।। ५॥ गाङ्गोदक के गुण सामुद गालोदक के अनाव में पेय जल दूब के मन केतुम पुराने घृत के गुण किकार गी के दूध तथा पूत की श्रेाता गधे के रस का गुण १८फाणित (राब) मुल शकर, मिश्री आदि के गुण बवाये की शकर" अन्य शर्करा शर्करा और फाणित का अन्तर मधु के गुण उष्ण मधु के गुण नैह के सामाम्य गुण एरण्ड तेल के रन परण्ट के नेल 11 Dilip or ge झवाडी का गुण गी जादि के सूप के तु चम्चा का उदार अनस्वम्वविज्ञानीय अध्याय चावलों के भेद ७२ काल चावल के गुण यवकादि साठी २३ विभिन्न चावलों के गुण पाटल आदि के गुण तृणधान्य कोदो जी बीसक जी शिम्बीधान्य के सामान्य गुणः मूँग क गुण कुलथी का गण शिष्याय (मेम) के गुण उबद के गुण मरमों के तेल का अपेय जन बहेवे के तेल का नदियों का पथ्यापथ्य जह १२ नीम के तेल का कूपादि क। जल अलसी और कुसुम्भ तेल के गुण निल के गुण बछ पीने के अयोग्य रोगी वसादि के गुण अलसी और कुसुम के बीज के गुणा मोजन के समय अलपान से गुणाबसूण शीतल (१ण्डा) जल के गुण मच के सामान्य गुण नवीन और पुराण धान्य ६५ नये और पुराने मथ के गुण मद्यपान का निषेध गरम ७८ चावल के मण्ड का गुण छषित शीतल पैया के ६६ सुरा के गुण विलेपी के वारुणी भात के જમતી છે વૃષ શા we wiw ) दामा (सुने) जी कादि १०विदारीकन्द विश्याक (क) के पाक भेद से अक्षों के गुण सूर्यो के नाम विष्किर पश्चिमी के नाम २१ तुम्वी आदि के मू प्रतुद पक्षियों के नाम विलेशय प्रसह पशुत्री महासूनी जङ्गली जीवों के मांस का गुण खरगोश के बटेर आदि के मोर मुर्गादि के बिलेशयादि के महामृगादि के बकरे के भेदों के गोमांध (गाय के मांस) के गुण भसा के सूअर क मछली के कदम्ब-पुष्पादि सामान्य शाक तर्कारी और वरुण " पुनर्नवा और काळशाक पुत्तिकरक्ष के अधूर के गुण शतावरी के अहुर इमली और बेर के गु १८ वषटक) की हीनता नमक सेश्धा नमक चिड नमक सामुद नामक ९९ उद्भिद काला रोमक और पांशुक नमक नमक का प्रयोग जवाखार के गुण चार-सामान्य ९३ वंशाकुर के गुण कसौंदी हींग कुमुम का शाक हरय ९४ सरसों मूली (कथा) के गुण बहेबा वाराहीकन्द १० कुठेरक शोभाञ्जन श्रादि के गुण तुलसी के गुण हरी धनिया त्रिफला बिजात और चातुर्जात कालीमिर्च के गुण विप्पली लशुन सौंठ प्याज शाकों का गुण मकोय शाक सवत्तिम मांस अषय (खाने योग्य) मांस स्याउय मांस नर-मादा का मांस ९५ गन्दन (लशुन भेद) के गुण जमीकंद (सूरण) के गुण पत्रादि के गुण चाङ्गरी शाक शाकों में वरावरश्व पटोलादि शाक ९६ दाख के गुण परवल का विशेष " " अनार दोनों कटेरी केला, खजूर आदि फलों के गुण 13 17 करेले وو तालफलादि के गुण बेल गन " कपित्थफल 11 अदरख चव्य तथा पिप्पलीमूल चिन्त्रक (चीता) के गुण पञ्चकोल वृहत्पञ्चमूल १०२ लघुपञ्चमूल के गुण मध्यम (तृतीय) पञ्चमूल 11 जीवन (चतुर्थ) पश्चमू तृण (पश्चम) पञ्चमूल षष्ठाध्याय का उपसंहार थों के दोष बों के पकथने की विचि बैंक का प्रयोग सविय जोक के लक्षण तथा उनका निपेध नविष जोंक के प्रयोग से हानि तथा चिकित्मा निर्विष जोंकों के लक्षण निर्वियों में भी त्याउप जोक बैंक लगाने की विधि कोंक द्वारा दूषित रक्त का पहले વિશાlk of the pપિયા 1 meda ane man of होतानुसार सिरावे के रवान fartin me i miein मिश का वेधन सिरावेध के प्रथम कर्तब्य सिरा की जापान विधि उवनासिका का सिरावेधन २५९ जिद्धास्य सिरावेचन श्रीवास्थ श्रीवा me २६५ सन्धिगत २६६ वगादिश्य ज्ञान के अन्य उपा वाक्य का रोगादि रुव अन्तःयाश्य से मी पुनः पीवा स्वरूप का शान मांस में नष्ट शक्य का ज्ञान पेश्यादि में नष्ट शक्य का ज्ञान अस्थियों में नष्ट शक्य हस्त २५९ पार्थ पाद अनुक्तरथानों में स्वबुद्धि से कश्पना, सन्चियों में नष्ट शवय खायु-सिरादि में नष्ट शक्य.. मों में नष्ट वशश्व के प्रयगनुक्ति २६० मांसल आदि स्थानों में श्रीहि मुखादि से वेधन जॉक का छुदाना और वमन कराना .. रक्तपान के बाद पुनः रक्तपान का निषेध जॉक को सम्यग्वमन कराने से लाभ,, अतिवमनादि से जॉक के चक्षति २६१ जॉकों का अलग-अलग पालन का विधान अशुद्ध रक्त निकलने पर कर्तव्य दुष्ट रक्त निकलने से लाभ शेष अशुद्ध रक्त को पुनः निकालना आवश्यक २ अ० सू० सम्यग्विद्ध अश्पविद्धादि सिरा का लक्षण रक्तस्राव न होने के कारण असम्यक और सम्यक खाव में कर्तब्य दूषित रक्त का प्रथम स्राव शुद्ध रक्तस्राव का निषेध मूर्च्छा में कर्तब्य वातादि दूषित रक्तों के लक्षण अशुद्ध रक्तस्राव का प्रमाण अधिक रक्तस्त्राव में कर्तव्य रक्तस्त्राव के पश्चात् कर्तब्य अशुद्ध रक्त का पुनः स्रावण अधिक रक्तस्त्राव का निषेध २६७ का हेतु नष्ट पाश्य का सामान्य ज्ञान श्रणाकृति से शश्याकृति का ज्ञान शश्यकर्षण के उपाय २६७ अनिर्घातनीय चाश्य निकालने के अयोग्य वाक्य हस्तप्राध्यादि दृश्याश्यों का निकलना अदृश्य शस्यों का निकालना स्वगादि में स्थित शश्यों का निकलना 11 शस्त्र द्वारा छेदन २६८ सिरा स्नायुगत शश्य का निकालना हृदयगत अस्ध्यादि गत धनुष की डोरी में बाँधकर फूले हुए शश्मों का વશિre & લાઈ कर्मच T ate fire are as former as સાથે શ્રીદર સળ राम्माकमविधि अध्याय ॥ २६॥ श्रम शोष का पके हुए बायु के बिमा शूलादि का कारण श्रत्यन्त पाक में विद्वादि होना रकपाक का लक्षण निर्वाहादि के पाक का दारणादि २७८ पों को धोने के पूर्व और बाद रक्तहीन मण को सीने की विधि मण को बाँधने के पदार्थ श्रण को बाँधने के प्रकार sev pelte in In जांगदग्ध में कर्तव्य २८५ वणी को डीला या कसकर बाँधमा २८६ क्षण को नहीं बोंचने में हानि २७९ क्षण को चाँधने में लाम वचनंद में अशिदाद मर्शाद रोग में वर्वात आदि से अर्श आदि में मधु शादि से मांसवाद लिष्टादि रोगों में मध्वादि से मिरादाद " अग्निदाह के अयोग्य सम्यदग्ध में कर्तव्य स्थिरादि बौषधों पर पत्राच्छादन२८७ नहीं बाँधने योग्य बंग अरचा से कृमियुक्त वर्षों की चिकित्मा दूषित बणों में रोहण निषेध रोपिन बी में स्याज्य कर्म सम्यद्रव के लक्षण दुर्दग्ध तथा अतिदग्ध के लक्षण- भेदादि अपक शोफ के छेदन से उपद्रव भीतर बच्चे हुए पीब से हानि शाययोग के पहले कर्तव्य " मूहगर्मादि में उक्त कर्म का निषेध २७९ शखकर्म की विधि शक्षकर्म में वैद्य के शौर्यादि की शेष अवस्थाओं में बंध का कर्तव्य तुच्छदग्ध की चिकित्सा दुर्दग्ध की चिकित्सा सम्यदङ्ग्ध चिकित्सा प्रशंसा भेदन की दिशा अतिदग्ध क्षाराग्निकर्मविधि अध्याय ब्रहदग्ध अम्यन्त्र तिर्यक क्षेदन में हानि क्षारकर्म की श्रेष्ठना सूत्रस्थान की समाप्ति | ||
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