Bhavaprakasa (Record no. 19856)

MARC details
000 -LEADER
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003 - CONTROL NUMBER IDENTIFIER
control field OSt
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020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER
International Standard Book Number 9788186937439
041 ## - LANGUAGE CODE
Language code of text/sound track or separate title HINDI
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER
Classification number 615.538 MIS
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME
Author name Misra,Brahma Shankara
245 ## - TITLE STATEMENT
Title Bhavaprakasa
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. (IMPRINT)
Place of publication, distribution, etc. Varanasi
Name of publisher, distributor, etc. Chaukhambha Sanskrit Bhawan
Date of publication, distribution, etc. 2022
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION
Page 1111p.
500 ## - GENERAL NOTE
General note रजस्वला स्त्रियों के नियम<br/>आयुर्वेद की निरुक्ति<br/>१ स्नानोत्तर रजस्वला स्त्री का कर्तव्य<br/>रजस्वला के नियम पालन नहीं करने पर दोष<br/>१ रजस्वला के साथ सम्भोग निषेध<br/>आयुर्वेद का उत्पत्ति क्रम<br/>२ स्त्री योनि की नाड़ियाँ और उसकी विशेषता<br/>२. सृष्टिप्रकरणम्<br/>ग्रन्थोपक्रम<br/>सम-विषम रात्रियों में स्त्री संभोग करने का फल<br/>प्रकृति के स्वरूपविशेष<br/>१० पुरुष के लिए स्त्री सम्भोग का विधान<br/>प्रकृति-पुरुष के समान धर्म<br/>स्त्री सम्भोग में अयोग्य पुरुष<br/>प्रकृति-पुरूष के विभिन्न धर्म<br/>स्त्री के लिये पुरुष सम्भोग का विधान<br/>प्रकृति के नाम तथा गुण<br/>सम्भोग के अयोग्य स्त्री<br/>सत्त्वगुण से युक्त मन के लक्षण<br/>रजस्वला के साथ सम्भोग निषेध<br/>रजोगुण से युक्त मन के लक्षण<br/>१२ गर्भस्थिति का क्रम<br/>१३ गर्भाशय के स्वरूप १३<br/>तमोगुण से युक्त मन<br/>महत्तत्त्व की उत्पत्ति<br/>गर्भ में जीव के प्रवेश करने का प्रकार<br/>अहङ्कार की उत्पत्ति और भेद<br/>गर्भाशय का द्वार बन्द होने का समय<br/>त्रिविध अहङ्कार के कार्य<br/>यमज सन्तान उत्पन्न होने का कारण<br/>बुद्धि और कर्मेन्द्रिय से मन की अभिन्नता<br/>पुत्र, पुत्री और नपुंसक सन्तान होने के कारण<br/>बुद्धीन्द्रियों के विषय<br/>सद्यः गर्भवती हुई स्त्री के लक्षण<br/>कर्मेन्द्रिय और मन के विषय<br/>गर्भवती स्त्रियों के लक्षण<br/>पंचतन्मात्रों की उत्पत्ति के विषय<br/>पुत्र गर्भवती स्त्रियों के लक्षण<br/>पंचमहाभूतों की उत्पत्ति<br/>कन्या गर्भवती स्त्रियों के लक्षण<br/>आकाश के गुण<br/>नपुंसक गर्भ के लक्षण<br/>वायु, अग्नि, जल तथा पृथ्वी के गुण<br/>नपुंसकों के भेद तथा लक्षण<br/>आठ प्रकृतियों में पहिली प्रकृति<br/>अनस्थि सन्तानोत्पत्ति के लक्षण<br/>सप्तं प्रकृतियाँ<br/>सन्तानों में चेष्टादिभेद के कारण<br/>सोलह विकार<br/>१८ गर्भ के लक्षण<br/>जीवात्मा के निवासस्थान<br/>१८ हृदय के स्वरूप<br/>जीवात्मा और शरीरी<br/>शरीरस्थ दोषों का स्वरूप<br/>जीवविषयक गुण<br/>दोष शब्द की निरुक्ति<br/>३. गर्भप्रकरणम्<br/>त्रिदोषों में वायु के स्वरूप<br/>रजस्वला स्त्री के स्वरूप<br/>उदानादि वायुओं के नाम, स्थान तथा कर्म<br/>गर्भग्रहण के योग्य समय<br/>पित्त के स्वरूप<br/>भावप्रकाशस्य पूर्वखण्डे<br/>१२<br/>पृष्ठ<br/>पित्तों के नाम<br/>३७<br/>शुक्र के स्वरूप<br/>पाचकादि पित्तों के स्थान तथा कर्म<br/>३७<br/>जीव का आश्रय<br/>श्लेष्मा (कफ) का स्वरूप<br/>४१<br/>गर्भ उत्पन्न करने वाले शुक्र के लक्षण<br/>क्लेदनादि कफों के स्थान<br/>४९<br/>शुक्र के स्थान<br/>अवलम्बन, रसक, स्नेहन तथा श्लेषण नामक<br/>शुक्र के निकलने के मार्ग<br/>४२<br/>शुक्र के क्षरण होने में कारण<br/>कफों के कर्म<br/>४३<br/>आर्तव के स्वरूप<br/>धातु शब्द की निरुक्ति<br/>धातुओं के कार्य<br/>४३<br/>गर्भग्रहण के योग्य आर्त्तव<br/>४३<br/>धातुगुण-वर्णन<br/>रस धातु की निरुक्ति<br/>रस के स्वरूप<br/>४३<br/>धातुओं के मल<br/>रस के स्थान और कर्म<br/>४४<br/>उपधातु का लक्षण<br/>आशय के लक्षण<br/>रक्त के स्वरूप<br/>४४<br/>वाग्भटोक्त आशयों का क्रम<br/>रक्त के स्थान<br/>४५<br/>कलाओं के स्वरूप<br/>मांस के स्वरूप<br/>४५<br/>मर्मस्थल के लक्षण<br/>मांसपेशियों की संख्यायें<br/>४५<br/>मर्मों की संख्या तथा स्थान<br/>मांसपेशियों के कर्म<br/>४७<br/>मर्मों के कार्य<br/>मेद का स्वरूप और स्थान<br/>४७<br/>सद्यः प्राणहरण करने वाले मर्मस्थल<br/>हड्डियों के स्वरूप और संख्याएँ<br/>४८<br/>शृङ्गाटक मर्म<br/>हड्डियों के प्रयोजन<br/>४९<br/>अधिपति मर्म<br/>मज्जा के स्वरूप और स्थान<br/>५०<br/>कण्ठशिरा या शिरामातृका मर्म<br/>शुक्र की उत्पत्ति<br/>५०<br/>गुदमर्म<br/>आमाशय का स्थान<br/>५१<br/>हृदय मर्म<br/>कफ का स्वरूप<br/>बस्ति मर्म<br/>ग्रहणी का लक्षण<br/>नाभि मर्म<br/>पंचमहाभूतों में चरकोक्त पञ्चाग्नि का निर्देश<br/>कालान्तर में प्राणहरण करने वाले मर्म<br/>आहार से रसादि का निर्माण<br/>वक्षो मर्म<br/>मूत्र और पुरीषोत्सर्ग में कारण<br/>स्तनरोहित मर्म<br/>आहार रस का कार्य<br/>अपलाप मर्म<br/>ओज के लक्षण<br/>अपस्तम्ब मर्म<br/>स्त्रियों का वीर्य विकृत गर्भ में कारण<br/>सीमन्त मर्म<br/>शरीर में आहार-रस का सञ्चार<br/>तल मर्म<br/>वाजीकरण ओषधियों का प्रयोजन<br/>क्षिप्र मर्म<br/>शुक्रवर्धक पदार्थ<br/>इन्द्रबस्ति मर्म<br/>बालकों के अदृश्य शुक्र में कारण<br/>बृहती मर्म<br/>वृद्धावस्था में शुक्रवृद्धि का ह्रास<br/>पार्श्वसन्धि मर्म<br/>भावप्रकाशस्य पूर्वखण्डे<br/>१२<br/>पृष्ठ<br/>पित्तों के नाम<br/>३७<br/>शुक्र के स्वरूप<br/>पाचकादि पित्तों के स्थान तथा कर्म<br/>३७<br/>जीव का आश्रय<br/>श्लेष्मा (कफ) का स्वरूप<br/>४१<br/>गर्भ उत्पन्न करने वाले शुक्र के लक्षण<br/>क्लेदनादि कफों के स्थान<br/>४९<br/>शुक्र के स्थान<br/>अवलम्बन, रसक, स्नेहन तथा श्लेषण नामक<br/>शुक्र के निकलने के मार्ग<br/>४२<br/>शुक्र के क्षरण होने में कारण<br/>कफों के कर्म<br/>४३<br/>आर्तव के स्वरूप<br/>धातु शब्द की निरुक्ति<br/>धातुओं के कार्य<br/>४३<br/>गर्भग्रहण के योग्य आर्त्तव<br/>४३<br/>धातुगुण-वर्णन<br/>रस धातु की निरुक्ति<br/>रस के स्वरूप<br/>४३<br/>धातुओं के मल<br/>रस के स्थान और कर्म<br/>४४<br/>उपधातु का लक्षण<br/>आशय के लक्षण<br/>रक्त के स्वरूप<br/>४४<br/>वाग्भटोक्त आशयों का क्रम<br/>रक्त के स्थान<br/>४५<br/>कलाओं के स्वरूप<br/>मांस के स्वरूप<br/>४५<br/>मर्मस्थल के लक्षण<br/>मांसपेशियों की संख्यायें<br/>४५<br/>मर्मों की संख्या तथा स्थान<br/>मांसपेशियों के कर्म<br/>४७<br/>मर्मों के कार्य<br/>मेद का स्वरूप और स्थान<br/>४७<br/>सद्यः प्राणहरण करने वाले मर्मस्थल<br/>हड्डियों के स्वरूप और संख्याएँ<br/>४८<br/>शृङ्गाटक मर्म<br/>हड्डियों के प्रयोजन<br/>४९<br/>अधिपति मर्म<br/>मज्जा के स्वरूप और स्थान<br/>५०<br/>कण्ठशिरा या शिरामातृका मर्म<br/>शुक्र की उत्पत्ति<br/>५०<br/>गुदमर्म<br/>आमाशय का स्थान<br/>५१<br/>हृदय मर्म<br/>कफ का स्वरूप<br/>५१<br/>बस्ति मर्म<br/>ग्रहणी का लक्षण<br/>५२<br/>नाभि मर्म<br/>पंचमहाभूतों में चरकोक्त पञ्चाग्नि का निर्देश<br/>५३<br/>कालान्तर में प्राणहरण करने वाले मर्म<br/>आहार से रसादि का निर्माण<br/>५३<br/>वक्षो मर्म<br/>मूत्र और पुरीषोत्सर्ग में कारण<br/>५४<br/>स्तनरोहित मर्म<br/>आहार रस का कार्य<br/>५४<br/>अपलाप मर्म<br/>ओज के लक्षण<br/>अपस्तम्ब मर्म<br/>स्त्रियों का वीर्य विकृत गर्भ में कारण<br/>सीमन्त मर्म<br/>शरीर में आहार-रस का सञ्चार<br/>तल मर्म<br/>वाजीकरण ओषधियों का प्रयोजन<br/>क्षिप्र मर्म<br/>शुक्रवर्धक पदार्थ<br/>इन्द्रबस्ति मर्म<br/>बालकों के अदृश्य शुक्र में कारण<br/>बृहती मर्म<br/>वृद्धावस्था में शुक्रवृद्धि का ह्रास<br/>पार्श्वसन्धि मर्म<br/>yer<br/>९७<br/>अधोवायु रोकने से हानि<br/>९८<br/>मूत्र के वेग की रोकने से हानि<br/>इतनी से दूध उतरने का समय<br/>दातौन करने की विधि<br/>९८<br/>दूध निकलने के कारण<br/>जीभ सफा करने की विधि<br/>९८<br/>दूध के कम निकलने के कारण<br/>९८. कुल्ला करने की विधि<br/>दूध के बढ़ने के कारण<br/>९८<br/>नस्य लेने की विधि<br/>कलम नामक धान्यविशेष का लक्षण<br/>९९<br/>अंजन लगाने की विधि<br/>दूध के दूषित होने के कारण<br/>९९<br/>अंजन लगाने के अयोग्य व्यक्ति<br/>दूषित दूध के लक्षण<br/>९९<br/>नाखून कटाने और बाल बनवाने की विधि<br/>दूषित दुग्ध की शोधन विधि<br/>९९<br/>नाक के बाल उखाड़ने में दोष<br/>शुद्ध दूध के लक्षण<br/>धात्री के लक्षण<br/>१००<br/>बालों में कंधी लगाने के गुण<br/>दूध पिलाने के अयोग्य धात्री के लक्षण<br/>१००<br/>दर्पण में मुख देखने के गुण<br/>बालकों को दूध पिलाने की विधि<br/>१००<br/>व्यायाम के गुण<br/>अविधि स्तनपान कराने का दोष<br/>१०१<br/>बलार्थ का लक्षण<br/>स्तन्य के अभाव में गो अथवा बकरी के दुग्ध<br/>१०१<br/>व्यायाम करने के अयोग्य व्यक्ति<br/>अन्नप्राशन का समय<br/>१०१<br/>अत्यन्त व्यायाम करने से दोष<br/>बालक की परिचर्या<br/>१०१<br/>तेल लगाने के गुण<br/>बालकों के लिये हितकर<br/>१०२<br/>सर्वाङ्ग में तेल लगाने के गुण<br/>बालकों के कवलादि करने का समय<br/>१०२<br/>शिर में तेल लगाने के गुण<br/>बाल्यादि अवस्थाओं की सीमा<br/>१०२<br/>कानों में तेल डालने के गुण<br/>प्रकृतियों के लक्षण<br/>१०४<br/>कान में तेल डालने का समय<br/>वात-पित्त-कफ प्रकृति के लक्षण<br/>१०४<br/>पैरों में तेल लगाने के गुण<br/>द्वन्द्वज तथा त्रिदोषज प्रकृति के लक्षण<br/>१०५<br/>शरीर में तेल लगाकर स्नान के गुण<br/>वाग्भटोक्त वात-पित्त-कफ प्रकृति के लक्षण<br/>१०५<br/>अभ्यङ्ग के अयोग्य जन<br/>५. दिनचर्यादिप्रकरणम्<br/>उबटन लगाने के गुण<br/>देशों के भेद<br/>स्नान की विधि<br/>१०९<br/>अनूपदेश के लक्षण<br/>१०९<br/>आँवला मिश्रित जल के गुण<br/>जांगल देश के लक्षण<br/>साधारण देश के लक्षण<br/>१०९<br/>स्नान करने के अयोग्य जन<br/>दिनादिचर्या<br/>१०९<br/>स्नानोत्तर देह पोंछने के गुण<br/>स्वस्थ पुरुष का लक्षण<br/>वस्त्रधारण करने का विधान<br/>दिनचर्या-विधि<br/>ग्रीष्म ऋतु में वस्त्र धारण विधान<br/>पुरीषोत्सर्ग के वेग को रोकने से हानि<br/>वर्षाऋतु में वस्त्रधारण विधान<br/>नवीन वस्त्रधारण करने के गुण<br/>मलिन वस्त्रधारण करने के दोष<br/>कारण के चोग्य तामा के लक्षण<br/>आंगण के योग्य लामा के लक्षण<br/>९७७<br/>९७७<br/>शुद्ध किये हुए शिलाजीत के गुण<br/>रस की स्वेदन विचि<br/>९७८<br/>रस की मर्दन विधि<br/>लामा के शोचने की विতিि तामे के 2 दोष<br/>९७८<br/>रस की मूर्छन विधि<br/>९७८<br/>मूर्द्धन विधि<br/>लाये के मारने की विधि<br/>९७९<br/>रस की ऊर्ध्वपातन विधि<br/>भारे हुए लामे के गुण<br/>९७९<br/>रस की अधःपात विधि<br/>रांगा का स्वरूप<br/>९७९<br/>पारे के दोषों को दूर करने की शोषन विधि<br/>अशुद्ध वह के दोष<br/>९७९<br/>पारे के मारने की विधि<br/>रांगा तथा सीसा के शोधन की विधि<br/>९८०<br/>रसकर्पूर बनाने की विधि<br/>रांगा के मारण की विधि<br/>९८०<br/>सिन्दूररस बनाने की विधि<br/>मारे हुए रांगा के गुण<br/>९८०<br/>मारित-मूच्छित पारे के गुण<br/>सीसे का स्वरूप<br/>९८०<br/>हिङ्गुल की शोधन विधि<br/>सीसा के शोधन की विधि<br/>सीसा के मारने की विधि<br/>९८१<br/>शुद्ध हिङ्गुल के गुण<br/>९८१<br/>सिंगरफ से पारा निकालने की विधि<br/>मारे हुए सौसा के गुण<br/>अशुद्ध लोहा के दोष<br/>९८१<br/>अशुद्ध गन्धक के दोष<br/>लोहा के दोष की शान्ति के लिये शोधनविधि<br/>९८१<br/>गन्धक शोधने की विधि<br/>लोहा के मारणविधि<br/>९८१<br/>शुद्ध गन्धक के गुण<br/>मारे हुए लोह के गुण<br/>९८२<br/>अशुद्ध अभ्रक के दोष<br/>लौहभस्म खाने की मात्रा<br/>९८३<br/>अभ्रक शोधन-मारण विधि<br/>लौहभस्म खाने के समय त्याज्य द्रव्य<br/>९८३<br/>धान्याभ्रक बनाने की विधि<br/>घातुओं के मारने की साधारण विधि<br/>९८३<br/>मारे हुये अभ्रक के गुण<br/>अशुद्ध स्वर्णमाक्षिक के दोष<br/>९८३<br/>अशुद्ध हरताल के दोष<br/>सोनामाखी शोधने की विधि<br/>९८३<br/>हरताल शोधने की विधि<br/>सोनामाखी मारने की विधि<br/>९८३<br/>हरताल मारने की विधि<br/>रूपामाखी शोधने की विधि<br/>९८४<br/>शुद्धाशुद्ध हरताल के गुण<br/>रूपामाखी मारने की विधि<br/>९८४<br/>सोनामाखी तथा रूपामाखी के विशेष गुण<br/>अशुद्ध मैनसिल का स्वरूप<br/>९८४<br/>मैनसिल शोधने की विधि<br/>अशुद्ध तृतिया के शोधन की विधि<br/>९८४<br/>शुद्ध तूतिया के गुण<br/>शुद्ध की हुई मैनसिल के गुण<br/>कर्कासा तथा पीतल के शोधन की विधि<br/>खपरिया के शोधन की विधि<br/>कांसा तथा पीतल के मारने की विधि<br/>शुद्ध खपरिया के गुण<br/>सिन्दूर के शोधने की विधि<br/>मारे हुए कांसा तथा पीतल के गुण<br/>उपरसों के शोधन की साधारण विधि<br/>अशुद्ध हीरे के दोष<br/>सिन्दूर के गुण<br/>हीरा शोधने की विधि<br/>शिलाजीत के लक्षण<br/>हीरा मारने की विधि<br/>शिलाजीत के शोधन की विधि<br/>मारे हुए हीरे के गुण<br/>शेष रत्नों की शोधन-मारण विधि<br/>वत्सनाभ विष के लक्षण<br/>विष शोधने की विधि<br/>द्वितीयो भाग विषय-सूची<br/>विष के गुण<br/>१०००<br/>ऋतुभेद से विरेचन इल्यों में भेद<br/>अभयादिमोदक<br/>उपविषों का निरूपण<br/>धी तथा तैल के विषय में विशेषता द्रव्यों के पूर्ण गुणयुक्त याने की अवधि<br/>विरेचन लेने के बाद कर्तव्य<br/>१००१<br/>१००१<br/>स्नेह के भेद तथा विशेष नाम<br/>स्नेहपानविधिप्रकरणम्<br/>अनुवासन तथा निरूह के भेद<br/>न्यूनाधिक विरेचन का लक्षण और औषय<br/>१००१<br/>स्नेहवस्ति की विधि<br/>सभी प्रकार के विकारों को दूर करने वाली<br/>श्री तथा तेल पिलाने योग्य व्यक्ति<br/>१००२<br/>अनुवासन वस्ति<br/>मज्जा तथा धी पिलाने योग्य व्यक्ति<br/>शीतादि समयों तथा वातादि दोषों के भेद<br/>नस्य आदि लेने में तेल तथा घृत का प्रयोग<br/>घी आदि के पीने में अनुपान<br/>१००४<br/>निरूहबस्ति की विधि<br/>१००४<br/>उत्क्लेशन बस्ति<br/>१००५<br/>दोषहर बस्ति<br/>१००५<br/>शमन बस्ति<br/>स्नेहन करने वाले अन्य भी पदार्थ स्नेह से द्वेष रखने वालों के लिये स्नेह-पान-विधि<br/>१००५<br/>लेखन बस्ति<br/>२००५<br/>बृंहणवस्ति<br/>स्नेह के न पचने पर कर्तव्य<br/>१००५<br/>पिच्छिलबस्ति<br/>स्नेह न पचने की आशङ्का में कर्तव्य<br/>१००५<br/>निरूह बस्ति की मात्रा<br/>स्नेह पीने से उत्पन्न प्यास की शान्ति<br/>१००६<br/>मधुतैलकबस्ति<br/>१००६<br/>यापनबस्ति<br/>स्नेह पीने के अयोग्य लोग<br/>१००६<br/>युक्तरथबस्ति<br/>स्नेहपान के योग्य लोग<br/>१००६<br/>उत्तरवस्ति<br/>स्नेहपान द्वारा भली भाँति स्निग्ध हुए लोगों<br/>फलवर्ति की विधि<br/>के लक्षण<br/>१००६<br/>नस्यग्रहण की विधि<br/>अधिक मात्रा में स्निग्ध हुए लोंगो के लक्षण<br/>१००७<br/>रेचन नस्य की मात्रा<br/>रूक्ष तथा अत्यन्त स्निग्ध हुए लोगों के<br/>रेचन नस्य की विधि<br/>लिये कर्त्तव्य<br/>१००७<br/>नस्य औषध का प्रमाण<br/>स्नेह सेवन करने के गुण<br/>१००७<br/>स्नेह सेवन करने के समय त्याज्य कर्म<br/>१००७<br/>पञ्चकर्मविधिप्रकरणम्<br/>पञ्चकर्म के नाम<br/>रेचन नस्य के भेद<br/>रेचन नस्य के भेदों के लक्षण<br/>रेचन तथा स्नेहन नस्य के उपयोग<br/>रेचन औषधियों के गुण<br/>प्रधमन नस्य की औषधिय<br/>वमन कर्म में प्रथम वमन के योग्य समय और<br/>स्नेहननस्य की कल्पना<br/>रोगियों का निर्देश<br/>बृंहण नस्य की विधि<br/>वमन कराने के अयोग्य लोगों का निर्देश<br/>प्रतिमर्श की मात्रा<br/>वमन कराने की विधि<br/>प्रतिमर्श का समय<br/>विरेचन के योग्य समय तथा व्यक्ति का निर्देश<br/>उनके योग्य मात्रा एवं द्रव्यों का वर्णन<br/>मृदु, मध्यम तथा क्रूर कोष्ठ वाले मनुष्यों तथा<br/>नस्य की सामान्य विधि<br/>प्रतिमर्श के विषय तथा गुण<br/>प्रतिमर्श के विषय तथा गुण<br/>जस्व देने के पक्षात् निषिद्ध कर्म<br/>देता<br/>जनम रीति से रतलाम केला<br/>व के हीनयोग तथा अतियोग की विकित्सा<br/>१०३४<br/>रक्तसाव कराने के बाद त्याज्य नेत्र की स्वच्छ करने की विधि<br/>नेत्र की सेक करने की विधि नेत्र के आश्ब्योतन विभि<br/>धूमपान की विधि<br/>१०३४ १०३७<br/>धूमपान में ओषधि का कल्क<br/>गृह में देने योग्य धूम<br/>१०३७<br/>पिण्डी की विधि<br/>धूमपान में त्याग करने योग्य कार्य<br/>१०३७<br/>विडालक विधि<br/>१०३७<br/>तर्पण विधि<br/>गण्डूष की विधि<br/>गण्डूष के भेद<br/>१०३८<br/>तर्पण के योग्य नेत्रों के लक्षण<br/>गण्डूष तथा कवल की औषधियों का मान<br/>१०३८<br/>रोगभेद से तर्पण धारण करने के काम<br/>गण्डूष तथा कवल धारण करने में अवस्था<br/>यथार्थ तर्पण के चिह्न<br/>की मर्यादा<br/>१०३८<br/>अतितर्पित नेत्र के लक्षण<br/>गण्डूष धारण के गुण<br/>१०३८<br/>पुटपाक की विधि और भेद<br/>कवलधारण की विधि<br/>१०३८<br/>पुटपाकों के धारण काल की अवधि<br/>प्रतिसारण की विधि<br/>१०३९<br/>तिक्तक द्रव्य<br/>स्वेद की विधि<br/>१०३९<br/>तर्पण तथा पुटपाक धारण किये हुये<br/>स्वेद के अयोग्य व्यक्ति<br/>१०४०<br/>लिये त्याज्य कर्म<br/>तापस्वेद की विधि<br/>१०४१<br/>अञ्जन को विधि और भेद<br/>ऊष्मस्वेद की विधि<br/>१०४१<br/>लेखनकारिणी वर्त्ति<br/>उपनाहस्वेद की विधि<br/>१०४२<br/>रोपणकारिणी वर्त्ति<br/>द्रवस्वेद की विधि<br/>१०४३<br/>स्नेहनकारिणी वर्त्ति<br/>सिर में तेल डालने की विधि<br/>१०४४<br/>लेखनकारिणी रसक्रिया<br/>कान में तेल डालने की विधि<br/>१०४५<br/>रोपणकारिणी रसक्रिया<br/>लेप की विधि<br/>१०४५<br/>स्नेहनकारिणी रसक्रिया<br/>दोषघ्न लेप<br/>१०४६<br/>लेखन चूर्ण<br/>विषहा लेप<br/>१०४६<br/>रोपण चूर्ण<br/>मुखकान्तिदायक लेप<br/>१०४६<br/>स्नेहन चूर्ण<br/>लेप के दो भेद<br/>१०४७<br/>प्रत्यञ्जन सेवन विधि<br/>शोणितस्राव की विधि<br/>वातादि से दूषित रक्तों के लक्षण<br/>१०४८<br/>नयनामृत चूर्ण<br/>१०४८<br/>शुद्ध रक्त के लक्षण<br/>दृष्टि को स्वच्छ करने वाली शलाका<br/>१०४८<br/>रक्तस्त्राव के विषय<br/>औषध खाने के पांच समय<br/>रक्तस्त्राव के साधन<br/>सिरामोक्षण के अयोग्य जन<br/>अधिक रक्त निकलने के दोष<br/>ओषधि के पाकापाक का लक्षण अन्न के साथ ओषधि सेवन के गुण<br/>निरन्न कोष्ठ में ओषधि सेवन के गुण<br/>रोगिपरीक्षाप्रकरणम<br/>रक्त के अधिक निकल जाने पर वायु के<br/>कुपित होने की चिकित्सा<br/>वाग्भटोक्त रोगी की परीक्षा<br/>नेत्र की परीक्षा<br/>जिह्ना की परीक्षा<br/>द्वितीयो भागः विषय-सूची<br/>मूत्र की परीक्षा<br/>स्पर्शद्वारा नाडी की परीक्षा<br/>१०६४<br/>मेदोवृद्धि के लक्षण<br/>१०६४<br/>अत्युन्त बढ़े हुए दोषादि के कारण तथा लक्षण<br/>रोग जानने के कारण<br/>१०६४<br/>दोष, धातु तथा मलों के कम होने के कारण<br/>हेतु का लक्षण<br/>१०६५<br/>क्षीण हुए दोषादि के लक्षण<br/>सम्प्राप्ति के लक्षण तथा भेद<br/>१०६५<br/>ओज के क्षय होने का कारण<br/>विकल्पसम्प्राप्ति<br/>१०६६<br/>ओज के क्षय होने के लक्षण<br/>प्राधान्यसम्प्राप्ति<br/>१०६७<br/>मल के क्षय होने के लक्षण<br/>बलसम्प्राप्ति का व्याख्यान<br/>१०६७<br/>मूत्रादि के क्षय होने के लक्षण<br/>कालसम्प्राप्ति का व्याख्यान<br/>१०६७<br/>क्षीण हुये दोष, धातु तथा मलों को बढ़ाने<br/>वातादि दोषों में कौन दोष किस ऋतु में प्रकुपित होता है<br/>१०६७<br/>की विधि<br/>वात से क्षीण हुआ मनुष्य<br/>पूर्वरूप के लक्षण<br/>१०६८<br/>मांस से क्षीण हुआ मनुष्य<br/>१०६८<br/>लक्षण के लक्षण<br/>भेद से क्षीण हुआ मनुष्य<br/>१०६९<br/>बल का क्षय होने में कारण<br/>उपशय के लक्षण<br/>१०६९<br/>बलक्षय के लक्षण<br/>वायु के उपशय<br/>बलवृद्धि के कारण<br/>पित्त के उपशय<br/>बलवान् तथा निर्बल के प्रधान लक्षण<br/>कफ के उपशय<br/>परिशिष्ट-१<br/>रोगों के निदान का विवेचन<br/>अस्थियों के विषय में संक्षिप्त विवरण<br/>वायु के प्रकुपित होने के कारण<br/>मांस धातु<br/>पित्त के प्रकुपित होने के कार<br/>नारी-जननेन्द्रियों का संक्षिप्त विवरण<br/>विदाही के लक्षण<br/>पुरुष-जननेन्द्रियों का संक्षिप्त विवरण<br/>कफ के प्रकुपित होने के कारण<br/>आर्तव-गर्भाधान तथा बन्ध्यात्व का संक्षिप्त<br/>रोग के कारण स्वरूप रोग की विचित्रता बढ़े तथा क्षीण हुए दोष, धातु तथा मल की<br/>विवरण<br/>परिशिष्ट- २<br/>सुश्रुतोक्त चिकित्सा<br/>स्वस्थ मनुष्य के लक्षण<br/>अकारादि-क्रमानुसार निघण्टुभाग-स्थित द्रव्यों के व्यवहारोपयोगी अङ्गि तथा उनकी मात्राएँ
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA)
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    Dewey Decimal Classification   Not For Loan MAMCRC 233/23-24 12/10/2023 MAMCRC LIBRARY MAMCRC LIBRARY 01/11/2023 Chaukhambha Prakashans REF 1275.00 Vol. II   615.538 MIS A3385 01/11/2023 01/11/2023 BOOKS Reference Books
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