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Bhavaprakasa

By: Material type: TextTextLanguage: HINDI Publication details: Varanasi Chaukhambha Sanskrit Bhawan 2022Description: 1111pISBN:
  • 9788186937439
DDC classification:
  • 615.538 MIS
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रजस्वला स्त्रियों के नियम
आयुर्वेद की निरुक्ति
१ स्नानोत्तर रजस्वला स्त्री का कर्तव्य
रजस्वला के नियम पालन नहीं करने पर दोष
१ रजस्वला के साथ सम्भोग निषेध
आयुर्वेद का उत्पत्ति क्रम
२ स्त्री योनि की नाड़ियाँ और उसकी विशेषता
२. सृष्टिप्रकरणम्
ग्रन्थोपक्रम
सम-विषम रात्रियों में स्त्री संभोग करने का फल
प्रकृति के स्वरूपविशेष
१० पुरुष के लिए स्त्री सम्भोग का विधान
प्रकृति-पुरुष के समान धर्म
स्त्री सम्भोग में अयोग्य पुरुष
प्रकृति-पुरूष के विभिन्न धर्म
स्त्री के लिये पुरुष सम्भोग का विधान
प्रकृति के नाम तथा गुण
सम्भोग के अयोग्य स्त्री
सत्त्वगुण से युक्त मन के लक्षण
रजस्वला के साथ सम्भोग निषेध
रजोगुण से युक्त मन के लक्षण
१२ गर्भस्थिति का क्रम
१३ गर्भाशय के स्वरूप १३
तमोगुण से युक्त मन
महत्तत्त्व की उत्पत्ति
गर्भ में जीव के प्रवेश करने का प्रकार
अहङ्कार की उत्पत्ति और भेद
गर्भाशय का द्वार बन्द होने का समय
त्रिविध अहङ्कार के कार्य
यमज सन्तान उत्पन्न होने का कारण
बुद्धि और कर्मेन्द्रिय से मन की अभिन्नता
पुत्र, पुत्री और नपुंसक सन्तान होने के कारण
बुद्धीन्द्रियों के विषय
सद्यः गर्भवती हुई स्त्री के लक्षण
कर्मेन्द्रिय और मन के विषय
गर्भवती स्त्रियों के लक्षण
पंचतन्मात्रों की उत्पत्ति के विषय
पुत्र गर्भवती स्त्रियों के लक्षण
पंचमहाभूतों की उत्पत्ति
कन्या गर्भवती स्त्रियों के लक्षण
आकाश के गुण
नपुंसक गर्भ के लक्षण
वायु, अग्नि, जल तथा पृथ्वी के गुण
नपुंसकों के भेद तथा लक्षण
आठ प्रकृतियों में पहिली प्रकृति
अनस्थि सन्तानोत्पत्ति के लक्षण
सप्तं प्रकृतियाँ
सन्तानों में चेष्टादिभेद के कारण
सोलह विकार
१८ गर्भ के लक्षण
जीवात्मा के निवासस्थान
१८ हृदय के स्वरूप
जीवात्मा और शरीरी
शरीरस्थ दोषों का स्वरूप
जीवविषयक गुण
दोष शब्द की निरुक्ति
३. गर्भप्रकरणम्
त्रिदोषों में वायु के स्वरूप
रजस्वला स्त्री के स्वरूप
उदानादि वायुओं के नाम, स्थान तथा कर्म
गर्भग्रहण के योग्य समय
पित्त के स्वरूप
भावप्रकाशस्य पूर्वखण्डे
१२
पृष्ठ
पित्तों के नाम
३७
शुक्र के स्वरूप
पाचकादि पित्तों के स्थान तथा कर्म
३७
जीव का आश्रय
श्लेष्मा (कफ) का स्वरूप
४१
गर्भ उत्पन्न करने वाले शुक्र के लक्षण
क्लेदनादि कफों के स्थान
४९
शुक्र के स्थान
अवलम्बन, रसक, स्नेहन तथा श्लेषण नामक
शुक्र के निकलने के मार्ग
४२
शुक्र के क्षरण होने में कारण
कफों के कर्म
४३
आर्तव के स्वरूप
धातु शब्द की निरुक्ति
धातुओं के कार्य
४३
गर्भग्रहण के योग्य आर्त्तव
४३
धातुगुण-वर्णन
रस धातु की निरुक्ति
रस के स्वरूप
४३
धातुओं के मल
रस के स्थान और कर्म
४४
उपधातु का लक्षण
आशय के लक्षण
रक्त के स्वरूप
४४
वाग्भटोक्त आशयों का क्रम
रक्त के स्थान
४५
कलाओं के स्वरूप
मांस के स्वरूप
४५
मर्मस्थल के लक्षण
मांसपेशियों की संख्यायें
४५
मर्मों की संख्या तथा स्थान
मांसपेशियों के कर्म
४७
मर्मों के कार्य
मेद का स्वरूप और स्थान
४७
सद्यः प्राणहरण करने वाले मर्मस्थल
हड्डियों के स्वरूप और संख्याएँ
४८
शृङ्गाटक मर्म
हड्डियों के प्रयोजन
४९
अधिपति मर्म
मज्जा के स्वरूप और स्थान
५०
कण्ठशिरा या शिरामातृका मर्म
शुक्र की उत्पत्ति
५०
गुदमर्म
आमाशय का स्थान
५१
हृदय मर्म
कफ का स्वरूप
बस्ति मर्म
ग्रहणी का लक्षण
नाभि मर्म
पंचमहाभूतों में चरकोक्त पञ्चाग्नि का निर्देश
कालान्तर में प्राणहरण करने वाले मर्म
आहार से रसादि का निर्माण
वक्षो मर्म
मूत्र और पुरीषोत्सर्ग में कारण
स्तनरोहित मर्म
आहार रस का कार्य
अपलाप मर्म
ओज के लक्षण
अपस्तम्ब मर्म
स्त्रियों का वीर्य विकृत गर्भ में कारण
सीमन्त मर्म
शरीर में आहार-रस का सञ्चार
तल मर्म
वाजीकरण ओषधियों का प्रयोजन
क्षिप्र मर्म
शुक्रवर्धक पदार्थ
इन्द्रबस्ति मर्म
बालकों के अदृश्य शुक्र में कारण
बृहती मर्म
वृद्धावस्था में शुक्रवृद्धि का ह्रास
पार्श्वसन्धि मर्म
भावप्रकाशस्य पूर्वखण्डे
१२
पृष्ठ
पित्तों के नाम
३७
शुक्र के स्वरूप
पाचकादि पित्तों के स्थान तथा कर्म
३७
जीव का आश्रय
श्लेष्मा (कफ) का स्वरूप
४१
गर्भ उत्पन्न करने वाले शुक्र के लक्षण
क्लेदनादि कफों के स्थान
४९
शुक्र के स्थान
अवलम्बन, रसक, स्नेहन तथा श्लेषण नामक
शुक्र के निकलने के मार्ग
४२
शुक्र के क्षरण होने में कारण
कफों के कर्म
४३
आर्तव के स्वरूप
धातु शब्द की निरुक्ति
धातुओं के कार्य
४३
गर्भग्रहण के योग्य आर्त्तव
४३
धातुगुण-वर्णन
रस धातु की निरुक्ति
रस के स्वरूप
४३
धातुओं के मल
रस के स्थान और कर्म
४४
उपधातु का लक्षण
आशय के लक्षण
रक्त के स्वरूप
४४
वाग्भटोक्त आशयों का क्रम
रक्त के स्थान
४५
कलाओं के स्वरूप
मांस के स्वरूप
४५
मर्मस्थल के लक्षण
मांसपेशियों की संख्यायें
४५
मर्मों की संख्या तथा स्थान
मांसपेशियों के कर्म
४७
मर्मों के कार्य
मेद का स्वरूप और स्थान
४७
सद्यः प्राणहरण करने वाले मर्मस्थल
हड्डियों के स्वरूप और संख्याएँ
४८
शृङ्गाटक मर्म
हड्डियों के प्रयोजन
४९
अधिपति मर्म
मज्जा के स्वरूप और स्थान
५०
कण्ठशिरा या शिरामातृका मर्म
शुक्र की उत्पत्ति
५०
गुदमर्म
आमाशय का स्थान
५१
हृदय मर्म
कफ का स्वरूप
५१
बस्ति मर्म
ग्रहणी का लक्षण
५२
नाभि मर्म
पंचमहाभूतों में चरकोक्त पञ्चाग्नि का निर्देश
५३
कालान्तर में प्राणहरण करने वाले मर्म
आहार से रसादि का निर्माण
५३
वक्षो मर्म
मूत्र और पुरीषोत्सर्ग में कारण
५४
स्तनरोहित मर्म
आहार रस का कार्य
५४
अपलाप मर्म
ओज के लक्षण
अपस्तम्ब मर्म
स्त्रियों का वीर्य विकृत गर्भ में कारण
सीमन्त मर्म
शरीर में आहार-रस का सञ्चार
तल मर्म
वाजीकरण ओषधियों का प्रयोजन
क्षिप्र मर्म
शुक्रवर्धक पदार्थ
इन्द्रबस्ति मर्म
बालकों के अदृश्य शुक्र में कारण
बृहती मर्म
वृद्धावस्था में शुक्रवृद्धि का ह्रास
पार्श्वसन्धि मर्म
yer
९७
अधोवायु रोकने से हानि
९८
मूत्र के वेग की रोकने से हानि
इतनी से दूध उतरने का समय
दातौन करने की विधि
९८
दूध निकलने के कारण
जीभ सफा करने की विधि
९८
दूध के कम निकलने के कारण
९८. कुल्ला करने की विधि
दूध के बढ़ने के कारण
९८
नस्य लेने की विधि
कलम नामक धान्यविशेष का लक्षण
९९
अंजन लगाने की विधि
दूध के दूषित होने के कारण
९९
अंजन लगाने के अयोग्य व्यक्ति
दूषित दूध के लक्षण
९९
नाखून कटाने और बाल बनवाने की विधि
दूषित दुग्ध की शोधन विधि
९९
नाक के बाल उखाड़ने में दोष
शुद्ध दूध के लक्षण
धात्री के लक्षण
१००
बालों में कंधी लगाने के गुण
दूध पिलाने के अयोग्य धात्री के लक्षण
१००
दर्पण में मुख देखने के गुण
बालकों को दूध पिलाने की विधि
१००
व्यायाम के गुण
अविधि स्तनपान कराने का दोष
१०१
बलार्थ का लक्षण
स्तन्य के अभाव में गो अथवा बकरी के दुग्ध
१०१
व्यायाम करने के अयोग्य व्यक्ति
अन्नप्राशन का समय
१०१
अत्यन्त व्यायाम करने से दोष
बालक की परिचर्या
१०१
तेल लगाने के गुण
बालकों के लिये हितकर
१०२
सर्वाङ्ग में तेल लगाने के गुण
बालकों के कवलादि करने का समय
१०२
शिर में तेल लगाने के गुण
बाल्यादि अवस्थाओं की सीमा
१०२
कानों में तेल डालने के गुण
प्रकृतियों के लक्षण
१०४
कान में तेल डालने का समय
वात-पित्त-कफ प्रकृति के लक्षण
१०४
पैरों में तेल लगाने के गुण
द्वन्द्वज तथा त्रिदोषज प्रकृति के लक्षण
१०५
शरीर में तेल लगाकर स्नान के गुण
वाग्भटोक्त वात-पित्त-कफ प्रकृति के लक्षण
१०५
अभ्यङ्ग के अयोग्य जन
५. दिनचर्यादिप्रकरणम्
उबटन लगाने के गुण
देशों के भेद
स्नान की विधि
१०९
अनूपदेश के लक्षण
१०९
आँवला मिश्रित जल के गुण
जांगल देश के लक्षण
साधारण देश के लक्षण
१०९
स्नान करने के अयोग्य जन
दिनादिचर्या
१०९
स्नानोत्तर देह पोंछने के गुण
स्वस्थ पुरुष का लक्षण
वस्त्रधारण करने का विधान
दिनचर्या-विधि
ग्रीष्म ऋतु में वस्त्र धारण विधान
पुरीषोत्सर्ग के वेग को रोकने से हानि
वर्षाऋतु में वस्त्रधारण विधान
नवीन वस्त्रधारण करने के गुण
मलिन वस्त्रधारण करने के दोष
कारण के चोग्य तामा के लक्षण
आंगण के योग्य लामा के लक्षण
९७७
९७७
शुद्ध किये हुए शिलाजीत के गुण
रस की स्वेदन विचि
९७८
रस की मर्दन विधि
लामा के शोचने की विতিि तामे के 2 दोष
९७८
रस की मूर्छन विधि
९७८
मूर्द्धन विधि
लाये के मारने की विधि
९७९
रस की ऊर्ध्वपातन विधि
भारे हुए लामे के गुण
९७९
रस की अधःपात विधि
रांगा का स्वरूप
९७९
पारे के दोषों को दूर करने की शोषन विधि
अशुद्ध वह के दोष
९७९
पारे के मारने की विधि
रांगा तथा सीसा के शोधन की विधि
९८०
रसकर्पूर बनाने की विधि
रांगा के मारण की विधि
९८०
सिन्दूररस बनाने की विधि
मारे हुए रांगा के गुण
९८०
मारित-मूच्छित पारे के गुण
सीसे का स्वरूप
९८०
हिङ्गुल की शोधन विधि
सीसा के शोधन की विधि
सीसा के मारने की विधि
९८१
शुद्ध हिङ्गुल के गुण
९८१
सिंगरफ से पारा निकालने की विधि
मारे हुए सौसा के गुण
अशुद्ध लोहा के दोष
९८१
अशुद्ध गन्धक के दोष
लोहा के दोष की शान्ति के लिये शोधनविधि
९८१
गन्धक शोधने की विधि
लोहा के मारणविधि
९८१
शुद्ध गन्धक के गुण
मारे हुए लोह के गुण
९८२
अशुद्ध अभ्रक के दोष
लौहभस्म खाने की मात्रा
९८३
अभ्रक शोधन-मारण विधि
लौहभस्म खाने के समय त्याज्य द्रव्य
९८३
धान्याभ्रक बनाने की विधि
घातुओं के मारने की साधारण विधि
९८३
मारे हुये अभ्रक के गुण
अशुद्ध स्वर्णमाक्षिक के दोष
९८३
अशुद्ध हरताल के दोष
सोनामाखी शोधने की विधि
९८३
हरताल शोधने की विधि
सोनामाखी मारने की विधि
९८३
हरताल मारने की विधि
रूपामाखी शोधने की विधि
९८४
शुद्धाशुद्ध हरताल के गुण
रूपामाखी मारने की विधि
९८४
सोनामाखी तथा रूपामाखी के विशेष गुण
अशुद्ध मैनसिल का स्वरूप
९८४
मैनसिल शोधने की विधि
अशुद्ध तृतिया के शोधन की विधि
९८४
शुद्ध तूतिया के गुण
शुद्ध की हुई मैनसिल के गुण
कर्कासा तथा पीतल के शोधन की विधि
खपरिया के शोधन की विधि
कांसा तथा पीतल के मारने की विधि
शुद्ध खपरिया के गुण
सिन्दूर के शोधने की विधि
मारे हुए कांसा तथा पीतल के गुण
उपरसों के शोधन की साधारण विधि
अशुद्ध हीरे के दोष
सिन्दूर के गुण
हीरा शोधने की विधि
शिलाजीत के लक्षण
हीरा मारने की विधि
शिलाजीत के शोधन की विधि
मारे हुए हीरे के गुण
शेष रत्नों की शोधन-मारण विधि
वत्सनाभ विष के लक्षण
विष शोधने की विधि
द्वितीयो भाग विषय-सूची
विष के गुण
१०००
ऋतुभेद से विरेचन इल्यों में भेद
अभयादिमोदक
उपविषों का निरूपण
धी तथा तैल के विषय में विशेषता द्रव्यों के पूर्ण गुणयुक्त याने की अवधि
विरेचन लेने के बाद कर्तव्य
१००१
१००१
स्नेह के भेद तथा विशेष नाम
स्नेहपानविधिप्रकरणम्
अनुवासन तथा निरूह के भेद
न्यूनाधिक विरेचन का लक्षण और औषय
१००१
स्नेहवस्ति की विधि
सभी प्रकार के विकारों को दूर करने वाली
श्री तथा तेल पिलाने योग्य व्यक्ति
१००२
अनुवासन वस्ति
मज्जा तथा धी पिलाने योग्य व्यक्ति
शीतादि समयों तथा वातादि दोषों के भेद
नस्य आदि लेने में तेल तथा घृत का प्रयोग
घी आदि के पीने में अनुपान
१००४
निरूहबस्ति की विधि
१००४
उत्क्लेशन बस्ति
१००५
दोषहर बस्ति
१००५
शमन बस्ति
स्नेहन करने वाले अन्य भी पदार्थ स्नेह से द्वेष रखने वालों के लिये स्नेह-पान-विधि
१००५
लेखन बस्ति
२००५
बृंहणवस्ति
स्नेह के न पचने पर कर्तव्य
१००५
पिच्छिलबस्ति
स्नेह न पचने की आशङ्का में कर्तव्य
१००५
निरूह बस्ति की मात्रा
स्नेह पीने से उत्पन्न प्यास की शान्ति
१००६
मधुतैलकबस्ति
१००६
यापनबस्ति
स्नेह पीने के अयोग्य लोग
१००६
युक्तरथबस्ति
स्नेहपान के योग्य लोग
१००६
उत्तरवस्ति
स्नेहपान द्वारा भली भाँति स्निग्ध हुए लोगों
फलवर्ति की विधि
के लक्षण
१००६
नस्यग्रहण की विधि
अधिक मात्रा में स्निग्ध हुए लोंगो के लक्षण
१००७
रेचन नस्य की मात्रा
रूक्ष तथा अत्यन्त स्निग्ध हुए लोगों के
रेचन नस्य की विधि
लिये कर्त्तव्य
१००७
नस्य औषध का प्रमाण
स्नेह सेवन करने के गुण
१००७
स्नेह सेवन करने के समय त्याज्य कर्म
१००७
पञ्चकर्मविधिप्रकरणम्
पञ्चकर्म के नाम
रेचन नस्य के भेद
रेचन नस्य के भेदों के लक्षण
रेचन तथा स्नेहन नस्य के उपयोग
रेचन औषधियों के गुण
प्रधमन नस्य की औषधिय
वमन कर्म में प्रथम वमन के योग्य समय और
स्नेहननस्य की कल्पना
रोगियों का निर्देश
बृंहण नस्य की विधि
वमन कराने के अयोग्य लोगों का निर्देश
प्रतिमर्श की मात्रा
वमन कराने की विधि
प्रतिमर्श का समय
विरेचन के योग्य समय तथा व्यक्ति का निर्देश
उनके योग्य मात्रा एवं द्रव्यों का वर्णन
मृदु, मध्यम तथा क्रूर कोष्ठ वाले मनुष्यों तथा
नस्य की सामान्य विधि
प्रतिमर्श के विषय तथा गुण
प्रतिमर्श के विषय तथा गुण
जस्व देने के पक्षात् निषिद्ध कर्म
देता
जनम रीति से रतलाम केला
व के हीनयोग तथा अतियोग की विकित्सा
१०३४
रक्तसाव कराने के बाद त्याज्य नेत्र की स्वच्छ करने की विधि
नेत्र की सेक करने की विधि नेत्र के आश्ब्योतन विभि
धूमपान की विधि
१०३४ १०३७
धूमपान में ओषधि का कल्क
गृह में देने योग्य धूम
१०३७
पिण्डी की विधि
धूमपान में त्याग करने योग्य कार्य
१०३७
विडालक विधि
१०३७
तर्पण विधि
गण्डूष की विधि
गण्डूष के भेद
१०३८
तर्पण के योग्य नेत्रों के लक्षण
गण्डूष तथा कवल की औषधियों का मान
१०३८
रोगभेद से तर्पण धारण करने के काम
गण्डूष तथा कवल धारण करने में अवस्था
यथार्थ तर्पण के चिह्न
की मर्यादा
१०३८
अतितर्पित नेत्र के लक्षण
गण्डूष धारण के गुण
१०३८
पुटपाक की विधि और भेद
कवलधारण की विधि
१०३८
पुटपाकों के धारण काल की अवधि
प्रतिसारण की विधि
१०३९
तिक्तक द्रव्य
स्वेद की विधि
१०३९
तर्पण तथा पुटपाक धारण किये हुये
स्वेद के अयोग्य व्यक्ति
१०४०
लिये त्याज्य कर्म
तापस्वेद की विधि
१०४१
अञ्जन को विधि और भेद
ऊष्मस्वेद की विधि
१०४१
लेखनकारिणी वर्त्ति
उपनाहस्वेद की विधि
१०४२
रोपणकारिणी वर्त्ति
द्रवस्वेद की विधि
१०४३
स्नेहनकारिणी वर्त्ति
सिर में तेल डालने की विधि
१०४४
लेखनकारिणी रसक्रिया
कान में तेल डालने की विधि
१०४५
रोपणकारिणी रसक्रिया
लेप की विधि
१०४५
स्नेहनकारिणी रसक्रिया
दोषघ्न लेप
१०४६
लेखन चूर्ण
विषहा लेप
१०४६
रोपण चूर्ण
मुखकान्तिदायक लेप
१०४६
स्नेहन चूर्ण
लेप के दो भेद
१०४७
प्रत्यञ्जन सेवन विधि
शोणितस्राव की विधि
वातादि से दूषित रक्तों के लक्षण
१०४८
नयनामृत चूर्ण
१०४८
शुद्ध रक्त के लक्षण
दृष्टि को स्वच्छ करने वाली शलाका
१०४८
रक्तस्त्राव के विषय
औषध खाने के पांच समय
रक्तस्त्राव के साधन
सिरामोक्षण के अयोग्य जन
अधिक रक्त निकलने के दोष
ओषधि के पाकापाक का लक्षण अन्न के साथ ओषधि सेवन के गुण
निरन्न कोष्ठ में ओषधि सेवन के गुण
रोगिपरीक्षाप्रकरणम
रक्त के अधिक निकल जाने पर वायु के
कुपित होने की चिकित्सा
वाग्भटोक्त रोगी की परीक्षा
नेत्र की परीक्षा
जिह्ना की परीक्षा
द्वितीयो भागः विषय-सूची
मूत्र की परीक्षा
स्पर्शद्वारा नाडी की परीक्षा
१०६४
मेदोवृद्धि के लक्षण
१०६४
अत्युन्त बढ़े हुए दोषादि के कारण तथा लक्षण
रोग जानने के कारण
१०६४
दोष, धातु तथा मलों के कम होने के कारण
हेतु का लक्षण
१०६५
क्षीण हुए दोषादि के लक्षण
सम्प्राप्ति के लक्षण तथा भेद
१०६५
ओज के क्षय होने का कारण
विकल्पसम्प्राप्ति
१०६६
ओज के क्षय होने के लक्षण
प्राधान्यसम्प्राप्ति
१०६७
मल के क्षय होने के लक्षण
बलसम्प्राप्ति का व्याख्यान
१०६७
मूत्रादि के क्षय होने के लक्षण
कालसम्प्राप्ति का व्याख्यान
१०६७
क्षीण हुये दोष, धातु तथा मलों को बढ़ाने
वातादि दोषों में कौन दोष किस ऋतु में प्रकुपित होता है
१०६७
की विधि
वात से क्षीण हुआ मनुष्य
पूर्वरूप के लक्षण
१०६८
मांस से क्षीण हुआ मनुष्य
१०६८
लक्षण के लक्षण
भेद से क्षीण हुआ मनुष्य
१०६९
बल का क्षय होने में कारण
उपशय के लक्षण
१०६९
बलक्षय के लक्षण
वायु के उपशय
बलवृद्धि के कारण
पित्त के उपशय
बलवान् तथा निर्बल के प्रधान लक्षण
कफ के उपशय
परिशिष्ट-१
रोगों के निदान का विवेचन
अस्थियों के विषय में संक्षिप्त विवरण
वायु के प्रकुपित होने के कारण
मांस धातु
पित्त के प्रकुपित होने के कार
नारी-जननेन्द्रियों का संक्षिप्त विवरण
विदाही के लक्षण
पुरुष-जननेन्द्रियों का संक्षिप्त विवरण
कफ के प्रकुपित होने के कारण
आर्तव-गर्भाधान तथा बन्ध्यात्व का संक्षिप्त
रोग के कारण स्वरूप रोग की विचित्रता बढ़े तथा क्षीण हुए दोष, धातु तथा मल की
विवरण
परिशिष्ट- २
सुश्रुतोक्त चिकित्सा
स्वस्थ मनुष्य के लक्षण
अकारादि-क्रमानुसार निघण्टुभाग-स्थित द्रव्यों के व्यवहारोपयोगी अङ्गि तथा उनकी मात्राएँ

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