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Susruta Samhita : Shaarira Sthan Vivechan

By: Material type: TextTextLanguage: HINDI Publication details: Varanasi Chaukhambha Orientalia 2014Description: 242pISBN:
  • 9788176373128
DDC classification:
  • 615.538 SHA
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विषयानुक्रमणिका
अथवा शरीर निर्माण के आकार का स्वरूप
दशाया इन्द्रियों का निर्माण
एकादश इन्द्रियी
शरीर अथवा पुरुष का संगठन तथा इसके चौबीस
इन्द्रियों के कार्य
प्रकृति तथा विकृति का संगठन
अध्यक्त, महान, अहंकार आदि सभी तत्त्वों के नियन्त्रक पुरुष का स्वरूप एवं इसका क्रियात्मक स्वरूप
W
प्रकृति तथा पुरुष में समानतायें एवं विषमतायें पुरुष के त्रिगुण स्वरूप का मत
शरीर अथवा सृष्टि के निर्माण में मौलिक कारण
भूतग्राम का स्वरूप
पंचमहाभूतों की चिकित्सा में महत्ता
इन्द्रियों की पाँचभौतिकता
महामूर्ती के संगठन में एक दूसरे का स्वा
८ दोषों तथा मलों से दूषित शुकं अथवा शुक्र के दोष अथवा शुक्र की विकृतियों
(अव्यक्त, महान, अहंकार तथा प
आठ प्रकृतियाँ)
सोलह विकार (एकादश इन्द्रियी रा
२१ - सोलह विकार) तया क्षेत्रा/आला/पुरुष का २९
अध्याय- द्वितीय
दोषों तथा मलों से विकृत शुक्र के लक्षण
१० दोषों तथा मलों से दूषित आर्तव अथवा आर्तव के
१५ १४ पूयप्रख्य अर्थात् पूय जैसे तथा मात्रा में कम शुक्र
ग्रन्थिभूत अर्थात् गाँठदार शुक्र की चिकित्सा
इन्द्रियों द्वारा अपने विषयों को ग्रहण करने की प्रक्रिया १५ चिकित्सा किसकी की जाती है? पुरुष की
विट्प्रभ शुक्र की चिकित्सा
२२
२३
१२ १२ दूषित शुक्र की चिकित्सा
दोष अथवा आर्तव की विकृतियों
२४
२४
१४ कुणप गन्धि शुक्र की चिकित्सा
२४
२४
की चिकित्सा
२५
२५
शुक्र दोषों की चिकित्सा का सामान्य सिद्धान्त १५ शुद्ध शुक्र के लक्षण
२५
कर्मपुरुष अर्थात् जीवित शरीर के गुण सात्त्विक पुरुष के अथवा सत्त्व गुण के लक्षण
२५
१७ शुक्र निर्माण
२६
राजसिक पुरुष के अथवा राजस गुण के लक्षण तामसिक पुरुष के अथवा तमस गुण के लक्षण शरीर में पंचमहाभूतों के लक्षण
१८. शुक्र के कर्म
१८ शुक्रोत्पादक अंग
२६
२६
१६ शुद्ध शुक्र का स्वरूप
२६
परिभाषा तथा कर्मपुरुष
शरीर में आकाश महाभूत से बनने वाले या उत्पन्न भाव
शरीर में वायु महाभूत से बनने वाले या उत्पन्न भाव
शरीर में अग्नि महाभूत से बनने वाले या उत्पन्न भाव शरीर में जल महाभूत से बनने वाले या उत्पन्न भाव
शरीर में पृथ्वी महाभूत से बनने वाले या उत्पन्न भाव पंचमहाभूतों का त्रिगुणात्मक संगठन
१६ शुक्राणु जनन या शुक्र निर्माण (Spermatogenesis) २७ १६ शुक्राणु निर्माण (Spermiogenesis)
शुक्राणुओं की परिपक्वता (Maturation of
Spermatozoa)
२० २० आर्तव अथवा स्त्री बीज की व्याधियों अथवा उसमें
शुक्राणु (Spermatozoa)
२० व्याप्त दोषों की चिकित्सा
(Ovulation)
प्रोजेस्ट्रोन के प्रभाव
द्वितीयक विश्वापुजन कोशिकत की संरचना (Structure of Secondary Oocyte)
अन्दर के कारण
असुग्टर के लक्षण
असम्दर में रक्त के अधिक मात्रा में निकल जाने से
लक्षण
असुन्दर की चिकित्सा
नष्ट आर्तव अथवा अनार्तव के कारण
नष्ट आर्तव अथवा अनार्तव की चिकित्सा
श्रीणार्तव अथवा अल्पार्तव
शुक तथा आर्तव के दोषों के दूर होने पर
प्रजोत्पादन सामर्थ्य
रजस्वला स्त्री के लिये सवृत्त
ऋतुमती की चर्चा
(2)
पुरातन का सिद्धान्त
१५ माता-पिता के द्वारा उत्पन्न संतान
३५ संक्रमित स्त्री जनता का संतान पर प्रगान
ॐ असम्यक मैवतु विना उपक्रम का संयम पर 36 प्रभाव
मानसिक अवस्थाओं अपना चिन्तन का संतान पर प्रभाव
३६ मैथुन की अवस्थाओं का संतान पर प्रनाक
३६ सशुक्र तथा अशुक्र चण्ड ३७ गर्भ की आठ विकृतियाँ
चरकानुसार ३७ माता-पिता के आहार, आचरणादि का गर्न अथवा
भावी सन्तान पर प्रभाव ३७
अनस्थिगर्न
३७ आभासी अथवा मिथ्या गर्भ
३७ विकृताकृति गर्न के कारण ३८
६१
६२
६७
६२
ऋतुकाल के प्रथम दिन से ही स्त्री के निषेध भाव
३८ माता-पिता के आचरणों का संतान पर प्रमाव दौहृद की अवधारणा करने से गर्म पर पड़ने वाले प्रभाव ६३
ऋतुकाल के पश्चात् ग्राम्यधर्म निर्वहन
स्त्री के मानसिक चिन्तनादि का परिणाम
सन्तानोत्पादन हेतु चिन्तन
ऋतुकाल में मैथुन के परिणाम
गर्भाधान के पश्चात् सम्पादनीय उपक्रम
गर्भाधान के लिये आवश्यक तत्त्व
गर्भाधान (Fertilization)
Vital factors for Fertilization/conception
(गर्भाधान)
पुंबीज विवेचना शुक्राणु (Semen)
शुक्र का संगठन
स्त्री बीज विवेचना
स्त्रीबीज अथवा अण्डाणु (The Ovum)
क्षेत्र
The main external structures of the
female reproductive system
ऋतु क्षेत्र, अम्बु तथा बीजों के गुणवत्ता पूर्ण होने के
प्रभाव
गर्म
के विभिन्न वर्षों (Complexions) का कारण
३८ गर्भस्थ का उत्सर्जन का सिद्धान्त
३६ गर्भ रोता है अथवा नहीं
३६ गर्भ के श्वासादि का सिद्धान्त ३९
६३
६३
६3
६३
गर्भ की शारीरिक बनावट का आनुवांशिक सिद्धान्त ६४ ४० पूर्व जन्म की स्मृति का सिद्धान्त
४० ४१ पूर्वजन्म के कर्म फल
अध्याय- तृतीय
४१ शुक्र तथा आर्तव की पाँचभौतिकता
४२ शुक्र तथा आर्तव का मिश्रित होकर गर्भ बनना तथा
४२ गर्भ के पर्याय
४४ स्त्री तथा पुरुष बीजों के आधार पर गर्भ लिंग
४४ निर्धारण का सिद्धान्त
४६ ऋतुकाल की समयावधि
४६ ऋतुमती स्त्री अथवा ऋतुकाल में स्त्री में प्रकट
होने वाले लक्षण
ऋतुकाल के पश्चात् योनि का स्वरूप
५६ मासिक धर्म की प्रक्रिया तथा आर्तव की प्रकृति अथव
उसका स्वरूप
م
आर्तव काल की चयमर्यादा
आर्तव काल (Menstruating age) आर्तव प्रवृत्ति (Process of menstruation)
आर्तव बाहक अंग
आर्तव उत्पत्ति प्रक्रिया
स्त्री पुनरुत्पादक चक्र (Female Reproductive Cycle)
डिम्बग्रन्धि चक्र (Ovarian cycle)
स्त्री पुनरूत्पादक चक्र में हारमोनीय नियन्त्रण स्त्री पुनरूत्पादक चक्र की अवस्थायें (PHASES OF FEMALE REPRODUCTIVE CYCLE)
अन्त पुष्प
डिम्बजनन (Oogenesis)
डिम्बक्षरण (Ovulation)
प्रोजेस्ट्रोन के प्रभाव
द्वितीयक डिम्बाणुजन कोशिका की संरचना (Structure of Secondary Oocyte)
काल के अनुसार पुल्लिंगी अथवा स्त्रीलिंगी सन्तान
का हेतु सद्योगर्भा अर्थात् गर्भाधान होने के तत्काल पश्चात्
स्त्री में पाये जाने वाले लक्षण
गर्भवती स्त्री के लक्षण
गर्भावस्था में निषिद्ध आहार-विहार
दोषों के अभिघात के गर्भिणी के शरीर के पाड़ित
होने के परिणाम
गर्भ का विकास मासानुमासिक वृद्धि के अनुसार दौहृद अवमानना के परिणाम
गर्भिणी के विभिन्न मनोरथों (दौहृदों) के परिणाम गर्भ के पूर्वजन्म का दौहृद पर प्रभाव
गर्भ वृद्धि अन्य संहिताओं के अनुसार (विवेचना)
गर्भ वृद्धि आधुनिक दृष्टिकोण से
गर्भ पोषण
गर्भ में प्रथम उत्पन्न होने वाले अंग विषयक सम्भाषा
गर्भ के मातृज, पितृज आदि भाव
गर्भ के पितृज शरीर लक्षण या पितृज भाव
गर्भ के मातृज भाव
गर्भ के रसज भाव
गर्भ के आत्मज भाव
२ सु.शा.
(۹)
६० सत्त प्रकृति राजप्रकृति
६८ तामस प्रकृति
शास्यज भाव
गर्भ के सात्यज भाव
६. गर्मिणी के शारीरिक लक्षणों के आधार पर भागी सन्तान का अनुमान
६६ कर्म एवं आचरण के अनुसार संतान प्राप्ति गर्भ के अंग प्रत्यंगों के निर्माण का सिद्धान्त
७० अध्याय- चतुर्थ
८७४
प्राण (11)
७४
सुश्रुतानुसार प्राण बारह (12)
103
७६ आचार्य चरक के अनुसार प्राणायतन दस (10)
७८ अष्टांगहृदयानुसार प्राणायतन दस (10)
त्वचा का निर्माण तथा स्वरूप ७८ आचार्य चरक के अनुसार छः त्वचायें या त्वचा के
7012
१०५
छः स्तर
७६ त्वचा का आधुनिक स्वरूप
कला का स्वरूप
७६ गर्भ स्थापना के पश्चात् आर्तव का रूक जाना
७६ गर्भ में अंग निर्माण
१०७
१०८
१०८
१०८
१०६
११०
११५
११७
११७
८० यकृत, प्लीहा, फुफ्फुस तथा उण्डुक का निर्माण ११७
हृदय की संरचना
८० निद्रा वर्णन
८० नींद आने का सिद्धान्त
८१ सपने आने का कारण
११८
११८
११६
११६
८२ नींद का कारण तथा सोते समय आत्मा की स्थिति ११
८३ नींद लेने का उचित काल
८४ ६० निद्रा नाश को दूर करने के उपाय
उचित निद्रा
६७ निद्रा नाश की अवस्था में निर्दिष्ट आहार
६७ तन्द्रा के लक्षण (Lassitude, Exhaustion,
Laziness)
६८ जुम्मा के लक्षण (Yawning)
१०
१०
६६ क्लम के लक्षण (Fatigue, Exhaustion, Languor) ६६ आलस्य के लक्षण (Idleness, Sloth)
६६ उत्क्लेश के लक्षण (Nausea, Sickness)
(١٠)
(Largot, Depresion of the 1 mind, Debility, Lassitade)
गौर के (Heaviness in the chen/ body, Immensity)
(Fainting, Mental stupefiction, Delusions, Hallucination), w (Giddiness, Dizzi- ness, Confusion, Perplexity), तन्द्रा (Lassitude, Exhaustion, Laziness)
(Sleep. Resting phase of body & mind) में दोषों की स्थिति
गर्भ की सम्यक वृद्धि का कारण
शरीर के कुछ भाग जो कभी नहीं बढ़ते
शपौर के कुछ भाग जो हमेशा बढ़ते रहते हैं
शशारीरिक प्रकृति का निर्धारण
बातिक प्रकृति के लक्षण
पैत्तिक प्रकृति के लक्षण
कफज प्रकृति के लक्षण
संसर्गज तथा नहाभूतानुसार देह प्रकृति के लक्षण प्रकृति अपरिवर्तनीय होती है
१२२
१२३ गर्भाधान या निषेचन (FERTILIZATION)
अध्याय-पंचम
शरीर की परिभाषा
शरीर को छ भागों में विजन
शरीर का संगत्व
गर्भ में आत्मा के लक्षण
गर्माधान आधुनिक दृष्टिकोण से
१२३ युग्मकों का परिवहन (Transport of gametes)
१२३ पुग्मकों का सन्निकटन
१२३ युग्मकों का एक दूसरे के सम्पर्क में आना तथा मिलना
१२४ शरीर के प्रत्यंगों का निर्देश
१२४ पन्द्रह कोष्ठांग आचार्य चरक के अनुसार
१२५ अष्टांग हृदय के अनुसार कोष्ठांग
१२६ छप्पन (56) प्रत्यंग आचार्य चरक के अनुसार शरीर के अवयवों की संख्या
१२७ शरीर की अन्य संरचनाओं की संख्या
सात्विक काय अर्थात सत्च गुण वाले व्यक्तियों का वर्णन
१२८
1. ब्रहाकाय के लक्षण
2. माहेन्द्रकाय के लक्षण
3. वारुणकाय के लक्षण
4. कौबेकाय के लक्षण
5. गान्धर्वकाय के लक्षण
6. याम्यकाय के लक्षण
7. ऋषिकाय के लक्षण
शरीर अवयवों की संख्या
आशय वर्णन १२८ १२८
आन्त्रों का परिमाण १२८
१२८ Body)
बहिर्मुख स्रोतस् (External Openings of the
१२८ कण्डरा
१२६
जाल १२६
राजस काय अर्थात् रजस् गुण वाले व्यक्तियों का वर्णन
१२६ कुर्च
1. आतुरसत्त्वकाय के लक्षण
मांस रज्जु
१३० सेवनियाँ
2. सर्पसत्त्वकाय के लक्षण
१३० अस्थि संघात
3. शाकुनसत्त्वकाय के लक्षण
१३० सीमन्त १३०
4. राक्षससत्त्वकाय के लक्षण
अस्थि संख्या १३१
5. पैशाचकाय के लक्षण
अस्थि वर्गीकरण
. प्रेतसत्त्व के लक्षण
१३१
उमस काय अर्थात् तामस् गुण वाले व्यक्तियों का
अस्थियों के कार्य एवं स्वरूप
वर्णन
१३१ अस्थि आधुनिक विवेचन
पाशदकाय के लक्षण
अस्थियों का वर्गीकरण (CLASSIFICAT
१३१ OF BONES)
मत्स्यसत्त्व के लक्षण
(١٩)
(PHYLOGENETIC CLASSIFICATION)
2. विकास के आधार पर क (DEVELOPMENTAL CLASSIFICATION)
3. (MORPHOLOGICAL CLASSIFICATION)
निधनको शरीरका महल
गांत के आधार पर सक्रिय करण सदियों की संख्या तथा विभाजन
रामरक्षण (Preservative Materials)
MA
आत्मा कार
शाखाओं की सक्कियर्थी (068)
१५६ प्रत्यक्ष ज्ञान का महत्व
कोष्ठ या मध्य हारीर की सन्धियर्थी (059)
१५६ अध्याय षष्ठम
चीवा से ऊपर या ऊर्जा जत्रु की सन्धियों (083) संरगना के आधार पर सनिस्यों का वर्गीकरण
सन्धि शब्द से अभिप्राय
सन्धियों के प्रकार
सन्धियों की गतियों के आधार पर वर्गीकरण
शरीर में स्थान तथा आकृति के आधार पर सन्धियौ
का वर्गीकरण
स्नायु वर्णन
स्नायु विभाजन (900)
शाखाओं में स्थित स्नायु (600)
कोष्ठ या मध्य शरीर में स्थित स्नायु (230)
ग्रीवा से ऊपर या ऊर्ध्व जत्रु में स्थित स्नायु (70)
स्थान तथा संरचना के आधार पर स्नायुओं का
वर्गीकरण एवं उनके कार्य
स्नायुओं के कार्य
स्नायुओं का चैकित्सकीय महत्त्व
स्नायु का ज्ञान का महत्त्व
१५६ ममी की संख्या तथा संरचना के अनुसार मर्म वर्गीकरण
१५६ संरचना के आधार पर सुश्रुत संहिता एवं अष्टांग
१५७ हृदय में वर्णित मर्मों की तुलना
१५७ शरीर में स्थान के अनुसार मर्म वर्गीकरण
१५७ सविध अर्थात् पैर के मर्म (11)
उदर तथा उरप्रदेश के मर्म (12)
१५७ पृष्ठ अथवा पीठ के मर्म (14)
१६२ बाहु अर्थात् हाथ के मर्म (11)
१६२ ग्रीवा से ऊपर या ऊर्ध्व जत्रु के मर्म (37)
१६२ संरचना के आधार पर मर्म
१६३ मांस मर्म (11)
१६३ सिरा मर्म (41)
स्नायु मर्म (27) १६३
अस्थि मर्म (08)
१६३ सन्धि मर्म (20)
७२
१६४ संरचना के आधार पर मर्म अष्टांग हृदय के अनुस
१६४ मांस मर्म (10)
पेशी संख्या तथा विभाजन
शाखाओं की पेशियाँ (400)
कोष्ठ या मध्य शरीर की पेशियाँ (66)
१६४ सिरामर्म (37)
१६४ स्नायुमर्म (23)
१६५ अस्थिमर्म (08)
ग्रीवा से ऊपर या ऊर्ध्व जत्रु की पेशियाँ (34)
१६५ सन्धिमर्म (20)
पेशियों के कार्य
स्त्रियों में अतिरिक्त पेशियाँ
गर्भाशय की स्थिति
स्थानानुसार पेशियों का वर्गीकरण
पुरूष तथा स्त्रियों के जननांगों की पेशियाँ
१६६ धमनीमर्म (09)
१६६ परिणाम अथवा आघात के आधार पर मर्म वर्ग
१६६ सद्यःप्राणहर मर्म
१६६ कालान्तर प्राणहर मर्म
१६७ विशल्घ्न मर्म
बैंककर सर्ग (44)
हजाकर वर्ग (08)
लिए गर्मी की सत्र चातकता
मर्म की रचनात्मक परिभाषा
मभों का पंचभूतानिक स्वरूप तथा उन पर आघात
के पंचभूत्तानुसार परिणाम
अन्य आचार्यों का मर्म विषयक सिद्धान्त
सिराओं द्वारा मर्म स्थानों का पोषण
मर्म चिकित्सा का सिद्धान्त
मर्म स्थानों पर आधात लगने से उत्पन्न परिणाम
तथा उनकी कालावधि
शाखागत मर्मों के स्थान तथा उन पर आधात के
परिणाम
क्षिप्र मर्म
तलहृदय मर्म
कूर्च मर्म
कूर्चशिर मर्म
(११)
सममूल गर्न
रतन रोहित गर्न
२०१५ अपलाप गर्म
१८० पृषत अथवा पौत के गर्मी का स्थान तथा उन पर
आधात के परिणाम
१८१ कटिकरुण गर्ने
११ कुकुन्दर मर्ग नितम्ब मर्म
१८१ पार्श्व सन्धिगर्म
बृहती मर्म
१८२ अंसफलक मर्म
१८२ अंस मर्म
१८२ ऊर्ध्वजत्रु के मर्मों के स्थान के माँ का स्थान तथा
१८२ उन पर आधात के परिणाम
१८३ नीला मर्म
गुल्क मर्म
१८३ मन्या मर्म
इन्द्रबस्ति मर्म
१८३ मातृका मर्म
जानु मर्म
१८३ कृकाटिका मर्म
आणि मर्म
१८४ विधुर मर्म
ऊर्वी मर्म
१८४ फण मर्म
लोहिताक्ष मर्म
१८४ अपांग मर्म
विटप मर्म
१८४ आवर्त मर्म
कूर्च मर्म
१८५ शंख मर्म
कूर्च शिर मर्म
१८५ उत्क्षेप मर्म
क्षिप्र मर्म
१८५ स्थपनी मर्म
तलहृदय मर्म
१८५ सीमन्त मर्म
मणिबन्ध मर्न
१८५ श्रृंगाटक मर्म
कूर्पर मर्म
कक्षघर मर्म
उदर तथा उरःप्रदेश के मर्मों का स्थान तथा उन पर आघात के परिणाम
गुदा मर्म
बस्ति मर्म
नामि मर्म
१८६ अधिपति मर्म
१८६ मर्मों का परिमाण अथवा माप
शल्यकर्म में मर्म ज्ञान का महत्व
१८६ मर्म विज्ञान शल्यविषय का आधा भाग
१८६ मर्म पर आघात का परिणाम
१८७ मर्म स्थानों के समीप चिकित्सा उपक्रमों के प्रयोग
१८७ सावधानी
वित्तशिराओं के गुणक
सिरागत कुपित पित्त के लक्षण
क्लेमवह सिराओं के गुणकर्भ
सिरागत कुपित कफ के लक्षण
रतवह सिराओं के गुणकर्म सिरागत कुपित रक्त के लक्षण
सिरायें सर्ववहा होती है
अलग-अलग सिराओं के लक्षण
१९८ एकर
१९९ पुन मित्राचनका शिक्षमते
१९९ रियल द्वारा निकालेक १६९ विनित रोगों में सिराकेन के
१९९ पुष्ट पधन या त्रुटिपूर्ण सिरामेधन के परिणाम
१९६ सिराओं की प्रकृति
११९ अकुशल चिकित्सक द्वारा सिराव्यध किये जाने के 200 परिणाम
२०० सिराव्यधन की आशुकारिता
शरीर में विभागानुसार सिरा संख्या तथा अकेध्य सिरायै शरीर के विभागानुसार सात सौ सिराओं (700)
२०० सिराव्यधन का चिकित्सा में स्थान
का विभाजन इस अनुसार होता है शरीर के विभागानुसार अ‌ट्ठानवें (98) अवेध्य
सिराओं का विभाजन इस अनुसार होता है शाखाओं की अवैध्य/अवेधनीय सिरायें (16) ग्रीवा से ऊपर या ऊर्ध्व जन्नु अवेध्य/अवेधनीय
सिरायें (50) सिराओं के शरीर में फैले होने का स्वरूप
२१३
393
२१३
चिकित्सा के उपक्रमों के प्रयोग के बाद वर्जा नाव२१३ २०० रक्त की स्थिति के अनुसार रक्तनिर्हरण के उपाय २१४
२०० अध्याय- नवम
२०१ धमनियों का उत्पत्ति स्थल
धमनियों का विभाजन
२१५
२१६
२०२ ऊर्ध्वगगामी धमनियों के कार्य तथा विभाजन
२१६
२०३ अधोगामी धमनियों के कार्य तथा विभाजन
२१७
अध्याय- अष्टम
तिर्यक्‌ङ्गामी धमनियों के कार्य तथा विभाजन
२१८
सिराव्यध निषेध
२०४ धमनियों का स्वरूप २०५ धमनियों का संगठन
२१८
सिरावेधन प्रयोग
२१८
आत्यायिक अवस्थाओं में सिरावेधन का प्रयोग सिराव्यध की प्रक्रिया
२०५ स्रोतसों के प्रधान अंग तथा उनके विद्ध होने के लक्षण २१०
२०५ स्रोतस् विभाजन एवं इनके मूल एवं विद्ध लक्षण २१
सिराव्यध के लिये अनुपयुक्त काल
२०५ प्राणवह स्रोतस्
सिरावेधन हेतु सिराओं के उत्थान/उभारने की विधि
अन्नवह स्रोतस्
२०
तथा उत्तमांग की सिराओं के वेधन की विधि
२०५ उदक‌वह स्रोतस्

सिरावेधन के स्थान तथा सिराओं के वेधन की विधि २०६ रसवह स्रोतस्
पैर की सिराओं के वेधन की विधि
हाथ की सिराओं के वेधन की विधि
२०६ रक्तवह स्रोतस्
२०६। मांसवह स्रोतस्
चरक के अनुसार तेरह सोतरा
अष्टांगहृदयानुसार तैरह स्रोतस सुश्रुत द्वारा वर्णित सोती का वर्णन
सोतसों के पर्याय
सोतसों की आकृति
अध्याय- वशम
गर्भवती स्त्री के लिये पालनीय निर्देश
गर्भवती स्त्री के लिये मासानुमासिक विशिष्ट भोजन
निर्देश
सूतिकागार विवरण
मजायिनी के लक्षण
उपस्थित प्रसवा के लक्षण
प्रसव होने से ठीक पहले के उपक्रम
गर्भ को सीधा करके निकालें
गर्भ आपने आप बाहर न आने पर उपाय
प्रसव के तत्काल पश्चात् के उपक्रम
जातकर्म संस्कार तथा नवजात परिचर्या
दुध स्राव का काल
शिशु परिचर्या
प्रसूता परिचर्या
प्रसूता का आहार विहार
प्रसव के बाद अपरा न निकलने पर उसे निकालने
के उपाय
प्रसूता को होने वाले उपद्रव/मक्कल
शिशु के रहने के स्थान का विसंक्रमण
शिशु का नामकरण
धात्री के मापदण्ड
(۹۷)
२२१ शिशु के प्रति धात्री का
२२१ धात्री का खान-पान
२२१ शिशु की वेदना का जान
रश्च शिशु के सिर तथा बक्तिगत रोग होने पर १२१ चाले लक्षण
२२२ २२३ शिशु को औषध देने की विधी
२२३ शिशु के लिये औषध की गात्रा २२३ स्तनपान से पूर्व स्तनों का विसंक्रमण
२२३ माता के घृत उपयोग निषिद्ध शिशु के विभिन्न रोग तथा चिकित्सा
शिशु की देखभाल के निर्देश
२२४ शिशु का अन्नप्राशन
शिशु की उपसर्ग से रक्षा
२२५ शिशु के रोगग्रस्त होने पर दिखाई देने वाले सामान्य
२२६ लक्षण
२२७ बालक को शिक्षा ग्रहण हेतु भेजना
२२७ विवाह संस्कार
२२७ कम आयु में विवाह का निषेध
२२८ अधिक आयु में विवाह का निषेध
२२८ गर्भपात के लक्षण
२२८ गर्भपात की चिकित्सा
२२८ गर्मी द्वारा अधिक गतिशील होने पर चिकित्सा २२६ अकाल में गर्भाशय संकुचन की चिकित्सा
२२६ गर्भपात, गर्भस्राव, अकालगर्भाशय संकुचन इत्यादि
२२६ की चिकित्सा
२३० गर्भिणी के लिये व्यायाम
शुष्कगर्भ के लक्षण एवं चिकित्सा
२३० नागोदर की अवस्था
२३१ गर्भिणी के लिये मासानुमासिक आहार व्यवस्था
२३१ दो गर्भकालों के मध्य अन्तर
२३२ गर्भिणी के लिये औषध एवं आहार
२३२ शिशु की मेधा, बल तथा बुद्धि वर्धनार्थ योग

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