Netra Chikitsa Vijnana
Material type:
- 9788176370011
- 617.7 CHO
Item type | Current library | Collection | Call number | Status | Notes | Date due | Barcode | |
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MAMCRC LIBRARY | MAMCRC | 617.7 CHO (Browse shelf(Opens below)) | Not For Loan | Reference Books | A3007 | ||
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MAMCRC LIBRARY | MAMCRC | 617.7 CHO (Browse shelf(Opens below)) | Available | A3008 | |||
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MAMCRC LIBRARY | MAMCRC | 617.7 CHO (Browse shelf(Opens below)) | Checked out to PRATHIBHA PRAKASH F0656 (MU1777) | 06/06/2025 | A3009 |
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617.7 CHO Sachitra Karna Cikitsa Vijnana | 617.7 CHO Sachitra Karna Cikitsa Vijnana | 617.7 CHO Sachitra Karna Cikitsa Vijnana | 617.7 CHO Netra Chikitsa Vijnana | 617.7 CHO Netra Chikitsa Vijnana | 617.7 CHO Netra Chikitsa Vijnana | 617.7 CHO Sachitra Netra Chikitsa Vijnana |
विषय-सूची
प्रथम अध्याय
पृष्ठाङ्क
५-९
१. शालाक्यतन्त्र का विकास
३-२२
शालाक्यतन्त्र-४, निमि का काल-९, शालाक्यतन्त्र-१०, कृष्णात्रेय-१०, कराल-१०, शौनक, भद्रशौनक और मद्रशौनक-११, कांकायन-११, गार्ग्य-१२, गालव-१२, सात्यकि-१२, चक्षुष्य-१३, चक्षुष्येण १३, भोज-१३, चैनिक सन्दर्भ- १३, चीना चिकित्सा पद्धति-१४, यहूदी-चिकित्सा पद्धति और शल्यतन्त्र- १४, मिश्रीय शल्यतन्त्र-१५, प्रकृष्ट यूनान और रोमन प्रगति-१५, भारतीय- शालाक्यतन्त्र, स्वीष्टीय, मध्ययुग-१५-२०, सप्तदश और अष्टादश शतक-२१, आधुनिक इतिहास-२२।
२. नेत्र-शारीर
द्वितीय अध्याय
२३-४९
औपद्रविक अध्याय-२३, शालाक्यतन्त्रकी निरुक्रि-२४, उत्तमांग या शिर- २४, नेत्र-शारीर-२५, नेत्र की आकृति-२५, नेत्र का पाञ्च-भौतिकत्व-२५, नेत्रभाग- २६, मण्डल-२७-२८, नेत्रशारीर-सन्धि-२९-३०, पटल-३१-३२, नेत्र का बन्धन-३३, नेत्र में धातु तथा उपधातुओं के कार्य-३४, वाग्भट के मत से नेत्र- शारीर-३४, भावमिश्र के मत से नेत्र-शारीर-३४, योगरत्नाकर-३५, आधुनिक नेत्र- शारीर-३५-३८, सिलीयरी बाडी-३९, कोरयड-४०, दृष्टिवितान-४१-४४, दृष्टिमणि-४४-४६, नेत्र का रक्त-सञ्चालन-४६-४९ ।
तृतीय अध्याय
३. नेत्र का शारीर क्रिया-विज्ञान
५०-६४-
नेत्राभ्यन्तरस्थद्रव-५०-५५, नेत्रगोलकाभ्यन्तरीय तनाव-५५-५७, नेत्रस्थ टिसु वा तन्तुओं का मेटाबोलिज्म-५७-५९, लेन्स-५९, दर्शन का शारीर क्रिया-
(१०)
विज्ञान-६०, वैद्युतिक प्रतिक्रिया-६१, दृष्टिसम्बन्धी बोध-६२, आकार-ज्ञान-शक्तिः वर्णज्ञान-६३-६४।
४. नेत्र परीक्षा
चतुर्थ अध्याय
६५-८४
वर्भ-परीक्षा-६५, बर्त्मशुक्लगत सन्धि परीक्षा-६६, श्लेष्ममय कला-६६, कन्जऑक्टाइभेल व सिलियारी इन्जेक्शन-६७-६८, अश्रूयन्त्र प्रणाली-६९, शुक्ल (स्क्लेरा) मण्डल-६९, कृष्णमण्डल (कर्णिया) ७०, कर्णिका की विशेष परीक्षा- ७१, कर्णियेल स्टेनिंग-७२, नेत्र की आभ्यन्तर परीक्षा-७३-७४, अग्रिमा जलधानी- ७५, आईरिस, लेन्स या दृष्टिमणि-७६, पिउपिल या दृष्टिमण्डल-७७-७८, पिउपिल की साधारण एवं अस्वाभाविक प्रतिक्रिया-७९-८१, गनियोस्कोपी ८२, ट्रेन्स्इलुमिनेशन-८२, नेत्र-तनाव-८३, शियोट्ज टनोमीटर प्रयोग-८३।
५. नेत्ररोग का निदान
पंचम अध्याय
८५-९६
निदान-८५, उष्णभितप्त का जलप्रवेश से-८६, दूरेक्षण से-८७, स्वप्नविपर्यय से-८७, प्रसक्त संरोदन-८७, कोप, शोक, क्लेश-८८, अभिघात, अतिमैथुन, शुक्त-आरणाल-अम्ल के सेवन से-८९. स्वेद से-९०, धूमसेवन से- ९१, वमनातियोग, वाष्पग्रह, सूक्ष्म (द्रव्य) निरीक्षण से-९२-९५, नेत्ररोग की साधारण सम्प्राप्ति-९६
६. नेत्ररोग-विभाजन
षष्ठ अध्याय
९७-१०७
नेत्ररोग संख्या-९७, दोषिक, शारीरिक, साध्यासाध्य, चिकित्सादृष्टि से विभाजन-९७-९८, विस्तारित विभाजन (साध्यासाध्य)-९९-१०१, छेद्यरोग- १०३, लेख्यरोग-१०३, भेद्यरोग-१०३, व्यध्यरोग-१०३, अशस्वकृत्य नेत्ररोग- १०४, असाध्य-१०४; याप्य-१०४, वर्गीकरण का महत्व-१०४-१०७।
सप्तम अध्याय
७. नेत्ररोगों के पूर्वरूप वा साधारण लक्षण
१०८-११०
पूर्वरूप व लक्षण-१०८, अक्षिकूट में शोथ वा सूजन-१०९।
(११)
अष्टम अध्याय
८. नेत्रसन्धि
१११-१२६
अश्रुग्रन्थि और अश्रुनाड़ी का शारीर-१११, अश्रुमार्ग-११२, अश्रुस्राव- ११३, सन्धिगत रोग-११४, अश्रुग्रन्थि व अनुनालियों के रोग-११४, पूयालस वा नेत्रस्त्राव-११५-११८, उपनाह-११९, नेत्रनाड़ी-११९-१२१, पर्वणी-अलजी- ९२२-१२३, कृमिग्रन्थि-१२४-१२६ ।
९. वर्त्मगत रोग
नवम अध्याय
१२७-१६६
संख्या-१२७, वर्त्मगत रोगों की सम्प्राप्ति-१२८, उत्सङ्गिनी, चिकित्सा- १२९, कुम्भीकपिड़का-१३०-१३१, पोथकी, संज्ञा-१३१, Trachoma-१३२- १३९, वर्मशर्करा-१३९, अशोंवर्ग-१४०, शुष्कार्श-अञ्जननामिका-१४१, बहलवर्म, वर्मावबन्ध १४२, क्लिष्टवर्म, उत्क्लिष्टवर्म-१४३, उत्चिलष्ट, पित्तोत्क्लिष्टवर्म, कफोत्क्लिष्टवत्र्म; वर्त्मकर्दम-१४४, श्याववर्म-१४५, श्लिष्टवर्म, क्लिम्नवर्त्म, अक्लिन्नवर्त्म वा पिल्ल-१४६, वातहतवत्र्म-१४८- १५०, अर्बुद, निमेष-१५१, शोणितार्शः १५२-१५३, लगण-१५४, बिसवर्म- १५५, पक्ष्मकोप-१५६-१५९, कृय्छोन्मीलन-१५९, कुकूणक-१६०-१६४, कुञ्जन, अलजी-१६४, पक्ष्मशात-१६५-१६६ ।
१०. शुक्लगत रोग
दशम अध्याय
१६७-१८९
संख्या-१६७, अर्म-१६८, प्रस्तारि अर्म, शुक्लार्म, लोहितार्म, अधिमांसार्म, स्नाय्वर्म-१६८-१७४, शुक्तिका (शुक्ति)-१७५, जेरोसीस-१७६, अर्जुन-१७८- १७९, पिष्टक-१८०-१८१, सिराजाल-१८२-१८३, सिरापिड़का-१८४, Episclritis, scleritis-१८४-१८६, बलासग्रथित १८७-१८९ ।
एकादश अध्याय
११. कृष्णगत रोग (आधुनिक पद्धति अनुसार)
१८९-२०३
संख्या-१८९-१९२, कार्णिया के व्रणशोथमूलक रोग-१९२-१९३, विकृत शारीर-१९४, सब्रणशुक्ल का लक्षण, रोपण-१९५, व्रण की अपारदर्शकता १९५, उपसर्ग-१९६-१९८, चिकित्सा-
(१२)
द्वादश अध्याय
१२. कृष्णगत रोग (आयुर्वेदिकदृष्टि से)
२०४-२२९
संख्या-सत्त्रणशुक्ल-२०४-२०६, चिकित्सा-२०७-२१२, अवणशुक्त २१२-२१७, अक्षिपाकात्यय-२१७, अजकाजात-२१९-२२२, Cornea के अन्यरोग-२२३-२२९।
त्रयोदश अध्याय
१३. नेत्ररोगों की साधारण चिकित्सा
२३०-२६८
साधारण चिकित्सा-२३०, क्रियाकल्प-२३२-२३३, तर्पण-२३४-२४०, पुटपाक-२४०-२४७, आश्योतन और सेक-२४७-२४९, नेत्र में प्रयुक्त औषधि की कार्यकारिता-२४९, अंजन-कब प्रयोज्य है-२५१, लेखन आदि अंजन द्रव्य-२५३, अञ्जन भेद-२५४-५६, अञ्जन पात्र और शलाका-२५६, अञ्जन लगाने की विधि- २५७, अञ्जन प्रयोगोत्तर कर्म-२५९, अञ्जन निषेध-२६०, निषिद्ध अवस्था में अञ्जन प्रयोग से हानि-२६०, लेखन अञ्जन का सम्यक् योग, अतियोग, हीनयोग-२६१- २६२, प्रसादन अञ्जन का सम्यग योग, अतियोग-२६२, अञ्जन निषेध-२६३, स्वस्थ अवस्था में अञ्जन के गुण-२६४, चूर्णाञ्जन-२६५, विडालक-२६६, शिरोबस्ति-२६६-२६८ ।
१४. सर्वगत रोग
संख्या-२६९-२७१, अभिष्यन्द का सर्वरोगकरणत्व-२७२, वातज अभिष्यन्द-२७३, पैत्तिक अभिष्यन्द-२७४, कफज अभिष्यन्द- २७५, रक्तज अभिष्यन्द-२७५, अभिष्यन्द का साधारण विचार- २७६, अभिष्यन्द की चिकित्सा-आश्योतन-२७६, बिडालक वा प्रलेप-२७७, बर्हिगुण्डन-२७८, वातिक आदि भेद से अभिष्यन्द की चिकित्सा- वातिकचिः- २७९, पित्ताभिष्यन्द-पित्ताधिमन्य-चिकित्सा-२८१, कफज अभिष्यन्द चिकित्सा-२८२, रक्तज अभिष्यन्थ अधिमन्थ में तीव्र पीड़ा चिकित्सा-२८३ ।
चतुर्दश अध्याय
२६९-२८४
पंचदश अध्याय
५. श्लेष्यमय कला के रोग
२८५-३३०
श्लेष्ममयकला (Conjunctive)-२८५, श्लेष्ममय कला का व्रणशोथ-
(१३)
२८६, तीव्रपित्तज वा कफज अभिष्यन्द-२८७, रक्तज वा कफज अभिष्यन्द- Acute Purulent conjunctivitis २८८, Conjuntivitis का वर्गीकरण- २८९, उपद्रव व चिकित्सा २९०, Ophthalmia neonatorum-२९०, उपद्रव व चिकित्सा-२९१, Diptheritic conjunctivitis, Simple chr. conj.-२९२, Angular conj.-२९३, Phlyctenular conj.-२९४, Spring catarrh-२९५, Diff. diagnosis of different kinds of conj.-२९६-२९८।
अधिमन्थ
अधिमन्य के सामान्य लक्षण तथा भेद-२९९, वार्तिक अधिमन्थ-२९९, पित्तज अधिमन्य-३०१, कफज अधिमन्थ-३०२, रक्तज अधिमन्थ-३०३, अधिमन्थ की साध्यासाध्यता-३०४, Glaucoma-३०५-३०८, Closed-Angle Glaucoma-३०८-३१२, Simple chr. Glaucoma-३१३-३१५, Uveritis-३१५-३१७, Diff. diagnosis of conj., Iritis, Glau- coma-३१६, Iritis-३१८, Iridocyclitis-३२२, Choroiditis-३२५, Panophthalmitis-३२८ ।
षोडश अध्याय
१६. सशोफ अशोफ अक्षिपाक इत्यादि
सशोफ अशोफ अक्षिपाक-३३१-३३४, हताधिमन्थ-३३५- ३३६, अन्यतोवात-३३७-३३८, अम्लाध्युषित-३३९, सिरोत्पात-३४०, सिराहर्ष-३४१ ।
३३१-३४१
सप्तदश अध्याय
१७. दृष्टिगत रोग
३४२-४००
दृष्टि के अर्थ-३४२, दृष्टिमण्डल-३४२, दृष्टिमणि-दृष्टि-दर्शनशक्ति-दृष्टि- नाड़ी-३४३, दृष्टि का प्रमाण-३४४, पटल-३४६-३४९, पित्तविदग्ध दृष्टि-३५०, श्लेष्मविदग्ध दृष्टि-३५०, दृष्टिगत रोग संख्या-३५२, तिमिर, काच, लिंगनाश- ३५३, प्रथम पटलगत दोष-३५४, द्वितीय-पटलगत दोष- ३५४, तृतीय पटलगत दोष-३५६, चतुर्थ पटलगत दोष ३५८, विभिन्न तिमिर लक्षण-३५९-३६२, परिभ्लायी रोग-३६३, पित्तविदग्धदृष्टि का सापेक्षनिदान-३६७, श्लेष्मविदग्धद्वष्टि का सापेक्ष निदान-३६८, उष्णविदग्धदृष्टि, धूमदर्शी-३६९, नकुलान्ध्य-३७०,
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