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Bal Vikas evam Pariwarik Sambandh

By: Material type: TextTextPublication details: New Delhi Research Pub.
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अनुक्रमणिका
1. बाल-अध्ययन का क्षेत्र, महत्त्व और विधियाँ:
2. विकास के सिद्धान्त और नियम..
3. परिपक्वता और अधिगम (सीखना)
4. शारीरिक वृद्धि और विकास..

5.संवेगात्मक विकास : मुख्य संवेग-भय, क्रोध, प्रेम, ईर्ष्या, खुशी, अनुराग, ज्ञानेच्छा, बाल्यावस्था में संवेगात्मक व्यवहार का विकास, बाल्यकाल के संवेगों की विशेषताएँ, प्रारम्भिक अन्तर-वैयक्तिक सम्वन्धों का महत्त्व...
6. बौद्धिक विकास
7. संज्ञान का विकास बालपन में संज्ञानात्मक योग्यता, बौद्धिक संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाएँ, पियागेट के संज्ञानात्मक सिद्धान्त के मौलिक विचार: विचारना, तर्कना और स्मृति की भूमिका..
8. भाषा का विकास (Development of Language)
9. खेल : अर्थ और बचपन में खेल का महत्त्व, खेल की विशेषताएँ, खेल के प्रकार, स्वतन्त्र और स्वाभाविक खेल, कल्पनात्मक (अभिनयात्मक) खेल, रचनात्मक खेलकूद और क्रीडाएँ..
10. कल्पना: बाल कल्पना का रूप और महत्त्व बाल साहित्य की भूमिका और महत्त्व कल्पना को प्रकट करना अभिनयीकरण दिवास्वप्न, मनोराज्य,
11.सर्जनात्मकता का विकास और उसकी विशेषताएँ, बालपन की सर्जनात्मक क्रियाएँ.
12.सामाजिक विकास समाजीकरण की प्रक्रिया और संस्थाएँ, परिवार के भीतरी तत्त्व विद्यालय और समुदाय का प्रभाव, सांस्कृतिक एवं सामाजिक विकास, सामाजिक तथा व्यक्तित्व के विकास का अन्तःसम्वन्ध.
13. व्यक्तित्व का विकास अर्थ, परिभाषा और प्रकार, व्यक्तित्व के प्रभावोत्पादक तत्त्व
14. मानसिक स्वास्थ्य और आरोग्य परिभाषा, पथभ्रष्ट व्यवहार के पूर्ण तत्त्व(Mental Health and Hygiene: Definitions, Predisposing Factors for Deviant Behaviour)
15. बचपन की सामान्य समस्याएँ अंगूठा चूसना व नाखून काटना, मूत्राशय शैथिल्य (बिस्तर गीला करना), लज्जालू प्रकृति, क्रोध की प्रकृति, भाषा-कठिनाइयाँ-तुतलाना और हकलाना, भय, झूठ बोलना
16. विशिष्ट बालक: प्रतिभावान बालक, पिछड़े बालक, शारीरिक न्यूनता से ग्रस्त
17.यौवनोन्मुख समस्या : किशोरावस्था के व्यवहार की विशेषताएँ, घर, स्कूल और समाज में संघर्ष और सामंजस्यीकरण, विद्यालय से अनुपस्थित रहना और किशोर अपराधी कारण, रोकना और सुधार
18. बच्चे व माता-पिता और पारिवारिक सम्बन्ध मानव व्यवहार को समझने के आधार-शारीरिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक आवश्यकताएँ, व्यवस्था करना, स्थिति को व्यवस्थित करने के साधन-भागना, अभियोग लगाना, उद्देश्य में परिवर्तन करना, व्यवस्था करने में सन्तुलन, माता-पिता का उत्तरदायित्व, माता-पिता के प्रकार बालक सम्बन्ध- (i) निरंकुश (ii) लोकतान्त्रिक (iii) स्वीकृति देने वाले, बच्चे के सामाजिक व व्यक्तित्व के विकास पर माता-पिता की अभिवृत्ति का प्रभाव, बालक की क्रियाओं का मार्ग-दर्शन व निर्देशन, बालकों के लिए उनकी रुचि की योजना बनाना

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