SushrutSamhita
Material type:
- 9788189798192
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(6)
शारीरस्थान-विषयसूची
शुक
पुरीशाच शुक्र विकिराको
१३ १३. किती शुभ साल कैसे मिलता है
इन्दियों के विषय
शुद्र शुक
प्रकृति और विकृति
आर्तत चिकिल्ला
प्रकाशमान तेरह तात्यों का
प्रविभूत आर्तत की चिकित्सा
११ जाने
१४ दो गर्यो की पति १४ नपुंसकों के कार में
आधक्य गर्नुसक सौगन्धिक नपुंसवा
१५
विवरण
दुर्गन्ध युक्त आर्तव के लिए
वातादिदुए आर्सवों की निकिासा
कुन्भीक नपुंसक
ईर्णक नपुंसक का लक्षण
प्रकृति और पुरुष का साधयें और वैधर्म
षण्ड का लक्षण
पुरुष के विषय में एकीय मत
शुद्ध आर्तव का लक्षण
१५ १५ नारीषगड़
४ असूग्दर का लक्षण
५ अल्पोपदुत रक्तप्रदर की चिकित्सा
नपुंसकों की परिगणना
स्थावर अहम भूत ग्रामों के
१६ शुक्र होने पर घण्ड क्यों शुभाशुभ कार्यों का परिणाम
लक्षण
६ नाहार्त्तव का कारण और
भूत ही चिकित्सोपयोगी है
अपनी भौतिक इन्द्रियों से अपने भौतिक इन्द्रियार्थ का ग्रहण
७
चिकित्सा
अनस्थि गर्भ १६
क्षीणार्तव की चिकित्सा
१७ स्वप्न में मैथुन से गर्भ
७ ऋतुकाल में वर्ज्य
वाले सात्त्विकादि गुण
आत्मा की सांख्य मत से भिन्नता
आत्मा के नित्यत्व में हेतु
आत्मा के गुण
सात्त्विक मन के गुण
राजस मन के गुण
तामस मन के गुण
पञ्चमहाभूतों के गुण
आकाशादि भूतों में रहने
१७
कलल का वर्णन
تا ऋतुकाल के नियम
१७. विकृत गर्भ
७. इस प्रकार करने का फल
१८
दोहद की पूर्ति न होने से
८ तत्पश्चात् सन्तान के लिए
विकृत सन्तति उत्पन्न होने
८ हितकर कर्म करे
१८
के कारण
८ हवन के बाद का कर्तव्य
१८ गर्भ की मलोत्सर्ग क्रिया गर्भ रोता क्यों नहीं
९ ९
उत्तरोत्तर रात्रियों में गमन
करने से लाभ
१८ गर्भ के लिए व्यवहार
पुत्री पैदा होने के लिये दिन
१८ स्वाभाविक कार्य
उपसंहार
९ त्रऋतुमती के साथ संभोग १० करने से दोष
१९ सत्त्वभूयिष्टों का उत्पत्ति में कारण
दूसरा अध्याय
शुक्र के दोष
वीर्य दोष के लक्षण
११
पुत्र की इच्छा रखने वालों के लिए प्रयोग
१९ कर्मानुसार जन्म की और
१२ गर्भ और अङ्कुर का साम्य
१९ प्राप्ति
अभ्यासानुसार गुणों की
(7)
विषयाः
पृष्ठाङ्काः
विषया
तीसरा अध्याय
का वर्णन शुक्ल के दोषशुक और आधि
गर्भ की उत्पति और उसके
४९
२६ मध से रता कैसे निamm
२६ है इसका प्रमाण
१९
निद्रानाशहर के
४६
लिङ्ग भेद में कारगण
२६ मेटीचरा करण
३९
रात्रि जागरण और
२६ गोला भेदहीका श्लेष्मधरा कला का वर्णन
जिसके लिये
ऋतुमती की के लमाण
अतुकाल से पिक्ष काल में योनि का संकोच
२७ श्लेष्मपरा कला का कार्ग
२७
पुरीषधरा कला का वर्णन
करम का लक्षण
Vis
मासिक धर्म
२७
पित्तथरा कला
रजोनिवृत्ति काल
२७
शुकचरा कला
४० उत्क्लेश करण
कन्या या पुत्र का उत्पति काल
सघोगर्भधारण के चिह
२८ २८
शुक्रम्यापकता के दृष्टान्त
४१
ग्लानि का বলে। ४९
४८
शुक्रमार्ग
गौरव का लक्षण
गृहीतगर्भा के उत्तरकालिक मिह
२८
हर्षजन्य शुक्रप्रादुर्भाव गर्भवती खी के आर्तच न
४१
मूर्खा, भ्रम, तन्द्रा और निद्रा के लक्षण
गर्भधारण के बाद वर्जनीय
३० ३०
४९
निषिद्ध सेवन से परिणाम
दीखने तथा पुष्ट स्तन और अपरा बनने में कारण
गर्भ की वृद्धि
४९
गर्भ का बार मास तक
४९
गर्भवृद्धि
४९
वृद्धिक्रम
यकृत्, प्लीहा, फुफ्फुस और उण्डुक की उत्पत्ति
न बढ़ने वाले अङ्ग ४१ नित्य बढ़ने वाले अङ्ग
४९
दौईयों का परिणाम
३१
४९
दाँहुँद से भावी सन्तान के
आन्व, गुद और बस्तियों की
प्रकृति के भेद
४९
गुणों की पहचान
३२ उत्पत्ति
४२ प्रकृति बनने में कारण
४९
दौहुँदों में कारण
३२ जिह्वा की उत्पत्ति स्रोतसों का विदारण और
४२ बात प्रकृति के लक्षण पित्त प्रकृति के लक्षण
४९
गर्भ का पक्षम महीने से
५०
वृद्धिक्रम
३३
पेशियों का बनना
४२ कफ प्रकृति के लक्षण द्वदोषज और त्रिदोषज प्रकृति
५०
गर्भ का पोषण प्रकार
३३ नायु और आशयों की
५१
गभर्योत्पत्तिक्रम
३४
उत्पत्ति
४२ प्रकृति स्थिर रहती है प्रकृति बाधक न होने में
५१
गर्भ के पितृजादि लक्षण
३५
वृक्क, वृषण और हृदय
गर्भ लिङ्गनिचय
३५
की उत्पत्ति
४२
दृष्टान्त
सद्गुणी बालक के जन्म
हृदय का स्वरूप
४३ अन्य आचार्यों का मत
निद्रा
४४ सत्त्वकाय के लक्षण
में कारण
३६
विकृत अङ्ग प्रत्यङ्गों में कारण
३६
निद्रा का विषय
४४ राजस काय के लक्षण तामस काय के लक्षण उपसंहार
निद्रा तो बोध नहीं होने
चौथा अध्याय
देती फिर स्वप्न-दर्शन
३७
कैसे होता है
४५
पाँचवा अध्याय
प्राण
त्वचाओं का वर्णन
३७
निर्विकार भूतात्मा की निद्रा
शरीर संज्ञा ४५
कलावर्णन
कला-स्वरूप
३८
में कारणता
प्रत्यङ्ग विभाग
३८ निद्रा के नियम तथा उनके
३९
भीतरी अङ्ग प्रत्यङ्गों का वर्णन
प्रथम कला
परिपालन न करने के दोष
(8)
विषयाः
जीवा के उपर गर्ने
जागा तह होने से मृत्यू
नहीं होती
६५ वर्षों की प्राधान्य
६६
पर्षों में विगुण, भूतान
आदि रहते हैं
६६ तिनिध वर्गों पर आधात
५७ भागा का दर्शन
होने से उत्पन होने
५७ निःसन्देह शान के पश्चात्
वाले जहण
NW निकित्सा करे
६६. मर्मी के शिकार कृच्छ्राय होते हैं
शाखागत अस्थियों का पारगम्णन
५७
छठा अध्याय
५७
श्रोणि, धा, वक्र स्थल और स्कन्य प्रदेश की अस्थियाँ
५८
भर्मों की संख्या तंगा प्रकार
मर्म विभागों की संख्या
सातवीं अध्याय
६७ शिराओं की संख्या और
गर्दन और उसके ऊपर की
देशभेद से मर्मों की संख्या
६७
मांसादि मर्मों के नाम
६८ सात सौ सिराओं का विवरण
५८ मर्मों के प्रकार ६०
अस्थियों के प्रकार
६८ यातयह शिराओं का विभाग
शरीर धारण में अस्थियों की प्रधानता
सद्यः प्राणहर मर्म
६९ शेष शिराओं का विभाग
कालान्तर प्राणहर मर्म
६९ शिराचारी अकुपित और
६० विशल्यघ्न मर्म
सन्धियों
६९ कुपित वायु का कार्य
६० वैकल्यकर मर्म
सन्धियाँ की संख्या
६९ शिराचारी अकुपित और
६१ रुजाकर मर्म
शाखागत सन्धियाँ
६९ कुपित पित्त के कार्य
६१ क्षित्र मर्म का लक्षण
कोष्ठगत सन्धियाँ
६९ शिराचारी अकुपित और
६१ मर्म का लक्षण
ऊर्ध्वजत्रुगत सन्धियाँ
६९
कुपित कफ के कार्य
६१
सन्धियों के प्रकार
मों के साथ महाभूतों का ६१
निज शिरागत अकुपित्त और कुपित रक्त के कार्य
सन्धियों के स्थान
सम्बन्ध ६१
७०
केवल हड्डियों में सन्धि
अन्य आचार्यों का मत ६२
७०
प्रायः सभी शिराएं सब
लायु की संख्या
उपर्युक्त विधान की पुष्टि
७०
दोषों का वहन करती हैं उपर्युक्त मत की पुष्टि के
६२ शल्य चिकित्सा में मर्मी
शाखागत स्रायु
६२
कोष्ठगत लायु
की रक्षा करनी चाहिए
७१
लिए उदाहरण या प्रमाण
६२
ऊर्ध्वजत्रुगत लायु
पेशियों का वर्णन
६२
कुपित कफ-पित्तों का लक्षण
मर्मों का कार्य करने का काल
७१ शिराओं का वर्ण विभाग
७१ अवेध्य शिराओं का वेध
६३
शाखागत पेशियाँ
सक्थि (शाखाओं) के मर्म
करने से उपद्रव
६३
कोष्ठगत पेशियाँ
और उन पर आघात होने
६३
सब शिराओं का परिगणन
ऊर्ध्वजत्रुगत पेशियाँ
पर होने वाले उपद्रव
६४
७२ अवेध्य शिराओं का परिगणन शाखागत अवेध्य शिरायें कोष्ठगत अवेध्य शिरायें
स्रियों की पेशियों
पेशियों के दृढ़ होने के कारण ६४
पेट और छाती के मर्म तथा
६४
उनके विरुद्ध होने पर
पेशियों के स्वरूप
पैदा होने वाले उपद्रव
ऊर्ध्वजत्रुगत शिरायें
(9)
-
--
और
शिरायेथे कर में करे?
भिमानी के लिए
24
नियनत्रण विधि
वर्ष करना चाहिने
रहनिहरण साधनों का
स्थान-भेदानुसार येथे विभि
स्थानानुभूत प्रयोग
९२ प्रसूता के लिए वर्न
शिरावेधने काल
वाँ अध्याय
८७
सुविद्ध के लक्षण
मृतिका के विकार क ९३ होते हैं
८७ धमनी विवरण
अशुद्ध रक प्रथम आने में
ऊपर जानेवाली धमनियों
९३ अरपरा पतन न होने पर
८७ तिर्यम् धमनियों के कार्य
अधोगामी धमनियों के कार्य
२०४
९४ मक्कल्ल रोग-लक्षण
• शिराओं के न बहने के कारण क्षीणादि व्यक्तियों में लावण
१०४
८७
९४ मक्कल्ल रोग की चिकित्सा
२०५
جانے
धमनियों को मृणालों का
बालक की सेवा
- पूर्णतया दुषित रक्त न निकाले
१०५
८७
९५ नामकरण
१०५
रक-निर्हरण का प्रमाण
८७ धमनियों की उत्पत्ति, कार्य
धात्री-नियुक्ति विचार
१०५
किन-किन रोगों में कहां-कहां
और लय
९५ दुग्धपान विधि
सिरावेध करे?
८८ स्रोतों के मूलों में विद्ध होने
१०५
अनेक दाइयों की नियुक्ति
दुष्टवेध के बोस प्रकार
८९
पर पैदा होने वाले लक्षण
९६ न करें ९७
१०.६
दष्टवेध के प्रकारों के लक्षण
८९ स्रोत का लक्षण
दुर्विद्धा का
दूध पिलाने के पूर्व दूध निकालने की आवश्यकता
८९
दसवाँ अध्याय
१०६
अतिर्विद्धा का
८९
कुचिता का
९०
गर्भिणी के लिए सामान्य
नियम
स्तन्य नाश के कारण और उसके वर्धन के उपाय
९८
१०६
पिच्चिता का
९०
विशेष नियम महीने-महीने
दुग्ध परीक्षा
१०६
कुट्टिता
९०
के हिसाब से
९८
किस प्रकार की दाई का
अप्रसुता का
९०
चौथे से सातवें महीने तक
दूध न पिलावे
१०६
अत्युदीणों का
९०
के नियम
९९' बालक के रोग जानने का
अन्तेऽभिहिता का
९० आठवें महीने से प्रसवपर्यन्त
प्रकार
१०७
परिशुष्का का
९०
के नियम
९९ बालकों के विकारों में औषध किसको देना चाहिए?
कूणिता का
९० नवम मास में सूतिकागार में
१०७
वेपिता का
९०
रखे
९९ औषध मात्रा
१०७
अनुत्थितविद्धा का
९० सूतिकागार कैसा हो
शरहता का
९० प्रसूति के लक्षण
१०० कल्क से स्तन-लेप करें
१०० ज्वर की विशेष चिकित्सा
(10)
विषयाः
तालुणत की चिकित्सा
पृष्ठाङ्काः
विषयाः
पृष्ठाङ्काः
विवयाः
१०८
विद्याग्रहण काल
११०
गर्भिणी की चिकित्सा
तुण्डनाभि और गुदापाक
चिकित्सा
विवाह-काल
११०
कैसी हो
१०८
उपर्युक्त काल से कम
बालक के लिए हितकर यो
घृतपान विधि
१०८
आयु वाले पति पत्नी
शब्दानुक्रमणिका
बालक के साथ बर्ताव
होने पर दोष
११०
शारीरस्थान के चित्र
कैसा हो?
१०९
गर्भाधान न करने योग्य व्यक्ति
११०
स्त्री दुग्ध न मिले तो क्या करे?
१०९
अध्याय-२
गर्भदोष-चिकित्सा
११०
अध्याय-३
अन्नप्राशन कब करावे?
१०९
गर्भस्राव न हो इसलिए
अध्याय-४
बालक की रक्षा कैसे करे?
१०९
मासानुमास चिकित्सा
११२
ग्रहों से पीडित बालक के
अध्याय-५
लक्षण
निवृत्त-प्रसवा की सन्तति अल्पायु होती है
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